महात्मा गांधी का भारत
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महात्मा गांधी का भारत

काल की कठोर आवश्यकताएं महापुरुषों को जन्म देती हैं और घटाटोप अंधकार से घिरे समय में बिजली कौंध कर आगे बढ़ने का रास्ता दिखा जाती है। समय अपने नायकों को ढूंढ लेता है। ये नायक कभी कबीर, तुलसीदास, विवेकानंद तो कभी मार्टिन लूथर, नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी के रूप में हमारे सामने आते हैं।

आलोक कुमार राव
काल की कठोर आवश्यकताएं महापुरुषों को जन्म देती हैं और घटाटोप अंधकार से घिरे समय में बिजली कौंध कर आगे बढ़ने का रास्ता दिखा जाती है। समय अपने नायकों को ढूंढ लेता है। ये नायक कभी कबीर, तुलसीदास, विवेकानंद तो कभी मार्टिन लूथर, नेल्सन मंडेला और महात्मा गांधी के रूप में हमारे सामने आते हैं।
अलग-अलग समय में दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अनेक महापुरुष पैदा हुए और उन्होंने अपने समाज की विषमताओं और चुनौतियों से संघर्ष करते हुए लोगों को मानवता के पथ पर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया और बेहतर समाज की संरचना के लिए एक जीवन-दर्शन प्रस्तुत किया। इन महापुरुषों ने समाज को मूल्यहीनता के गर्त में जाने से बचाया।
ऐसे समय में जब नैतिकता, चरित्र, ईमानदारी और निष्ठा जैसे मूल्यों पर कुठाराघात हो रहे हों और उत्तराधुनिक प्रत्यय का तर्क देकर इन मूल्यों पर सवाल उठाया जा रहा हो तो महात्मा गांधी बरबस याद आते हैं। व्यक्ति और राष्ट्र किन मूल्यों को अपनाकर श्रेष्ठता के शिखर पर पहुंच सकते हैं महात्मा गांधी ने इसकी ओर बार-बार याद दिलाया है।
समाज को समरसता के रास्ते पर ले जाने के लिए कुछ नियम, आदर्श, सिद्धांत और दर्शन होते हैं। समाज की सरणियां एवं व्यवस्थाएं आदर्श, विचारधारा और जीवन मूल्यों से अनुशासित और अनुप्राणित होती हैं। महात्मा गांधी इन बातों से भलीभांति परिचित थे। समाज में आज जो भी कुरीतियां, समस्याएं और चुनौतियां व्याप्त हैं, हमें इन सबका निदान गांधी-दर्शन में मिलता है।
गांधी जी के अहिंसा मंत्र का लोहा आज पूरी दूनिया मान रही है। दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को भी विश्व में शांति एवं स्थिरता के लिए महात्मा गांधी के सिद्धांत एवं दर्शन याद आते हैं।
कहा जाता है कि गांधी केवल नाम नहीं, बल्कि एक विचारधारा एवं दर्शन है। साम्र्नादायिक सौहार्द, अस्पृ श्यइता उन्मूालन, आर्थिक समानता और शिक्षा के क्षेत्र में उनके विचार आज भी प्रासंगिक हैं। हम पंद्रह अगस्त, 26 जनवरी और दो अक्टूबर को गांधी को विशेष तौर पर याद करते हैं। उनके विचारों, आदर्शों और जीवन दर्शन को सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट ‘फेसबुक’ पर शेयर करते हैं। इन मौकों पर गांधी के आदर्शों को बताने वाले लेख भी पढ़ने को मिलते हैं लेकिन उनके जीवन मूल्यों को हम अपने जीवन में कितना आत्मसात कर पाते हैं, यह अलग बात है।
गांधी ने जिस स्वतंत्र भारत की कल्पना की थी, उस भारत की झलक आज के ‘इंडिया’ में नहीं मिलती। जिस तर्ज पर गांव और ग्राम सभाओं का विकास करने का सपना गांधी जी ने देखा था वह पूरा नहीं हो सका है। राजनीति में जिस शुचिता, सेवाभाव, निष्ठा एवं चरित्र की आकांक्षा उन्होंने की थी उसका आज लोप हो गया है।
देश के बारे में बात करते हुए भी गांधी की दृष्टि से समाज के अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति ओझल नहीं हो पाता था। उनकी नजर में व्यक्ति उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि राष्ट्र। लेकिन आज की सरकार और सत्ता में कौन महत्वपूर्ण है यह बताने की जरूरत नहीं है।
गांधी ने बार-बार कहा कि असली भारत गांवों में बसता है। वह जानते थे कि जब तक गांवों का विकास नहीं होगा तब तक भारत अपने असली स्वरूप को नहीं पा सकेगा। वह गांवों को विकास की इकाई बनाना चाहते थे। उनका जोर स्वदेशी उद्योग पर था। वह सत्ता का विकेंद्रीकरण कर ग्राम सभाओं को अधिक से अधिक ताकत देने के हिमायती थे।
गांधी के जीवन-दर्शन से दूर हटते हुए भारत ने अपने विकास का जो रास्ता चुना वह कहीं न कहीं एकांगी हो गया। विकास का जो लाभ समाज के सभी तबकों को मिलना चाहिए था, वह नहीं मिला। आर्थिक असमानता की खाई धीरे-धीरे इतने चौड़ी होती गई कि उदारीकरण के बाद ‘इंडिया’ और भारत स्पष्ट रूप से दिखने लगे। सियासत और ‘क्रोनी कैप्टलिज्म’ आगे बाजार और अर्थव्यवस्था को किस ओर ले जाएंगे, इसके बारे में अभी संशय है। लेकिन इतना कहा जा सकता है अगर गांधी के सिद्धांतों को छोड़कर भारत पाश्चात्य देशों का अंधानुकरण बदस्तूर जारी रखा तो आने वाले दिनों में पूर्ण स्वराज्य को दूर 1947 में मिला स्वराज भी हाथ से चला जाएगा। (गांधी जयंती पर विशेष)

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