There is exemption from Roza of Ramzan in some circumstances: रमजान का रोजा हर मुसलमान पर फर्ज करार दिया गया है. यानी इसे अनिवार्य तौर पर रखना ही है, लेकिन इसके बावजूद कुछ वैसी परिस्थितियां का भी जिक्र किया गया है, जिनमें कोई मर्द या औरत रोजा नहीं भी रख सकता है.
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नई दिल्लीः रोजा, इस्लाम धर्म के पांच बुनियादी सिद्धांतों में से एक है. हर बालिग, होशमंद और रोजा रखने की ताकत रखने वाले मर्द और औरत पर रोजा फर्ज किया गया है. बिना किसी ठोस रीजन के रोजा छोड़ने को बड़ा गुनाह बताया गया है. वहीं, रोजा रखने का दीन और दुनिया दोनों में बड़े फायदे बताए गए हैं. रोजा रखने वाला उतने सवाब का मुस्तहक बन जाता है, जितना वह सोच भी नहीं सकता है. पाक परवरदीगार रोजा रखने वाले को बेहिसाब सवाब देता है. रोज़ा रखने से इंसान का पाक परवरदिगार पर भरोसा कायम होता है. ईमान मजबूत होता है. इंसान का दुख दर्द और भूख- प्यास की शिद्दत महसूस करने वाला इंसान बनता है. वहीं, रोजा रखने से स्वास्थ्य से संबितध कई परेशानियां अपने-आप दूर हो जाती है.
रोजा रखने के इतने फायदे और अहमियत के बावजूद कुछ परिस्थितियों में लोगों को रोजा रखने से छूट भी दी गई. यानी कुछ हालात में रोजा नहीं रखने से इंसान गुनाह का भागिदार नहीं होगा. वह हालात सामान्य होने पर रमजान के रोजे के बदले में कज़ा रोजा रख सकता है. आईये जानते हैं कि वह कौन-सी परिस्थितियां हैं, जिसमें रोजा नहीं रखने की छूट है;
1. अगर कोई इंसान इतना बूढ़ा या कमजोर हो, जिसमें रोजा रखने की ताकत ही न हो. ऐसे लोग रोजा छोड़ सकते हैं. ऐसे लोग अगर रोजाना किसी भूखे और गरीब इंसान को खाना खिलाए तो उनके रोजे की अदायगी हो जाएगी.
2. अगर रोजा रखने से किसी बीमारी के बढ़ जाने, बीमारी के देर से ठीक होने या फिर बीमारी से जान का खतरा हो तो ऐसी हालत में रोजा नहीं रखना चाहिए. लेकिन इसके लिए किसी मजहबी शऊर रखने वाले डॉक्टर या माहरीन की राय जरूरी है. ऐसे लोग सेहत ठीक होने पर कजा रोजा रख सकते हैं. हालांकि, अपनी तरफ से ऐसा बहाना करके रोजा न रखना दुरुस्त नहीं है.
3. अगर डॉक्टर रोजा छोड़ने के लिए न भी कहे और खुद ऐसा लगे की रोजा रखने से बीमारी बढ़ सकती है, तो रोजा नहीं रखना चाहिए.
4. अगर मरीज बीमारी से ठीक हो गया हो, लेकिन उसे डर हो कि रोजा रखने से बीमारी के लौटने का खतरा हो तो रोजा न रखना जायज है.
5. अगर कोई सफर में हो तो उसे रोजा रखने से छूट है, लेकिन उसे बाद में कज़ा रोजा रखना होगा.
6. अगर सफर ट्रेन या किसी दूसरे ऐसी सवारी से किया जा रहा हो और जिसमें सभी सहूलतें मौजूद हों तो रोजा नहीं छोड़ना चाहिए, लेकिन अगर कोई छोड़ देता है और बाद में कजा रोजा रखता है, तो ये सूरतें भी जायज है.
7. हदीस में है कि अगर किसी ने सफर या बीमारी की वजह से रोजा छोड़ा और फिर बीमारी या सफर के दौरान ही उसकी मौत हो गई तो, आखिरत में उससे उस रोजे को कोई हिसाब नहीं होगा.
8. किसी गर्भवती औरत या बच्चे को दूध पिलाने वाली औरत को रोजा रखने से कोई दिक्कत हो रही हो तो वह रोजा छोड़ सकती है, लेकिन इसके बदले में बाद में कजा रोज रखना होगा.
9. औरत को अगर माहवारी शुरू हो गई है, तो उसके बंद होने तक रोजा नहीं रखने की छूट होती है. वह बाद में बदले में कज़ा रोजा रख सकता हैं.
10. अगर कोई शख्स पागल, मजनू हो जाए, किसी वजह से अपना होश-ओ-हवास खो दे... तो उस पर रोजा फर्ज नहीं है. अगर कोई ज्यादा बुढ़ापे की वजह से अल्जाइमर जैसे किसी ऐसी बीमारी का शिकार हो जाए, जिसमें इंसान की अक्ल व शऊर खत्म हो जाए, तो उस हालत में वैसे शख्स पर रोजा फर्ज नहीं है.
11. ऐसा कोई शख्स जो बहुत जिस्मानी काम करता हो, लगातार सफर में रहता हो, जैसे रेल, बस, ट्रक का चालक या कोई और पेशेवर जिसके लिए रोजा रखकर अपना फर्ज निभाना मुश्किल हो रहा हो, वह लोग बाद में रमजान के रोजे की कजा रख सकते हैं.
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