भारत की पहली रोहिंग्या मुस्लिम लड़की बनी ग्रेजुएट, डर के साए में हासिल की शिक्षा
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भारत की पहली रोहिंग्या मुस्लिम लड़की बनी ग्रेजुएट, डर के साए में हासिल की शिक्षा

Rohingya Muslim: भारत में सालों से तकरीबन 20 हजार रोहिंग्या मुस्लिम रह रहे हैं. इनमें से तस्मीदा पहली ऐसी रोहिंग्या हैं जिन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट किया है. वह एक्टिविस्ट बनना चाहती हैं.

 

भारत की पहली रोहिंग्या मुस्लिम लड़की बनी ग्रेजुएट, डर के साए में हासिल की शिक्षा

Rohingya Muslim: भारत में कई जगहों पर रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं. इनमें से तस्मीदा जौहर वह वहिद रोहिंग्या हैं जिन्होंने स्नातक किया है. उनका कहना है कि वह इन दिनों विरोधी भावनाओं से गुजर रही हैं. तस्मीदा ने दिल्ली के पास रहकर दिल्ली यूनिवर्सिटी से स्नातक किया है. 

तस्मीदा जौहर ने एक न्यूज वेबसाइट को बताया कि "इस बात से मैं खुशी महसूस करती हैं कि पहले ये, पहले वो, लेकिन इसी वक्त मैं दुखी भी हूं. मैं खुश हूं क्योंकि यह मेरी कामयाबी है. लेकिन इससे मैं दुखी हूं कि जिस मकाम पर तमाम रोहिंग्या लड़कियां आना चाहती हैं वहां मैं पहली हूं." 

दरअसल, रोहिंग्या मुस्लिम म्यांमार की अल्पसंख्यक आबादी है. साल 2017 में म्यांमार में सैन्य कार्रवाई हुई जिसकी वजह से उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा. संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक यह सैन्य कार्रवाई नरसंहार के इरादे से की गई थी.

ज्यादातर रोहिंग्या मुसलमान भागकर बांग्लादेश में जा बसे. वह यहां के कोक्स बाजार जिला में बसे. यहां पर दुनिया का सबसे बड़ा रिफ्यूजी कैंप बनाया गया है. यहां एक मिलियन से ज्यादा रिफ्यूजी टाट और बांस से बने तंबू में रहते हैं. 

संयुक्त राष्ट्र संघ के मुताबिक तकरीबन 20 हजार रोहिंग्या मुसलमान भारत में शरणार्थी के तौर पर पनाह लिए हुए हैं. इनमें से कुछ लोग साल 2017 से पहले आए हैं. हजारों की तादाद में रोहिंग्या मुस्लिम नई दिल्ली के बाहरी इलाकों में रह रहे हैं.

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इल्जाम है कि साल 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता पर काबिज हुई तब से रोहिंग्या मुसलमानों को अभद्र भाषा और हमलों का भी सामना करना पड़ा है. पिछले साल सरकार ने कहा था कि रोहिंग्या मुसलमानों को तब तक हिरासत शिविरों में रखा जाएगा जब तक कि उन्हें वापस म्यांमार नहीं भेज दिया जाता.

तस्मीना का कहना है कि उन्हें दो बार दरबदर होना पड़ा. मियांमार में तस्मीना फातमा के नाम से पैदा हुईं थीं. लेकिन उनके मां-बाप पर उनका नाम बदलने पर जोर डाला गया. उनके मां बाप को उनका नाम बदलना पड़ा क्योंकि अगर म्यांमार में आपका बौध्ध नाम नहीं है तो आप स्कूल नहीं जा सकते हैं. उन्होंने आगे बताया कि अगर म्यांमार में अधिकारियों को पता चला कि एक मुसलमान कारोबार कर रहा है तो उसे जेल हो जाएगी. 

साल 2012 में म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों को निशाना बनाया गया. इसमें जौहर के पिता को भी गिरफ्तार किया गया. इसके बाद उनके परिवार ने भारत आने का फैसला किया. वह लोग पहले हरियाणा आए. वहां उन्हें पढ़ाई का कोई साधन नहीं मिला. इसके बाद वह दिल्ली के कालिंदी कुंज कैंप में आकर बस गए. इसके बाद उन्होंने पढ़ाई शुरू की. तस्मीदा ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है. 

जोहर उन 25 शरणार्थी छात्रों में शामिल हैं जिन्हें यूएनएचसीआर-डुओलिंगो कार्यक्रम द्वारा वंचित और अकादमिक रूप से उज्ज्वल व्यक्तियों को उच्च शिक्षा हासिल करने में मदद करने के लिए चुना गया है. वह कनाडा में विल्फ्रेड लॉयर यूनिवर्सिटी से स्वीकृति पत्र का इंतजार कर रही हैं.

जौहर ने वेबसाइट को बताया कि वह आगे चलकर सामाजिक कार्यकर्ता बनना चाहती हैं. वह पढ़ाई के हक के लिए काम करना चाहती हैं. वह लड़कियों की तस्करी के खिलाफ आवाज उठाना चाहती हैं. उन्होंने कहा कि "मेरा सपना है कि मैं इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस जाऊं और उन्हें रोहिंग्या शरणार्थियों की दुर्दशा के बारे में बताऊं."

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