Ratan Tata Ford Story: जब रतन टाटा ने फोर्ड से बदला लिया और पूरी कंपनी को ही खरीद लिया. इसे पीछे एक पूरा किस्सा है कि कैसे रतन टाटा की टीम की बिल फोर्ड ने काफी आलोचना की थी और उन्हें नौसिखिया करार कर दिया था.
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Ratan Tata Ford Story: टाटा संस के करता धरता रतन टाटा की मौत 86 साल की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में हुई है. उद्योगपति रतन टाटा की डेड बॉडी को गुरुवार की सुबह कोलाबा में मौजूद उनके घर पर लाया गया है. इंटरनेशनल लेवल पर सबसे फेमस भारतीय कारोबारी नेताओं में से एक रतन टाटा अपनी हंबलनेस, दूरदर्शिता, कारोबारी कौशल, ईमानदारी और नैतिक नेतृत्व के लिए भी जाने जाते थे.
रतन टाटा ने 1991 में टाटा संस के चेयरमैन और टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन का पद संभाला था. यह वह दौर था जब भारत की अर्थव्यवस्था आर्थिक सुधारों की एक सीरीज़ के बाद खुली थी. इस दौरान उन्होंने इन मौकों का बेहतर तरीके से फायदा उठाया.
रतन टाटा की टाटा इंडिका, को शुरुआत में बाजार में काफी निराशाजनक बिक्री का सामना करना पड़ा, जिसकी वजह से टाटा मोटर्स को अपनी कार यूनिट को बेचने पर विचार करना पड़ा. 1999 में, कंपनी ने अपने नए कार बिजनेस को बेचने की संभावना तलाशने के लिए फोर्ड से संपर्क किया था. रतन टाटा अपनी टीम के साथ फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड से मिलने के लिए डेट्रॉइट गए थे.
तीन घंटे की मीटिंग के दौरान, टाटा टीम को कथित तौर पर कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा. कहा जाता है कि बिल फोर्ड ने टिप्पणी की कि टाटा मोटर्स को कार इंडस्ट्री के बारे में जानकारी की कमी है और उसे इसमें कदम नहीं रखना चाहिए था, यहां तक कि उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि फोर्ड उनके कार डिवीजन को अपने हाथ में लेकर उन पर एहसान करेगा.
1999 में अमेरिका में मिली शर्मनाक हार के बाद रतन टाटा के लिए यह राहत की घड़ी करीब एक दशक बाद आई. 2008 में, जब वर्ल्ड इकोनोमिक क्राइसेस के बाद फोर्ड दिवालिया होने की कगार पर थी, तब टाटा मोटर्स ने फोर्ड के प्रतिष्ठित जगुआर और लैंड रोवर ब्रांड को 2.3 बिलियन डॉलर में खरीदकर हालात को बदल दिया. इस साहसिक कदम ने न केवल फोर्ड को नीचा दिखाया, बल्कि वर्ल्ड वाइड ऑटोमोटिव इंडस्ट्री में अपनी जगह मजबूत करते हुए टाटा समूह के लिए एक महत्वपूर्ण जीत भी दर्ज की.