बिहार में AIMIM की बढ़ती लोकप्रियता से डरा RJD; पार्टी इस मुस्लिम नेता को सौंपेगी बड़ी जिम्मेदारी
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बिहार में AIMIM की बढ़ती लोकप्रियता से डरा RJD; पार्टी इस मुस्लिम नेता को सौंपेगी बड़ी जिम्मेदारी

सीमांचल में असदुद्दीन ओवैसी (Asduddin Owaisi) की पार्टी के पांच में से चार विधायकों को तोड़ने के बाद भी बिहार में एआईएमआईएम (AIMIM) को लेकर राजद का डर कम नहीं हुआ है. गोपालगंज उप चुनाव (Gopalganj By Election) में राजद (RJD) अपनी हार की वजह एआईएमआईएम को मानकर राज्य के मुस्लिम मतदाताओं पर अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए नई रणनीति बना रहा है. 

लालू प्रसाद और अब्दुल बारी सिद्दीकी

पटनाः बिहार में ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम (AIMIM) की बढ़ती लोकप्रियता और मुसलमानों का उसे मिल रहे समर्थन से मुस्लिम वोट बैंक (Muslim Vote Bank) पर जिंदा रहने वाली पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (RJD) में बेचैनी और छटपटाहट बढ़ती जा रही है. राजद ने सीमांचल से आने वाले ओवैसी के चार विधायकों को अपनी पार्टी में तो जरूर मिला लिया है, लेकिन हाल में गोपालगंज उप-चुनाव (Gopalganj By Election) में एआईएमआईएम की वजह से हुई राजद की हार का सदमा पार्टी बर्दाश्त नहीं कर पा रही है. राजद से यादव बिरादरी का एक बड़ा हिस्सा पहले ही निकलकर भाजपाई हो चुका है. ऐसे में राज्य के मुसलमान भी अगर ओवैसी की पार्टी की तरफ अपना समर्थन दिखाते हैं, तो इससे सबसे बड़ा नुकसान राजद का ही उठाना होगा, जबकि इसका थोड़ा-बहुत नुकसान जदयू को भी होगा.

क्या बिहार में टूट रहा है राजद का मुस्लिम-यादव समीकरण 
राजद शुरू से ही बिहार में मुस्लिम-यादव समीकरण को साध कर अपनी राजनीति करती रही है, लेकिन हाल के वर्षों में बिहार की सियासत में एआईएमआईएम के आने के बाद मुस्लिम मतदाता  पार्टी के लिए कमजोर कड़ी साबित हो रहे हैं. ओवैसी ने कई मौकों पर कहा है कि राज्य की सिक्यूलर पार्टिंयों ने सिर्फ मुसलमानों को अपना वोट बैंक बनाकर रखा है जबकि उनके हितों के लिए वह कोई काम नहीं करते हैं. आबादी के हिसाब से मुस्लिम उम्मीदवारों को चुनाव में टिकट भी नहीं देते हैं. ओवैसी की इस अपील का अब राज्य के मुस्लिम वोटर्स पर असर पड़ता दिखाई दे रहा है कि मुसलमान राजद, जदयू और अन्य सिक्यूलर पार्टियों के लिए दरी बिछाने का काम नहीं करेगा. मुसलमानों को आबादी के हिसाब से सत्ता में भागिदारी चाहिए. 

डैमेज कंट्रोल करने में जुटा राजद 
यही वजह है कि राजद ने डैमेज कंट्रोल करने और मुसलमानों को लुभाने के लिए राजद के प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अनुभवी नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी का नाम पेश किया है और इस पद के लिए सिद्दीकी का नाम लगभग तय माना जा रहा है. सिद्दीकी ने पिछले कुछ हफ्तों में दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव से दो बार इस सिलसिले में मुलाकात की थी और पार्टी सूत्रों की माने तो लालू प्रसाद ने नेता अब्दुल बारी सिद्दीकी के नाम पर अपनी आखिरी मुहर भ्ी लगा दी है. पार्टी सूत्रों ने बताया है कि राजद 24 नवंबर से पहले प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर अब्दुल बारी सिद्दीकी के नाम की आधिकारिक घोषणा कर देगी.  24 नवंबर को लालू प्रसाद यादव अपनी किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सिंगापुर जाना है. 

मुस्लिम मतदाताओं से नियंत्रण खो रहा है राजद 
पार्टी सूत्र के मुताबिक, आरजेडी का मुस्लिम मतदाताओं पर से नियंत्रण लगातार खोता जा रहा है. यह 2020 के विधानसभा चुनाव के दौरान देखा गया था जब असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाले एआईएमआईएम ने न सिर्फ मुस्लिम वोटों को काटा बल्कि सीमांचल इलाके की पांच सीटें भी जीतीं थी. वहीं, इस महीने गोपालगंज उपचुनाव में भी एआईएमआईएम के उम्मीदवार अब्दुल सलाम राजद के लिए वोट कटवा साबित हुए. सलाम को मिले वोट अगर राजद उम्मीदवार के खाते में गए होते तो गोपालगंज की सीट भाजपा के नहीं बल्कि राजद के खाते में जाती. 

प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह छोड़ना चाहते हैं अपना पद 
नाम न छापने की शर्त पर पार्टी के एक नेता ने कहा, ’’राजद ने अब्दुल बारी सिद्दीकी के जरिए यह संदेश देने की कोशिश की है कि पार्टी मुस्लिम नेताओं को खास महत्व दे रही है. राजद में प्रदश अध्यक्ष बदलने के हालात, इसलिए बन रहे हैं, क्योंकि मौजूदा प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह अपने ओहदे पर बने रहने के लिए तैयार नहीं हैं. जगदानंद सिंह पिछले कुछ हफ्तों में लालू प्रसाद यादव से तीन बार मुलाकात कर अपनी सेहत का हवाला देकर प्रदेश अध्यक्ष पद से मुक्त करने की बात कही है. 

किसी के खरीदे हुए नहीं है मुस्लिम वोटर्स 
बिहार में एआईएमआईएम के युवा नेता मोहम्मद शकील बताते हैं, ’’एआईएमआईएम सभी चुनावों में महागठबंधन खेमे से एलायंस करने की इच्छुक रहीं है, लेकिन सिक्यूलर पार्टिंयां एआईएमआईएम को इसलिए तवज्जों नहीं देती है कि मुस्लिम वोटर्स उनके खरीदे हुए वोटर्स हैं. लेकिन हाल के चुनावों में उन पार्टियों का ये भ्रम अब टूट चुका है. वह मुस्लिम नेतृत्व की तरफ ध्यान देने लगे हैं और एआईएमआईएम यही चाहती है.’’

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