पाकिस्तान: एक ऐसा त्योहार जिसमें महिलाएं चुनती हैं अपना पति, शादी से पहले रहती हैं लड़के के घर
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पाकिस्तान: एक ऐसा त्योहार जिसमें महिलाएं चुनती हैं अपना पति, शादी से पहले रहती हैं लड़के के घर

शादी से पहले लड़की कुछ हफ्तों या एक महीने के लिए लड़के के परिवार में जाती है और फिर जब वह घर वापस आती है तो वे शादी कर लेते हैं. यह उनका फैसला होता है कि वे क्या चुनते हैं. इसमें कोई दखल नहीं देता

Photographs:( The New York Times )

नई दिल्ली: पाकिस्तान में हिंदूकुश के पहाड़ों में रहने वाले एक छोटे समुदाय "कलश" के लोग नए साल के मौके पर अपना सबसे बड़ा त्योहार (चौमास) मनाते हैं. जिसमें लोग डांस करते हैं, पारंपरिक अनुष्ठान करते हैं, एक दूसरे से प्यार का इजहार किया जाता है और लड़कियां शादी के लिए लड़के भी तलाश करती हैं. 

Wion के मुताबिक इस समुदाय के लोगों का पवित्रता से गहरा रिश्ता है. गांवों और घाटियों के क्षेत्र जहां वे रहते हैं, उन्हें शुद्धता का प्रतीक माना जाता है. चौमास त्योहार पर भी पहले महिलाएं शुद्धिकरण के ही प्रोग्राम में शामिल होती हैं. इसमे महिलाएं पुरुषों के द्वारा बनाया गया खाना खाती हैं और घर से दूर मंदिर में रहती हैं. 

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उत्सव के दौरान युवा लोग अक्सर जीवनसाथी ढूंढते हैं. बताया जाता है कि इस मामले में महिलायें ही पहल करती है. Wion के मुताबिक एक 80 साल की महिला बीबी जान ने बताया,"शादी से पहले लड़की कुछ हफ्तों या एक महीने के लिए लड़के के परिवार में जाती है और फिर जब वह घर वापस आती है तो वे शादी कर लेते हैं." यह उनका फैसला होता है कि वे क्या चुनते हैं. इसमें कोई दखल नहीं देता.

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एक खबर के मुताबिक इस समुदाय में यह भी है कि महिलाएं ही अपना पति चुनती हैं और अगर शादी के बाद भी कोई दूसरा पुरुष पसंद आ जाए तो वो बिनी किसी रोक-टोक के दूसरे के साथ जा सकती है. इस समुदाय में औरतों पुरुषों के साथ ही बैठकर शराब भी पीती हैं.

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पीरियड्स या बच्चे की डिलीवरी के दौरान यहां भी महिलाएं अपने घरों में नहीं रहतीं बल्कि उन्हें कम्युनिटी होम में जाना होता है. यहां के कम्युनिटी होम नेपाल या कई अन्य देशों की तरह बदतर नहीं, बल्कि पक्के बने हुए घर होते हैं, जिसमें सारी सुविधाएं होती हैं.

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इस समुदाय की तुलना अक्सर हिंदू धर्म के प्राचीन रूप से की जाती है लेकिन कलश की उत्पत्ति एक रहस्य है. कुछ लोगों का मानना ​​है कि वे सिकंदर महान की सेना से हैं. जबकि मनोवैज्ञानिक मानते हैं कि वे पाकिस्तान की सीमा से लगे अफगानिस्तान के प्रवासी हैं.

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खबरों के मुताबिक साल 2018 से पहले इस जाति को कोई नहीं जानता था. पहली 2018 में हुई जनगणने के दौरान इन्हें इस जनजाति का पता चला. उस वक्त इनकी 4000 के करीब तादाद बताई गई थी. 

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