निपाह वायरस वाले 1 करोड़ चमगादड़ों का 'आतंक', सिर्फ फल खाने आते हैं यहां
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निपाह वायरस वाले 1 करोड़ चमगादड़ों का 'आतंक', सिर्फ फल खाने आते हैं यहां

केरल में फैले निपाह वायरस के बाद से चमगादड़ अचानक से सुर्खियों में आ गए हैं. दरअसल, चमगादड़ों को ही निपाह वायरस का प्रमुख कारण माना जा रहा है. 

केरल में फैले निपाह वायरस के बाद से चमगादड़ अचानक से सुर्खियों में आ गए हैं.

केरल में फैले निपाह वायरस के बाद से चमगादड़ अचानक से सुर्खियों में आ गए हैं. दरअसल, चमगादड़ों को ही निपाह वायरस का प्रमुख कारण माना जा रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक, चमगादड़ की एक नस्ल जिस फल को खाते हैं उनमें उनका लार्वा रह जाता है. ऐसे फल अगर बाजार में आ जाए या कोई इन्हें खा ले तो वह निपाह वायरस की चपेट में आ सकता है. केरल में भी कुछ ऐसे ही मामले सामने आए जहां 10 लोगों की इस वायरस की वजह से मौत हो चुकी है. लेकिन, एक देश ऐसा भी है जहां 1 करोड़ चमगादड़ एक साथ इकट्ठा होते हैं और सिर्फ फल खाने के लिए यहां पहुंचते हैं. अफ्रीकी एजेंसियों के मुताबिक, इनमें हर नस्ल के चमगादड़ होते हैं, निपाह वायरस फैलाने वाली नस्ल हालांकि कम है, लेकिन इनमें वो भी शामिल हो सकते हैं.

  1. चमगादड़ों को निपाह वायरस का प्रमुख कारण माना जा रहा है
  2. चमगादड़ की एक नस्ल की वजह से निपाह वायरस फैलता है
  3. अफ्रीका के जाम्बिया में 1 करोड़ चमगादड़ सिर्फ फल खाने आते हैं

अचानक आते हैं 1 करोड़ चमगादड़
अफ्रीकी देश जाम्बिया का कासान्का नेशनल पार्क अक्टूबर के अंत में अचानक 1 करोड़ से ज्यादा चमगादड़ों से भर जाता है. ऐसा लगता है जैसे किसी बड़ी सेना ने कहीं हमला किया हो. इस पार्क में इन स्तनपायी जानवरों का पहुंचना दुनिया के सबसे बड़े मैमल ट्रांसफर की मिसाल है. दुनिया भर में चमगादड़ों के बसेरे धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. शायद इसलिए वे दूर-दूर से अफ्रीका के उत्तरी हिस्से में स्थित वर्षावन में पहुंचते हैं. ये चमगादड़ कॉन्गो और जाम्बिया के दूसरे हिस्सों से आते हैं. वे यहां इसलिए आते हैं क्योंकि उन दिनों यहां जंगल में बहुत सारे फल पकने लगते हैं. वे यहां स्थानीय मासुकू और मिर्टेन फलों के अलावा आम और केला या कोई भी फल जो उन्हें मिल जाए खाते हैं.

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चमगादड़ों का सबसे बड़ा बसेरा
अफ्रीका न्यूज को दिए एक इंटरव्यू में कासान्का नेशनल पार्क के प्रमुख डियॉन स्कॉट बताते हैं, "मैं उन्हें जब भी देखता हूं, अद्भुत लगता है, जब सीजन के शुरू में चमगादड़ यहां आना शुरू करते हैं. हमने यहां आने का फैसला किया कि देखें कितने आए हैं. भले ही वे दस हजार हो या बीस हजार, ये जबरदस्त लगता है.” डियॉन स्कॉट के लिए चमगादड़ों के आने के साथ ही हाई सीजन शुरू हो जाता है. यह पार्क स्तनपायी जानवरों के लिए दुनिया का सबसे बड़ा अस्थायी बसेरा है. यह किसी को पता नहीं कि यहां के फलों में ऐसा क्या है जो करीब एक करोड़ चमगादड़ों को हर साल जाम्बिया के इस नेशनल पार्क की ओर खींचता है.

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खत्म हो रहे हैं चमगादड़ों के बसेरे
मुख्य चुनौती यह है कि उनके प्राकृतिक बसेरे खत्म होते जा रहे हैं. इसलिए वे जंगलों या अफ्रीका के इस हिस्से के वर्षावनों में रहने आते हैं. चमगादड़ों का जंगल अपने आप में बहुत ही छोटा है. एक किलोमीटर लंबा और करीब 500 मीटर चौड़ा. कासान्का के जंगलों को सबसे बड़ा खतरा आग से है. डियॉन स्कॉट बताते हैं, "इस साल के शुरू में जंगल के इस हिस्से में बहुत बड़ी आग लगी थी. यहां हर कहीं घास वाली जमीन है, इसलिए आग जमीन के अंदर लगी रहती है और यह पेड़ों की जड़ों को नष्ट करती रहती है. वे अंदर से जल जाते हैं.”

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खौफ में है कई गांव
एक तरफ जहां नेशनल पार्क चमगादड़ों के संरक्षण के बारे में चिंतित है. वहीं, आसपास के गांव वाले उनसे डरते हैं. वे उन्हें बीमारियों और जादू टोने से जोड़ कर देखते हैं. इसलिए संरक्षण प्रोजेक्ट के कर्मचारी पार्क के बाहर रहने वाले गांव वालों और स्कूली बच्चों को नियमित रूप से चमगादड़ देखने बुलाते हैं. इस तरह इन शाकाहारी जीवों के प्रति पूर्वाग्रह कम होते हैं. बच्चों के लिए अक्सर ये पहला मौका होता है जब वे चमगादड़ों के आने की प्राकृतिक घटना को अपने घर के सामने देखते हैं.

चमगादड़ों को बचाने की कोशिश
इको गाइड हिगालीन मुसाका कहते हैं, "जब ये बच्चे चमगादड़ों के बारे में सीख जाएंगे तो वे इस संदेश को अपने माता-पिता तक ले जाएंगे. यदि माता-पिता चमगादड़ों के बारे में जान जाएंगे तो भविष्य में कासान्का में बहुत सारे चमगादड़ होंगे. यहां गांव में बहुत से लोगों को चमगादड़ों के बारे में गलतफहमी है, क्योंकि वे निशाचर जीव हैं. इसलिए कुछ लोगों का कहना है कि चुड़ैलें उनकी मदद लेती हैं. लेकिन, उन्हें देखें तो पता चलेगा कि ऐसा नहीं है. वे बस चमगादड़ हैं."

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इको सिस्टम के लिए अहम चमगादड़
चमगादड़ हमारे इको सिस्टम में भी बहुत अहम भूमिका निभाते हैं. वे बहुत से शिकारी जानवरों के लिए चारा हैं. लेकिन, दूसरी ओर वे खुद पेड़ों के फल खाते हैं और उनके बीजों को जंगल में फैलाते हैं. वे हर रात 100 किलोमीटर तक का रास्ता तय करते हैं. जब से यह जंगल संरक्षित है वे कम से कम यहां चैन के दिन गुजार सकते हैं.

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