रामनाथ कोविंद: दबे-कुचलों की बुलंद आवाज
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रामनाथ कोविंद: दबे-कुचलों की बुलंद आवाज

 रामनाथ कोविंद इस वक्त बिहार के राज्यपाल हैं. (file)

लखनऊ. दलित-शोषित समाज की आवाज बुलंद करके बीजेपी में उंचा मुकाम हासिल करने वाले रामनाथ कोविंद को एनडीए ने राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाकर एक 'मास्टर स्ट्रोक' खेला है. ऐसा इसलिए, क्योंकि ज्यादातर विपक्षी दल देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर किसी दलित को बैठाने का विरोध नहीं करना चाहेंगे. 

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फिलहाल बिहार के राज्यपाल हैं कोविंद

अपने लम्बे राजनीतिक जीवन में शुरू से ही अनुसूचित जातियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और महिलाओं की लड़ाई लड़ने वाले कोविंद इस वक्त बिहार के राज्यपाल हैं. उन्हें आठ अगस्त 2015 को बिहार का राज्यपाल बनाया गया था. 

बीजेपी का  'मास्टर स्ट्रोक' 

बीजेपी द्वारा साफ-सुथरी छवि और दलित बिरादरी से ताल्लुक रखने वाले कोविंद को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाना एक तरह से 'मास्टर स्ट्रोक' है. लगभग सभी दलों के सियासी गुणा-भाग में दलितों का अलग महत्व है. ऐसे में देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर दलित बिरादरी के व्यक्ति के चयन का विरोध करना किसी भी दल के लिए सियासी लिहाज से मुनासिब नहीं होगा.

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बीजेपी दलित मोर्चा के अध्यक्ष रह चुके हैं कोविंद

बीजेपी दलित मोर्चा और अखिल भारतीय कोली समाज के अध्यक्ष रह चुके कोविंद भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर भी सेवाएं दे चुके हैं. वाणिज्य से स्नातक कोविंद बेहद कामयाब वकील भी रहे हैं. उन्होंने साल 1977 से 1979 तक दिल्ली हाई कोर्ट में जबकि 1980 से 1993 तक सुप्रीम कोर्ट में वकालत की.

1994 में राज्यसभा के लिए चुने गए

सामाजिक जीवन में सक्रियता के मद्देनजर वह अप्रैल 1994 में राज्यसभा के लिए चुने गए और लगातार दो बार मार्च 2006 तक उच्च सदन के सदस्य रहे. अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी युग के रामनाथ कोविंद उत्तर प्रदेश में बीजेपी के सबसे बड़े दलित चेहरा माने जाते थे.

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यूपी से पहले राष्ट्रपति हो सकते हैं कोविंद
कोविंद अगर राष्ट्रपति चुने जाते हैं तो वह उत्तर प्रदेश से पहले राष्ट्रपति होंगे. कानपुर देहात के घाटमपुर स्थित परौंख गांव में एक अक्तूबर 1945 को जन्मे कोविंद राज्यसभा सदस्य के रूप में अनेक संसदीय समितियों में महत्वपूर्ण पदों पर रहे। खासकर अनुसचित जातिाजनजाति कल्याण सम्बन्धी समिति, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता तथा कानून एवं न्याय सम्बन्धी संसदीय समितियों में वह सदस्य रहे। 

वकील के रूप में गरीबों की मदद की
कोविंद ने साल 1997 में केंद्र सरकार द्वारा जारी आदेशों के अनुसूचित जाति-जनजाति के कर्मचारियों के हितों पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के खिलाफ आंदोलन में भी हिस्सा लिया और उनके प्रयासों से वे आदेश अमान्य कर दिए गए. एक वकील के रूप में कोविंद ने हमेशा गरीबों और कमजोरों की मदद की. खासकर अनुसूचित जातिाअनुसूचित जनजाति के लोगों, महिलाओं, जरूरतमंदों तथा गरीबों की वह फ्री लीगल एड सोसाइटी के बैनर तले मदद करते थे.

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संयुक्त राष्ट्र महासभा को किया संबोधित
कोविंद लखनउ स्थित भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय के प्रबन्धन बोर्ड के सदस्य तथा भारतीय प्रबंधन संस्थान कोलकाता के बोर्ड आफ गवर्नर्स के सदस्य भी रह चुके हैं. कोविंद ने संयुक्त राष्ट्र में भारत का प्रतिनिधित्व भी किया है और अक्तूबर 2002 में उन्होंने संयुक्त राष्ट्र महासभा को सम्बोधित किया था

कानपुर से है गहरा रिश्ता
सरल और सौम्य स्वभाव के कोविंद का कानपुर से है गहरा रिश्ता है. भले ही वह इस समय वह बिहार के राज्यपाल हों लेकिन कानपुर से लगातार उनका जुड़ाव रहा है. यही कारण है कि वह समय समय पर उत्तर प्रदेश का दौरा करते रहे हैं.

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