इस्लाम के आखिरी पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब अपने अनुयायियों को उनकी जरूरतों के मुताबिक या कोई मसला पेश आने के बाद उनका मार्गदर्शन करते थे, उनकी समस्याओं और जिज्ञासाओं का समाधान बताते थे. उन्होंने समय-समय पर ऐसी बातें कही जो इंसान और पूरी मानवता के लिए आदर्श बन गई हैं. उनपर अमल कर व्यक्ति एक बेहतर इंसान और नागरिक बन सकता है.
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जो लोग दूसरों पर दया नहीं करते हैं, अल्लाह उनपर दया नहीं करता है (मुस्लिम)
पैगंबर मोहम्मद साहब ने कहा, "जो लोग अल्लाह पर विश्वास करते हैं, उन्हें दयालू होना चाहिए." उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति दुनिया में दूसरे लोगों पर दया दिखाता है, उसपर ईश्वर दया करता है. पैगंबर ने कहा कि जो दूसरे के साथ दया और नरमी इरतने में विश्वास नहीं करता वह खुद के लिए भी अल्लाह से इसकी उम्मीद नहीं कर सकता है.
उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति भले ही कुरान के हर शब्द का पालन करता हो, लेकिन लोगों की छोटी-छोटी गलतियों को माफ नहीं करता हो और दूसरों के प्रति दयालु नहीं है तो वह इस्लाम का सच्चा अनुयायी नहीं हो सकता है. उन्होंने कहा कि अगर सर्वोच्च शक्ति ईश्वर अपने बंदों यानी अनुयायियों के गंभीर और जघन्य पापों को क्षमा कर सकता है, तो उसके अनुयायियों को भी आसपास में लोगों पर दया करने और उनकी गलतियों को अनदेखा करना चाहिए.
बुद्धि और ज्ञान जहाँ मिले उसे ले लें (तिर्मिजी-19)
पैगंबर मोहम्मद साहब की यह लोकप्रिय हदीस ज्ञान की खोज और उसके महत्व को परिभाषित करती है. इसमें पैगंबर ने जीवन में ईल्म और ज्ञान के महत्व को समझाने की कोशिश की है. उन्होंने कहा कि अगर किसी व्यक्ति के अंदर ज्ञान का अभाव है, तो उसका जीवन बेहतर नहीं हो सकता है. उन्होंने स्रोत की परवाह किए बिना सीखने और ज्ञान हासिल करने के लिए निरंतर प्रयास करने की जरूरत पर बल दिया है. उनका मानना था कि ईमान वालों के लिए बेहतर जीवन जीने के लिए ईल्म का होना निहायत ही जरूरी है.
धर्म बहुत आसान है इसे बोझ न बनाए (बुखारी )
अबू हुरैरा ने धर्म में संयम और सहिष्णुता को लेकर पैगंबर इस्लाम मोहम्मद साहब की एक हदीस का जिक्र करते हुए कहा था कि पैगंबर ने लोगों से धर्मांध बनने के बजाय धर्म की शिक्षाओं की मौलिक शिक्षाओं का समझने और उसपर अमल करने के लिए कहा है. उन्होंने धर्म को अपने कंधों पर बोझ न बनाने की सलाह दी थी और कहा था कि इसे संयम से पालन करना चाहिए. किसी चीज में अतिवादी या कट्टर बनने से बचना चाहिए.
अच्छे कर्मों का साधन बनना, अच्छे कर्म करने वालों के समान है (तिर्मिजी- 14)
पैगंबर साहब ने अपने अनुयायियों से किसी व्यक्ति को किसी सामग्री के रूप में इस्तेमाल करने और फिर काम खत्म होने पर उसे छोड़ देने को गलत बताया है. उन्होंने अनुयायियों को संबोधित करते हैं और उन्हें हर किसी अच्छे काम के लिए एक साधन बनने के लिए प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि अगर कोई किसी कर्म का भागी बनता है या उसे प्राप्त करने में मदद करता है, तो भागिदार बनना भी उतना ही अच्छा है जितना कि कर्म करना. उन्होंने कर्म से ज्यादा इरादों की पवित्रता पर जोर दिया है. उन्होंने लोगों से कहा कि आप उस प्रक्रिया का हिस्सा बने जो किसी और के जीवन में खुशी लाए. व्यक्ति के इस अमल से ईश्वर खुश होता है और उसे इनाम देता है.
सबसे बड़े पापों में से एक है किसी को गाली देना या कोसना (बुखारी)
इस हदीस में अब्दुल्ला बिन अम्र (रा.) ने जिक्र किया है कि किसी शख्स को किसी भी रूप में गाली देना पाप है. पैगंबर इसे सबसे बड़ी बुराई मानते हैं कि मानव जाति अपने ही जैसे किसी दूसरे व्यक्ति या उनके माता-पिता को गाली दे, उसके बारे में कोई अपशब्द कहे या उसे कोसे. यह एक-दूसरे प्राणी के प्रति घृणा और आक्रामकता को दर्शाता है. इस्लाम की कोई भी शिक्षा नफरत का समर्थन नहीं करती है, और इसलिए, हदीस ईमान वालों से गाली और श्राप से दूर रहने की ताकीद करता है.
अपने बच्चों को अच्छा संस्कार देने से बेहतर कोई उपहार नहीं है (तिर्मिजी- 33)
पैगंबर साहब का उपदेश था कि अच्छे संस्कारों के सिवाय माता-पिता अपने बच्चे को इससे बड़ा कोई उपहार नहीं दे सकते हैं. इसलिए बच्चों को अच्छे संस्कार और आचार-विचार और व्यवहार की शिक्षा दें. उन्हें सच्चा, दयायु और ईमानदार बनने की सीख देनी चाहिए.
Zee Salaam