महबूबा मुफ्ती दे सकती थीं इस्‍तीफा, तो पहले ही BJP ने चला 'आखिरी दांव'?
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महबूबा मुफ्ती दे सकती थीं इस्‍तीफा, तो पहले ही BJP ने चला 'आखिरी दांव'?

रमजान के मौके पर कश्‍मीर घाटी में केंद्र ने आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान ऑपरेशन ब्‍लैकऑउट की घोषणा की थी.

महबूबा मुफ्ती (फाइल फोटो)

जम्‍मू-कश्‍मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन सरकार गिर गई है. बीजेपी के राष्‍ट्रीय महासचिव राम माधव ने घोषणा करते हुए कहा कि कश्‍मीर के मौजूदा हालात को देखते हुए बीजेपी अब महबूबा मुफ्ती के नेतृत्‍व में पीडीपी को समर्थन देने की स्थिति में नहीं है. उन्‍होंने महबूबा मुफ्ती पर आरोप लगाते हुए कहा कि हालिया दौर में आतंकवाद, हिंसा में इजाफा हुआ है और लोगों के मौलिक अधिकार खतरे में हैं. उन्‍होंने इसके उदाहरण के लिए पिछले दिनों पत्रकार शुजात बुखारी की हत्‍या का जिक्र किया. उन्‍होंने कहा कि ऐसी परिस्थिति में पीडीपी को समर्थन जारी रखने का कोई औचित्‍य नहीं है. हालांकि बीजेपी भले ही इन कारणों को सरकार से समर्थन वापसी के कारणों के रूप में बता रही है लेकिन सवाल उठना लाजिमी है कि क्‍या वाकई इन्‍हीं कारणों से तीन साल पुरानी यह गठबंधन सरकार गिर गई?

  1. जम्‍मू-कश्‍मीर में पीडीपी-बीजेपी गठबंधन टूटा
  2. बीजेपी ने समर्थन वापसी का ऐलान किया
  3. संघर्षविराम की अवधि को बढ़ाने के पक्ष में थी पीडीपी

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रमजान में सीजफायर
दरअसल रमजान के मौके पर कश्‍मीर घाटी में केंद्र ने आतंकवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे अभियान ऑपरेशन ब्‍लैकऑउट की घोषणा की थी. लेकिन इसका घाटी पर सकारात्‍मक असर नहीं पड़ा. पत्‍थरबाजी और आतंकवादी गतिविधियों में इजाफा हुआ. वरिष्‍ठ पत्रकार शुजात बुखारी की श्रीनगर के बीचोंबीच हत्‍या कर दी गई. उसके बाद रमजान खत्‍म होते ही 17 जून को सरकार ने संघर्षविराम की घोषणा को वापस लेते हुए कहा कि अब पहले की तरह ही आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई जारी रहेगी. सूत्रों के मुताबिक मुख्‍यमंत्री महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी इस फैसले के खिलाफ थी. पीडीपी अपनी खोई हुई सियासी जमीन को घाटी में हासिल करने के लिए इस संघर्षविराम को आगे बढ़ाए जाने के पक्ष में थी.

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जबकि केंद्र का आकलन था कि कश्‍मीर के हालात बदतर हो रहे हैं, इसलिए इसको बढ़ाया जाना उचित नहीं है. सूत्र यह भी कह रहे हैं कि महबूबा मुफ्ती इस मसले पर केंद्र के रुख से इस कदर खफा थीं और कश्‍मीर में संघर्षविराम की मियाद को आगे बढ़ाने की अपील के साथ खुद ही इस्‍तीफा देने के मूड मे थीं. अगर वह ऐसा करने में सफल हो जातीं तो वह संघर्षविराम खत्‍म करने के लिए केंद्र को कसूरवार ठहरातीं और खुद को शहीदाना अंदाज में पेश करतीं. पिछले एक साल से महबूबा मुफ्ती जनता में अपने लिए सहानुभूति पैदा करने के लिए लगातार कोशिशों में थीं.

आखिर क्‍यों?
तीन साल पहले जम्‍मू-कश्‍मीर में हुए चुनाव में राज्‍य की 87 सीटों में से पीडीपी को 28 और बीजेपी को 25 सीटें मिली थीं. उसके बाद महीनों की बातचीत के बाद मुफ्ती मोहम्‍मद सईद के नेतृत्‍व में पीडीपी-बीजेपी सरकार अस्तित्‍व में आई. मुफ्ती मोहम्‍मद सईद के इंतकाल के बाद गठबंधन सरकार के सामने चुनौतियों का दौर शुरू हुआ. कहा जाता है कि घाटी की अवाम ने इस गठबंधन को बेमेल माना. इस कारण उनकी पीडीपी से नाराजगी थी. कहा जाता है कि इसी कारण मुफ्ती मोहम्‍मद सईद के जनाजे में ज्‍यादा भीड़ नहीं थी. उसके बाद 2016 में आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्‍मीर घाटी में हिंसा का नया चक्र शुरू हुआ. पीडीपी की लोकप्रियता में भारी गिरावट दर्ज की गई.

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पीडीपी की नई नेता महबूबा मुफ्ती के रिश्‍ते पहले से ही कभी बीजेपी के साथ सहज नहीं रहे. कठुआ कांड के बाद यह तल्‍खी इस हद तक बढ़ गई कि बीजेपी को अपने उपमुख्‍यमंत्री समेत कई मंत्रियों के इस्‍तीफे लेने पड़े. उसके बाद रमजान में संघर्षविराम की घोषणा से महबूबा को थोड़ी राहत मिली. उन्‍होंने इस बात का क्रेडिट लेने की कोशिश भी की कि घाटी में अमन-शांति की वापसी के लिए वास्‍तव में उनके ही प्रयासों के कारण केंद्र ने संघर्षविराम लागू किया. लिहाजा यह विराम जितना ज्‍यादा चलता, उतना ही फायदा महबूबा मुफ्ती को मिलता और ऐसा नहीं होने पर वह इस्‍तीफे के जरिये अपनी खोई हुई सियासी जमीन को हासिल करने के मूड में थीं. लेकिन बीजेपी ने उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया.

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