शिव सेना ने अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग को लेकर सस्पेंस बनाए रखा है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि पार्टी सरकार के पक्ष में वोट करेंगी.
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नई दिल्ली: शिवसेना ने आधिकारिक रूप से भले ही अविश्वास प्रस्ताव पर सस्पेंस बरकरार रखा हो, लेकिन सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार शिव सेना सरकार के समर्थन में वोट करने का मन बना रही है. दरअसल शिव सेना के अधिकांश सांसद ऐसा चाहते हैं और अब बताया जा रहा है कि पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे सांसदों की राय के साथ ही जाएंगे.
सूत्रों ने बताया कि शिवसेना के सांसदों का कहना है कि चूंकि अविश्वास प्रस्ताव टीडीपी द्वारा लाया जा रहा है, इसलिए पार्टी को उस प्रस्ताव पर बहुत अधिक महत्व नहीं देना चाहिए. सूत्रों ने कहा, 'सांसदों का मानना है कि टीडीपी के प्रस्ताव को महत्त्व नहीं देना चाहिए. इस बारे में शिवसेना सांसदों ने उद्धव ठाकरे से बात है.'
टीडीपी से नाराजगी
दरअसल शिवसेना सांसद टीडीपी नेता और पूर्व विमानन मंत्री अशोक गजपती राजू के व्यवहार से नाराज हैं. शिवसेना सांसद रवी गायकवाड़ पर एयर इंडिया की फ्लाइट से दिल्ली जाने के दौरान एयरलाइंस के मैनेजर के साथ बुरा व्यवहार का आरोप लगा था. शिव सेना सांसद उस समय अशोक गजपती राजू के व्यवहार से संतुष्ट नहीं हैं. तब टीडीपी से सह्योग नही मिला और रवी गायकवाड़ के हवाई जहाज से यात्रा करने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. शिव सेना सांसदों का कहा है कि इस वजह से टीडीपी के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करना चाहिए.
इससे पहले गुरुवार को शिव सेना नेता संजय राउत ने कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव के बारे में अंतिम निर्णय पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे करेंगे. हालांकि उन्होंने विपक्ष की शिकायतों का समर्थन भी किया. उन्होंने कहा, 'लोकतंत्र में सबसे पहले विपक्ष की आवाज सुनी जानी चाहिए, भले ही वो आवाज सिर्फ एक व्यक्ति की हो. जब जरूरी होगा हम (शिवसेना) भी बोलेंगे. वोटिंग के दौरान जैसे हमें उद्धव ठाकरे निर्देश देंगे, हम वैसा करेंगे.'
शिवसेना की रणनीति
माना जा रहा है कि अविश्वास प्रस्ताव की बहस के दौरान शिव सेना सरकार की आलोचना करने में पीछे नहीं रहेगी, लेकिन वो विपक्षी दलों के साथ जाकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोट नहीं करेगी. शिवसेना पहले भी केंद्र की मोदी सरकार और महाराष्ट्र में राज्य सरकार की आलोचना करती रही है. हालांकि दोनों ही जगह पार्टी सरकार में साझेदार है. केंद्र में बीजेपी के पास पर्याप्त संख्या बल है, लेकिन सहयोगी दलों का साथ उनके लिए महत्वपूर्ण है. ऐसे में यदि शिवसेना थोड़ा दबाव बनाने के बाद भाजपा को समर्थन देती है तो आगामी लोकसभा चुनावों के लिए शिवसेना मोलतोल करने की बेहतर स्थिति में आ जाएगी. यही शिवसेना की रणनीति भी है.