अफ्गानिस्तान की सत्ता पर जब से तालिबान काबिज हुआ है तब से यहां रह रहे गैर मु्स्लिम लोगों को काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
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जब 2021 में काबुल तालिबान के हाथों में आ गया, तो लोगों को ये डर था कि अफगानिस्तान की कुछ छोटी गैर-मुस्लिम कम्युनिटी गायब हो सकती हैं. एक मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि दो साल बाद, ये कयास सही साबित होते जा रहे हैं. RFE/RLA की रिपोर्ट के मुताबिक, अफगानिस्तान का आखिरी यहूदी तालिबान के कब्जे के तुरंत बाद देश से भाग गया, माना जाता है कि सिख और हिंदू समुदाय केवल मुट्ठी भर परिवारों तक ही महदूद हो गए हैं.
कम्युनिटी पर लगी सख्त बापंदी
RFE/RL की रिपोर्ट के मुताबिक, तालिबान के राज में सिखों और हिंदुओं को संगीन पाबंदियों का सामना करना पड़ रहा है. पब्लिक तौर से उनके मजहबी प्रोग्रामों को मनाने पर पाबंदी लगा दिया गया है, जिससे कई लोगों के पास वहां से भागने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है. राजधानी काबुल में बचे आखिरी सिखों में से एक फ़री कौर ने कहा, "मैं कहीं भी आज़ादी से नहीं जा सकती."
उन्होंने तालिबान के हु्क्म के बारे में कहा, "जब मैं बाहर जाती हूं, तो मुझे मुस्लिम की तरह कपड़े पहनने के लिए मजबूर किया जाता है ताकि मुझे सिख के तौर पर पहचाना न जा सके."
देश बदर हुए सिख
कौर के पिता 2018 में सिबक शहर जलालाबाद में सिखों और हिंदुओं को निशाना बनाकर किए गए हमले में मारे गए थे. बताया जाता है कि हमले की वजह से कौर की मां और बहनों को 1,500 सिखों के साथ देश छोड़ना पड़ा. RFE/RL रिपोर्ट में कहा गया है कि लेकिन कौर ने वहां से जाने से इनकार कर दिया और वो काबुल में रुक गईं. मार्च 2020 में, जब इस्लामिक स्टेट-खुरासान के आतंकवादियों ने काबुल में एक सिख मंदिर पर हमला किया, तो 25 लोगों की मौत हो गई. हमले के बाद, अकलियती तबके के बाकी बचे लोगों ने अफगानिस्तान छोड़ दिया. फिर भी कौर ने जाने से इनकार कर दिया.
अब नहीं बचा रास्ता
लेकिन अब, तालिबान के सत्ता पर कब्ज़ा करने के दो साल बाद, उन्होंने कहा कि मजहबी आजादी की कमी की वजह से उनके पास विदेश में पनाह लेने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं बचा है. उन्होंने कहा, "तालिबान के सत्ता में लौटने के बाद से हमने अपने अहम त्योहार नहीं मनाए हैं. अफगानिस्तान में हमारी बिरादरी के बहुत कम लोग बचे हैं. हम अपने मंदिरों की देखभाल भी नहीं कर सकते."
भारत भाग कर आए कई लोग
1980 के दशक में अफगानिस्तान में 100,000 हिंदू और सिख थे. लेकिन 1979 में छिड़ी जंग ने कई लोगों को देश छोड़ने पर मजबूर कर दिया. 1990 के दशक के सिविल वार के दौरान, तालिबान और मुखालिफ इस्लामी ग्रुपों ने अकलियतों के तहफुज का वादा किया था. लेकिन कई सिखों और हिंदुओं ने अपने घर और कारोबार खो दिए और भारत भाग गए. अगस्त 2021 में जब तालिबान ने सत्ता हासिल की, तो उसने गैर-मुस्लिम अफ़गानों के डर को शांत करने की कोशिश की. RFE/RL की रिपोर्ट के मुताबिक, लेकिन सिखों और हिंदुओं पर तालिबान की सख्त पाबंदियों ने कई लोगों को अपने वतन से बाहर निकलने का रास्ता तलाशने के लिए मजबूर कर दिया है.