इमरजेंसी के दौर में वाजपेयी की वह 3 लाइनें...और दीवानी हो गई थी जनता
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इमरजेंसी के दौर में वाजपेयी की वह 3 लाइनें...और दीवानी हो गई थी जनता

वाजपेयी देश के जननेता माने जाते हैं. वे उन चंद नेताओं में से एक हैं, जिन्हें सुनने के लिए जनता की भारी भीड़ उमड़ती रही है. हिन्दी पर जबरदस्त पकड़ होने के चलते वे भाषणों में ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग करते जिसपर जनता दीवानी हो जाती थी.

अटल बिहारी वाजपेयी ने इमरजेंसी के दौरान जबरदस्त विरोध किया था.

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का निधन हो गया है. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के 93 वर्षीय दिग्गज नेता को किडनी ट्रैक्ट इंफेक्शन, यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन, पेशाब आने में दिक्कत और सीने में जकड़न की शिकायत के बाद 11 जून को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, दिल्ली (एम्स) में भर्ती कराया गया था. एम्स की ओर से जारी मेडिकल बुलेटिन में कहा गया कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शाम पांच बजकर पांच मिनट पर अंतिम सांस ली. यथासंभव प्रयास के बाद भी हम आज वाजपेयी को नहीं बचा पाए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार शाम करीब सवा सात बजे और गुरुवार दोपहर में वाजपेयी का हालचाल जानने के लिए एम्स गये थे. मोदी के अलावा रेल मंत्री पीयूष गोयल और भाजपा सांसद मीनाक्षी लेखी भी वाजपेयी का कुशक्षेम जानने अस्पताल पहुंचे थे. रात में केन्द्रीय मंत्री सुरेश प्रभु, जितेन्द्र सिंह, हर्षवर्द्धन और शाहनवाज हुसैन सहित कई नेता और मंत्री अस्तपाल गये थे. इससे पहले केन्द्रीय कपड़ा मंत्री स्मृति ईरानी भी वाजपेयी का हाल जानने अस्पताल गयी थीं. मधुमेह से ग्रस्त वाजपेयी की एक ही किडनी काम करती है. 2009 में उन्हें आघात आया था, जिसके बाद उन्हें लोगों को जानने-पहचानने की समस्याएं होने लगीं. बाद में उन्हें डिमेशिया की दिक्कत हो गयी.

 

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वाजपेयी देश के जननेता माने जाते हैं. वे उन चंद नेताओं में से एक थे, जिन्हें सुनने के लिए जनता की भारी भीड़ उमड़ती रही है. हिन्दी पर जबरदस्त पकड़ होने के चलते वे भाषणों में ऐसे-ऐसे शब्दों का प्रयोग करते जिसपर जनता दीवानी हो जाती थी. नेता प्रतिपक्ष का मौका हो, बतौर प्रधानमंत्री, संयुक्त राष्ट्र में भारत के वक्ता हों, हर मौकों पर अटल बिहारी वाजपेयी ने अपने भाषणों से दिल जीतने का काम किया है. वे अपने भाषणों में मौके के हिसाब से शब्द प्रयोग करते.

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साल 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर दी थी. विपक्षी दलों के नेताओं ने जोर-शोर से इसका विरोध किया था. भारी विरोध के बीच इंदिरा गांधी को झुकना पड़ा था और 1977 में चुनाव का ऐलान किया गया था. इमरजेंसी खत्म होने पर दिल्ली के रामलीला मैदान में रैली का आयोजन किया गया था. इस रैली में अटल बिहारी वाजपेयी भी पहुंचे थे. भाषण देने के लिए वे जैसे ही मंच पर खड़े हुए वहां 'इंदिरा गांधी मुर्दाबाद' और अटल बिहारी जिंदाबाद के नारे लगने लगे.

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अटल बिहारी वाजपेयी ने भीड़ को शांत रहने का इशारा किया. इसके बाद अपने खास अंदाज में थोड़ी देर शांत रहने के बाद कहा- 'बाद मुद्दत मिले हैं दीवाने.' इसके बाद वे फिर से शांत हो गए और अपनी आंखें मूंद ली. इसके बाद खचाखच भरे रामलीला मैदान में भीड़ दीवानी हो गई. पूरे वातावरण में जिंदाबाद का नारा गूंजायमान हो रहा था. इसके बाद वाजपेयी ने एक बार फिर से आंखें खोली और भीड़ को शांत रहने का इशारा किया. इसके बाद कहा- 'कहने सुनने को बहुत हैं अफसाने.' एक बार फिर से भीड़ नारे लगाने लगी. फिर वाजपेयी ने कहा- 'खुली हवा में जरा सांस तो ले लें, कब तक रहेगी आजादी भला कौन जाने.'

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इन तीन पंक्तियों में ही वाजपेयी ने इमरजेंसी खत्म होने की सारी प्रतिक्रिया जाहिर कर दी. इसके बाद भीड़ ने इतने नारे लगाए कि वाजपेयी को कुछ और कहने की जरूरत ही नहीं पड़ी. देश ने देखा कि वाजपेयी कितने करिश्माई नेता हैं. जनता किस कदर उन्हें सुनना चाहती है.

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