मद्रास हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने धार्मिक पूर्वाग्रह से युक्त एक याचिका को खारिज करने के साथ ही याचिकाकर्ता को पांच साल तक के लिए किसी भी तरह की जनहित याचिका दायर करने से प्रतिबंधित कर दिया.
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चेन्नईः मद्रास हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि कोई भी धर्म संकीर्ण मानसिकता या किसी को नुकसान पहुंचाने की सीख नहीं देता है. इसके साथ ही अदालत ने एक वकील के जरिए दायर जनहित याचिका खारिज कर दी जिसमें तमिलनाडु के मुख्यमंत्री को ‘हिन्दू धार्मिक और धर्मार्थ अनुदान’ (एचआरसीई) विभाग की सलाहकार समिति के सदर पद से हटाने का अनुरोध किया गया था. याचिका में कहा गया था कि स्टालिन को विभाग का सदर तब तक नहीं होना चाहिए जब तक कि वह हिन्दू देवता के सामने हिन्दू धर्म का पालन करने की शपथ नहीं लेते. मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति पी डी आदिकेशवुलु ने यह खारिज करने के साथ ही याचिकाकर्ता को पांच साल तक के लिए किसी भी तरह की जनहित याचिका दायर करने से प्रतिबंधित कर दिया.
याची ने दिया था नियम का हवाला
याचिकाकर्ता ने दावा किया था कि एचआरसीई विभाग की नियमावली में एक नियम है जिसके मुताबिक उसके सभी मुलाजिमों और अफसरान को अपना ओहदा हासिल करने से पहले हिन्दू देवता के सामने शपथ लेनी होती है कि वह हिन्दू धर्म का पालन करेगा.
कोर्ट ने कहा, याचिकाकर्ता की भावना को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता
बेंच ने कहा कि धर्म के पालन के संबंध में पूर्वाग्रह और बदले की भावना को त्यागना पड़ता है. भारत एक पंथनिरपेक्ष मुल्क है और संविधान भी भगवान या संविधान के नाम पर शपथ लेने की इजाजत देता है. अदालत ने कहा कि कोई भी धर्म संकीर्ण मानसिकता या किसी को नुकसान पहुंचाना नहीं सिखाता. पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता की भावनाओं की न तो सराहना की जा सकती है न ही इसे बर्दाश्त किया जा सकता है.
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