सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह रियासतों और मरकज़ के ज़ेरे इंतज़ाम इलाकों की जिम्मेदारी है कि वे फंसे हुए प्रवासी मज़दूरों को सामुदायिक रसोई फराहम करें.
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना वबा के दौरान में प्रवासी मज़दूरों और कामगारों की मुश्किलों पर अज़ खुद नोटिस लेते हुए इस मामले कई हुक्म जारी किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अपने हुक्म में कहा है कि का जल्द से जल्द गौर मुनज्जम कामगारों का रजिस्ट्रेशन पूरा किया जाना चाहिए और पूरे मुल्क में कई रियासों के सभी संगठित मज़दूरों के लिए एक कौमी डेटाबेस तैयार किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की बेंच (जिसकी सदारत जस्टिस अशोक भूषण कर रहे थे और जिसमें जस्टिस एमआर शाह भी शामिल थे) ने हुक्म देते हुए कहा कि 'हमारा मानना है कि गैर मुनज्जम मज़दूरों के लिए एक कौमी डेटाबेस बनाने के लिए मिनिस्ट्री ऑफ लेबर एंड एम्प्लॉयमेंट की जानिब से शुरु किए गए अमल को रियासतों की हिमायत के साथ पूरा किया जाना चाहिए.
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने बयान में कहा कि '13 मई 2021 को हमारी जानिब से जारी किए हुक्म केमुताबिक, एनसीआर क्षेत्र में प्रवासी कामगारों और मज़दूरों को रियासतों की तरफ से सूखा राशन देने के सिलसिले में, सभी राज्यों को हलफ़नामा दाख़िल करने दें.' सुप्रीम कोर्ट ने अपने हुक्म में कहा कि मई और जून 2020 में प्रवासी मज़दूरों को सूखा राशन देने के लिए लागू की गई मरकजी हुकीमत की आत्मनिर्भर भारत योजना का इस्तेमाल किया जाना है या किसी दूसरे योजना का. यह रियासतों को फैसला लेना है लेकिन सूखे राशन को रियासतों की जानिब से पूरे मुल्क में प्रवासी मज़दूरों को तक्सीम किया जाना है.
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सुप्रीम कोर्ट ने अपने बयान में कहा, 'हम हुक्म देते हैं कि मुल्क भर में कोरोना की वजह फंसे प्रवासी कामगारों को आत्मनिर्भर योजना के तहत सूखा राशन फराहम कराया जाना चाहिए. या फिर किसी भी दूसरे योजना के तहत जो मुनासिब हो.'
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