और कितनी निर्भया...
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और कितनी निर्भया...

सस्ते इंटरनेट ने हर हाथ में पॉर्न उपलब्ध कर दिया है जो लोगों को सेक्स को लेकर हिंसक बना रहा है

निदा रहमान

गुस्से से आंखे लाल है लेकिन रहा नहीं गया तो लिख रही हूं. खबर अभी अभी पढ़ी है. महाराष्ट्र के लातूर में एक औरत से गैंगरेप किया गया है. गैंगरेप के बाद उसके प्राइवेट पार्ट में पत्थर मारे गए हैं और फिर लोहे की रॉड डाली गई है.

पीड़ित महिला बीमार थी और इलाज के बाद अस्पताल से घर जा रही थी तभी रास्ते में ऑटो में तीन लोगों ने उसे घसीट लिया और फिर हैवानियत का खेल खेला. फिर से हेडलाइन देखी देश हुआ शर्मसार...हैवानियत की हदें पार आदि आदि. लेकिन इनसे क्या होगा, रोज़ाना कितनी महिलाएं बलात्कार का शिकार होती हैं. कहीं कोई किसी को फर्क नहीं पड़ता है.

दिल्ली में निर्भया कांड के बाद पूरा देश गुस्से में आ गया था, दिल्ली की सड़कों पर हज़ारों लोग उतर आए. खूब प्रदर्शन हुए, मोमबत्तियां जलीं, आंदोलन हुए, निर्भया के बलात्कारी और हत्यारों को फांसी की सज़ा भी हुई. बलात्कार को लेकर कड़े कानून की बहस चली, निर्भया से दरिंदगी करने वाले नाबालिग को लेकर नई बहस शुरु हुई कि इस तरह के अपराध में नाबालिग को कितनी उम्र की राहत मिलनी चाहिए. 

सरकार ने निर्भया फंड भी बनाया, पुलिस की निर्भया टीमें जगह-जगह तैनात की गईं लेकिन क्या हुआ इसका असर. आज लातूर से खबर आई है कल कहीं और से खबर आएगी. रोज़ाना ऐसी खबरें आती रहती हैं, कुछ दिन पहले ही हरियाणा में एक युवती के साथ दरिंदगी की गई थी. उसका शरीर क्षत विक्षित कर दिया गया था. 

बलात्कार के बाद महिला की योनी में पत्थर, कांच, बोलत, रॉड डालने की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. बलात्कारी अपनी हैवानियत की सारी हदें पार कर देता है. ना जाने ऐसी कौन से संतुष्टि बलात्कारियों को मिलती है कि वो महिला को टार्चर करता है. आखिर वो कौन सा सुख होगा जो एक महिला की योनी में लोहे की रॉड और पत्थर डालकर मिलता होगा. 

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बलात्कार को लेकर चाहे कितने भी कड़े कानून बना ले लेकिन कोई फांसी की सज़ा बलात्कारी की मानसकिता नहीं बदल सकती है. समाज में यौन कुंठा लगातार बढ़ रही है. सस्ते इंटरनेट ने हर हाथ में पॉर्न उपलब्ध कर दिया है जो लोगों को सेक्स को लेकर हिंसक बना रहा है. 

महिला के जिस्म में कांच, रॉड डालने वाले मानसिक रूप से विकृत होते हैं, उन्हें महिला की चीख और दर्द में सुकून मिलता है. सोचने की बात ये है कि इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और कोई कड़ा कानून बलात्कारियों में डर पैदा नहीं कर पा रहा है. 

दिल्ली या उससे जुड़े इलाके में जब भी कोई बलात्कार की घटना होती है तो पूरा मीडिया उसे उठाता है, डिस्कशन होते हैं, महिला सुरक्षा पर सवाल उठाए जाते हैं लेकिन देश की राजधानी के इतर रोज़ाना महिलाएं बलात्कार और यौन हिंसा का शिकार होती हैं कहीं कोई चर्चा नहीं होती है. 

देश की राजधानी दिल्ली है लेकिन बाकी देश में भी महिलाएं बहुत सुरक्षित नहीं हैं. ना वो हाईवे पर सुरक्षित हैं, ना वो अस्पताल में सुरक्षित हैं, ना वो बाज़ार में सुरक्षित है. इन पर भी चर्चा होनी चाहिए सिर्फ़ हेडलाइन बनाकर सनसनी फैलाने से कुछ नहीं होता है, बल्कि ऐसे मुद्दों पर लगातार विमर्श की ज़रूरत है.

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कहीं कोई विवाद हो सबसे पहले हाथ महिला के जिस्म पर जाता है. किसी से पुरानी दुश्मनी निकालती हो तो महिला से बलात्कार. किसी से बदला लेना हो, किसी को नीचा दिखाना हो तो निशाने पर महिला. महिला को सामान की तरह समझकर उसे ही लूटा जाता है और ये कोई नई बात नहीं है.
 
हर बार हम पश्चिमी संस्कृति के सिर पर ढीकरा नहीं फोड़ सकते हैं, हम आप कपड़ों को दोष नहीं दे सकते हैं. कुछ लोग बलात्कार को भी जस्टीफाई करते मिल जाते हैं, उनमें कुछ बड़े और ज़िम्मेदार लोग भी शामिल हैं. महिला का घर में रहना रास्ता नहीं है, असुरक्षित होते माहौल के लिए ज़रूरी नहीं कि घर में क़ैद रखा जाए लड़कियों को. जिम्मेदार मर्दों को बनना होगा. सुरक्षित समाज हमारी आपकी सबकी ज़िम्मेदारी है. 

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक विषयों पर टिप्पणीकार हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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