नीरव मोदी इन दिनों चर्चा में है. दरअसल, पीएनबी में हुए 11 हजार करोड़ के फ्रॉड ने सबको हिला कर रख दिया है. शेयर बाजार से लेकर बैंकिंग सेक्टर तक इस महाघोटले से सकते में हैं.
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नई दिल्ली: नीरव मोदी इन दिनों चर्चा में है. दरअसल, पीएनबी में हुए 11 हजार करोड़ के फ्रॉड ने सबको हिला कर रख दिया है. शेयर बाजार से लेकर बैंकिंग सेक्टर तक इस महाघोटले से सकते में हैं. वहीं, सबसे खास बात ये है कि इस घोटाले से बैंकिंग सिस्टम पर सवाल खड़े हो गए हैं. क्योंकि, फ्रॉड को देखकर लगता है कि बैंक ने रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस को फोलो नहीं किया. आरबीआई गाइडलाइंस के बावजूद पीएनबी ने इतना बड़ा लोन कैसे दिया? आपको बता दें यह पहली बार नहीं है जब पीएनबी को इतना बड़ा झटका लगा है. पांच साल पहले भी ऐसा ही एक घोटाले का बैंक शिकार हो चुका है. अब सवाल ये है कि पहले भी हीरा कारोबारी के झांसे में आकर पीएनबी को करोड़ों का नुकसान हुआ था. ऐसे में बैंक दोबारा कैसे झटका खा सकता है.
जतिन मेहता भी दे चुके हैं धोखा
विनसम डायमंड एंड ज्वैलरी लिमिटेड ग्रुप के जतिन मेहता भी हीरा कारोबार से जुड़े थे. पांच साल पहले उनके ग्रुप ने भी भारतीय बैंकों को कुछ इसी तरह धोखा देकर करोड़ों का फ्रॉड किया था. हालांकि, उस वक्त का मामला और बड़ा था, क्योंकि उस वक्त के इस हीरा कारोबारी ने कईं बैंकों का पैसा नहीं चुकाया था. उस वक्त भी सबसे ज्यादा नुकसान पीएनबी को हुआ था.
माल्या के बाद दूसरे सबसे बड़े डिफॉल्टर
जतिन मेहता को विजय माल्या के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा डिफॉल्टर घोषित किया गया. दरअसल, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की अंडरटेकिंग पर बैंकों ने विनसम ग्रुप को 7000 करोड़ रुपए का कर्ज दिया था. इसमें भी पीएनबी ने सबसे ज्यादा 1800 करोड़ का कर्ज दिया था.
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14 बैंकों से लिजा कर्ज
विनसम डायमंड ग्रुप ने 2011 में 14 बैंकों से 3420 करोड़ रुपए का कर्ज लिया. 2012 की पहली तिमाही तक इस कर्ज की सीमा को बढ़कर 4617 करोड़ रुपए कर दिया गया. यह सारा पैसा ग्रुप की तीन कंपनियों को दिया गया. विनसम डायमंड को 4366 करोड़ रुपए का कर्ज दिया गया. फोरएवर प्रिशियस डायमंड को 1932 करोड़ रुपए का कर्ज दिया गया. वहीं, सूरज डायमंड्स को 283 करोड़ का कर्ज दिया गया था.
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बैंकों ने लिया था पेमेंट का जिम्मा
इकोनॉमिक टाइम्स में छपी एक खबर के मुताबिक, 2011 में बैंकों ने विनसम डायमंड को लेटर्स ऑफ क्रेडिट जारी किया था. एसबीएलसी इंटरनेशनल बुलियन बैंक्स को यह लेटर जारी किया गया था. दरअसल, एसबीएलसी इंटरनेशनल बुलियन बैंक ही विनसम ग्रुप को सोने की सप्लाई करती थी. .
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क्या था लेटर ऑफ क्रेडिट
बैंकों की ओर से विनसम को दिए गए लेटर्स ऑफ क्रेडिट का मतलब था कि अगर ग्रुप एसबीएलसी इंटरनेशनल बुलियन बैंक्स को सोने का भुगतान नहीं करती तो बैंक उसकी पेमेंट करेंगे. बैंकों ने उसे कर्ज दिया. विनसम ग्रुप ने पैसा नहीं चुकाया. रीपेमेंट का दबाव लगातार बढ़ा.
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विनसम ने नहीं चुकाया कर्ज
विनसम ग्रुप के क्लाइंट्स को बड़ा नुकसान हुआ. इसके बाद विनसम ने बैंकों को पेमेंट करने से इनकार कर दिया. उसने तर्क दिया की क्लाइंट को नुकसान होने की वजह से वह रीपेमेंट नहीं कर पाएगी. तभी बैंकों को बड़ा झटका लगा.
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नीरव मोदी वाले ही थे हालात
नीरव मोदी मामले में भी हालात पांच साल पहले वाले ही हैं. पीएनबी ने सीबीआई को जो तर्क दिया है वो भी वैसा ही है जैसा विनसम ग्रुप के समय पर था. उस घोटाले के बाद से जतिन मेहता का परिवार कभी भारत नहीं लौटा. खबरों की मानें तो मेहता परिवार सिंगापुर में सेटल है और परिवार के कुछ सदस्य दुबई में हैं. जतिन मेहता पर 7 हजार करोड़ लेकर फरार होने का आरोप है और 2012 से उनकी कोई खबर नहीं है.
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पनामा पेपर्स में भी नाम
पनामा पेपर्स ने भी अपनी लिस्ट में जतिन मेहता का नाम शामिल किया था. उसके मुताबिक, जतिन मेहता ने बैंकों से लिए कर्ज का इस्तेमाल बहामास में किया, जहां उन्होंने कई जगह निवेश किया. खबरों के मुताबिक, मेहता परिवार ने 2012 में भारत छोड़ा और उसके बाद सिंगापुर, दुबई में रहे, लेकिन 2016 में मेहता परिवार फिर चर्चा में आया जब यह बात सामने आई कि जतिन मेहता ने सेंट किट्स एंड नेविस की नागरिकता ली. बता दें कि सेंट किट्स और नेविस के साथ भारत का कोई प्रत्यर्पण समझौता भी नहीं है.