Bengal Lok Sabha Chunav 2024: बंगाल में कांग्रेस पार्टी वामदलों के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. जबकि ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी और भाजपा चुनावी अखाड़े अकेले ताल ठोक रही है. लेकिम बंगाल की इस मुस्लिम बाहुल्य सीट पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं.
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West Bengal Lok Sabha Chunav 2024: पश्चिम बंगाल की मुर्शिदाबाद लोकसभा सीट हमेशा की तरह इस बार भी चर्चाओं का केंद्र बना हुआ है. बंगाल की मुस्लिम बहुल सीटों में से एक मुर्शिदाबाद सीट पर होने वाले चुनाव में मुकाबला काफी दिलचस्प होता दिख रहा है क्योंकि यहां से मौजूदा सांसद और तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के उम्मीदवार अबू ताहिर खान के खिलाफ चुनावी मैदान में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने अपनी राज्य इकाई के सेक्रेटरी मोहम्मद सलीम को मैदान में उतारा है. लेकिन अबू ताहिर सियासी प्रतिद्वंद्वी के रूप में सलीम के बजाय भाजपा प्रत्याशी गौरी शंकर घोष को तवज्जो देते हैं.
खान का कहना है कि चुनाव में उनका मुकाबला मुर्शिदाबाद के मौजूदा विधायक व भाजपा उम्मीदवार गौरी शंकर घोष से है. इस संसदीय इलाके को एक पिछड़े क्षेत्र के तौर पर देखा जाता है, जहां चुनाव के दौरान अक्सर हिंसा की खबरें लोगों को सुनने को मिलती हैं. लेकिन तीनों उम्मीदवार इस बात से सहमत हैं कि मुर्शिदाबाद जिले में हिंसा एक बड़ा मुद्दा है. हालांकि उन्हें लगता है कि आगामी लोकसभा चुनाव 2024 में इसका कोई खास असर नहीं पड़ेगा. क्योंकि उम्मीदवारों का मानना है कि वोटिंग के दौरान हिंसक गतिविधियां पंचायत चुनावों के दौरान ज्यादा होती हैं, जो पिछले आंकड़े भी बताते हैं. साल 2003 के बाद से जिले में सभी पंचायत चुनावों में हिंसा और कई मौतें हुईं हैं.
मुर्शिदाबाद का इतिहास
अंग्रेजों ने सन् 1757 में प्लासी की लड़ाई में नवाब सिराज-उद-दौला को हराया था, उससे पहले तक मुर्शिदाबाद बंगाल की राजधानी के तौर पर जाना जाता था. गौरवशाली अतीत होने के बावजूद मुर्शिदाबाद एक पिछड़ा इलाका बना हुआ है. हालांकि यहां के लोग हस्तशिल्प, रेशम और मलमल के काम को बखूबी जानते हैं. मुर्शिदाबाद के रहने वाले लोगों की बड़ी आबादी देश के अलग अलग हिस्सों में प्रवासी मजदूरों के रूप में काम करती है. बांग्लादेश सीमा से सटे मुर्शिदाबाद निर्वाचन क्षेत्र में कुल सात विधानसभा क्षेत्र आते हैं, जिनमें से छह भागाबंगोला, रानीनगर, मुर्शिदाबाद, हरिहरपारा, डोमकल और जलांगी मुर्शिदाबाद जिले का हिस्सा हैं. जबकि करीमपुर विधानसभा नादिया जिले में स्थित है.
ज्यादातर विधानभाओं में TMC का दबदबा
मुर्शिदाबाद विधानसभा इलाके को छोड़कर इस संसदीय क्षेत्र में आने वाली विधानसभा की सभी छह सीटों पर साल 2021 के विधानसभा चुनाव में राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी टीएमसी ने जीत हासिल की थी. मुर्शिदाबाद लोकसभा सीट पर साल 1980 से 2004 तक माकपा का कब्जा था, लेकिन साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इस सीट को हथियाने में कामयाब रही. लेकिन 2014 और 2019 के चुनाव में इस सीट पर क्रमश: माकपा और टीएमसी अपनी-अपनी जीत का पताका फहराने में कामयाब हुईं.
सियासी जानकरों का मानना है कि मुर्शिदाबाद निर्वाचन क्षेत्र सही मायने में साल 2000 के दशक की शुरुआत से ही इनमें से किसी भी पार्टी का गढ़ नहीं रहा है, जिसकी सबसे बड़ी वजह चुनाव के दौरान हिंसा हो सकता है. माकपा इस बार किसी जमाने में अपनी कट्टर प्रतिद्वंद्वी रही कांग्रेस के साथ मिलकर पश्चिम बंगाल में TMC और भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ रही है. माकपा की राज्य इकाई के सचिव और पार्टी के पोलित ब्यूरो मेंबर सलीम ने कहा कि स्थानीय जनता का प्रवासी मजदूरों के रूप में काम करना, संशोधित नागरिकता कानून (CAA) और टीएमसी के कुछ नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के इल्जाम जैसे कुछ प्रमुख मुद्दे हैं. उन्होंने कहा, "दो सत्ता विरोधी शक्तियां संयुक्त रूप से काम कर रही हैं, एक भाजपा के खिलाफ है और दूसरी टीएमसी के खिलाफ."
क्या कहता है सियासी समीकरण
टीएमसी ने पिछले साल 2019 के लोकसभा चुनाव में मुर्शिदाबाद सीट पर 41.57 फीसदी वोट हासिल कर शानदार जीत हासिल की थी, जबकि कांग्रेस को 26 फीसदी, भाजपा को 17.05 फीसदी और माकपा को 12.44 फीसदी मतों से संतोष करना पड़ा था. लेकिन इसबार पिछले साल की तुलना में सियासी समीकरण कुछ और ही बयां कर रही है. इसबार कांग्रेस और लेफ्ट के वोटरों को एक जगह लाकर खड़ा दें तो सलीम का पलड़ा भारी लग रहा है.
TMC का ये है दावा
वहीं, टीएमसी उम्मीदवार अबू ताहिर खान ने मुर्शिदाबाद सीट पर लगातार दूसरी बार सीट हासिल करने का विश्वास जताया. उन्होंने दावा करते हुए कहा कि निर्वाचन क्षेत्र में सलीम उनके लिए खतरा नहीं हैं. खान ने कहा, "मोहम्मद सलीम अपनी पार्टी के लिए कद्दावर नेता हो सकते हैं, लेकिन मुर्शिदाबाद में उनका कोई जमीनी आधार नहीं है." साल 2011 की जनगणना के मुताबिक, मुर्शिदाबाद जिले में 66 फीसदी से ज्यादा मुस्लिम आबादी है, जबकि हिंदओं की तकरीबन तादाद 33 फीसदी है.