मेहनत ज्‍यादा, लेकिन वेतन में पुरुषों से पीछे हैं महिलाएं
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मेहनत ज्‍यादा, लेकिन वेतन में पुरुषों से पीछे हैं महिलाएं

मेहनत ज्‍यादा, लेकिन वेतन में पुरुषों से पीछे हैं महिलाएं

श्रम ज्यादा करें पर पारिश्रमिक पुरुषों से कम मिले; यह प्रमाण है व्यवस्था पर मर्दों के जबरिया कब्ज़े का. आंध्र प्रदेश में बुआई के काम के लिए पुरुषों को 276.5 रुपये मजदूरी मिलती है, जबकि महिलाओं को 206.5 रुपये (25.3 प्रतिशत कम) मजदूरी मिल रही है. बिहार में इस काम के लिए पुरुषों को 252.6 रुपये रोज मिल रहे हैं, पर महिलाओं को 214.6 रुपये. मध्यप्रदेश में पुरुषों को 193.6 रुपये और महिलाओं को 183.1 रुपये की मजदूरी मिल रही थी.

देश में मजदूरी में सबसे ज्यादा गैर बराबरी तमिलनाडु में 34.8 प्रतिशत (पुरुष- 359.2 रुपये और महिला- 234 रुपये), महाराष्ट्र में 33.3 प्रतिशत (पुरुष- 253.03 और महिला-169.39 रुपये) और केरल में 25.9 प्रतिशत (पुरुषों को 695.7 रुपये और महिला- 515.3 रुपये) है.

भारत के स्तर पर भी लैंगिक आधार पर मजदूरी भुगतान में 17 प्रतिशत (पुरुष 262.56 रुपये और महिला- 217.82 रुपये) का अंतर रहा. इसी तरह फसल कटाई के काम में आंध्र प्रदेश में महिलाओं को 209.7 रुपये मजदूरी मिल रही है, जबकि पुरुषों को 269.8 रुपये यानी 22.3 प्रतिशत कम. इस मामले में भी तमिलनाडु में सबसे ज्यादा असमानता दिखाई देती है. वहां महिलाओं (219.24 रुपये) को पुरुषों (394.9 रुपये) की तुलना में 44.5 प्रतिशत कम मजदूरी मिली. महाराष्ट्र में महिलाओं (165.79 रुपये) की तुलना में पुरुषों को (233.7 रुपये) 29 प्रतिशत ज्यादा मजदूरी दी गई. भारत के स्तर पर यह अंतर 16.1 प्रतिशत (पुरुष- 257.9 रुपये और महिला- 216.27 रुपये) का रहा.

उद्यानिकी (फल, फूल और सब्जी उत्पादन) के काम में भी तमिलनाडु में सबसे ज्यादा अंतर दिखाई देता है. वहां पुरुषों को (413.9 रुपये) महिलाओं (201.7 रुपये) की तुलना में 51 प्रतिशत ज्यादा मजदूरी मिली. निर्माण मजदूरी में भी लैंगिक असमानता प्रभावी रूप से मौजूद है. कर्नाटक में पुरुष निर्माण श्रमिकों को 327.5 रुपये की मजदूरी मिली, जबकि महिलाओं को 213.04 रुपये यानी 34.9 प्रतिशत कम. तमिलनाडु में इस क्षेत्र में भी व्यापक लैंगिक असमानता दिखाई देती है. वहां पुरुषों को 426.6 रुपये मिले, जबकि महिलाओं को 34.5 प्रतिशत कम यानी 279.29 रुपये. महाराष्ट्र में यह अंतर 28.9 प्रतिशत, गुजरात में 14.7 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 24.3 प्रतिशत और मध्यप्रदेश में 10.2 प्रतिशत रहा.

भारत के स्तर पर निर्माण मजदूरों को मिलने वाली मजदूरी में गहरी लैंगिक असमानता दिखाई देती है, जहां पुरुषों को औसतन 311.1 रुपये और महिलाओं को 221 रुपये की मजदूरी मिली और यह अंतर 28.9 प्रतिशत रहा.

गैर कृषि क्षेत्र (मसलन कुम्हार, हम्माल और अन्य मजदूरी) में सबसे ज्यादा अंतर महाराष्ट्र में (36.8 प्रतिशत) का है, जहां पुरुषों को 220 रुपये और महिलाओं को 139 रुपये मजदूरी मिली. आंध्र प्रदेश में यह अंतर 29.8 प्रतिशत रहा, जबकि तमिलनाडु में 31.3 प्रतिशत. मध्यप्रदेश में इस क्षेत्र में पुरुष मजदूरों को 194 रुपये और महिलाओं को 169 रुपये की मजदूरी मिली. भारत के स्तर पर गैर-कृषि क्षेत्र में पुरुषों को 266.38 रुपये और महिलाओं को 201.1 रुपये मजदूरी मिली यानी 24.5 प्रतिशत कम.

सबसे कम असमानता-सफाई स्वच्छता के श्रम में...

अब एक चौंकाने वाला निष्कर्ष, जिन 25 क्षेत्रों के लिए मजदूरी के आंकड़े इकट्ठे किए, उनमें से एक है- सफाई कर्मियों का. इन 25 में यही एक क्षेत्र है, जहां महिलाओं और पुरुषों को मिलने वाले वेतन/मजदूरी में सबसे कम असमानता रही. अखिल भारतीय स्तर पर पुरुषों को सफाई के काम के लिए 218.6 रुपये का भुगतान हुआ, तो महिलाओं को केवल 4.4 प्रतिशत कम यानी 209 रुपये का भुगतान हुआ. हम जानते हैं कि समाज में सिर पर मैला ढोने के काम में लगे समुदायों के भीतर 95 फीसदी काम महिलाओं के द्वारा ही कराया जाता रहा है. अपने आप में सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक-सांस्कृतिक अधिकारों के बीच गरिमा के साथ रोज़गार का सवाल बहुत संवेदनशील बना हुआ है.

तमिलनाडु में अन्य क्षेत्रों में मजदूरी के भुगतान में जबरदस्त लैंगिक असमानता दिखाई दी और पता चला कि वहां हर काम के लिए पुरुषों को महिलाओं की तुलना में 31 प्रतिशत से 51 प्रतिशत ज्यादा मजदूरी दी जा रही है, किन्तु जब सफाईकर्मी के काम का विश्लेषण किया गया तो पता चला कि वहां केवल इस काम के लिए महिलाओं को (260.4 रुपये) पुरुषों से 32.7 प्रतिशत ज्यादा वेतन (190.27 रुपये) दिया गया. इसी तरह गुजरात में भी सफाई के काम के लिए महिलाओं को 3.1 प्रतिशत ज्यादा वेतन दिया गया. बहरहाल यह ध्यान रखना जरूरी है कि उद्यानिकी, फसल कटाई, सामान्य कृषि कार्य और निर्माण मजदूरी के काम के तुलना में सफाई के काम के लिए सबसे कम मजदूरी/वेतन का प्रावधान रहा है.

दूसरा चौंकाने वाला निष्कर्ष; श्रम ब्यूरो के आंकड़ों और उनके दस्तावेजों का अध्ययन करने से लैंगिक असमानता का एक यह पक्ष भी उभरकर आता है कि कुछ क्षेत्रों में महिलाओं के लिए कोई स्थान ही नहीं है. यह बात सामने आ रही है कि कुछ 25 में से मजदूरी/श्रम वाले सात ऐसे क्षेत्र हैं, जिसमें महिलायें सक्रिय नहीं है. नलसाज, बिजलीकर्मी, राजमिस्त्री, लुहार, बढ़ई, व्यावसायिक वाहन चालक, समुद्र में मछली पकड़ना ऐसे काम हैं.. यह माना गया है कि इनमें महिलाओं ने आर्थिक भूमिका नहीं निभाई हैं, जबकि जुताई और पौध संरक्षण जैसे कामों में भी उनकी उपस्थिति नगण्य सी है.

श्रम मंत्रालय (भारत सरकार) के अधीन श्रम ब्यूरो मासिक आधार पर 25 व्यवसाय/आजीविका क्षेत्रों (जिनमें से 12 कृषि और 13 गैर-कृषि क्षेत्र हैं) क्षेत्र में दी जा रही मजदूरी का लिंगवार और राज्यवार आंकड़े संधारित करता है. ब्यूरो में यह काम वर्ष 1986-87 से शुरू किया था, लेकिन इसमें नियमितता अप्रैल 1998 से आई. श्रम ब्यूरो इन कामों के लिए दी जा रही मजदूरी के आंकड़े इकट्ठे करता है- (1) जुताई (2) बुआई, (3) फसल कटाई, (4) पत्तों की तुड़ाई और बिनाई, (5) उद्यानिकी और पौधशाला का काम, (6) समुद्र में मछली पकड़ना, (7) लकड़ी की कटाई का काम, (8) पशुपालन, (9) सामान्य कृषि श्रम-सिंचाई, (10) पौध संरक्षण, (11) बढ़ई, (12) लुहार, (13) राजमिस्त्री, (14) बुनकर, (15) बीड़ी श्रमिक, (16) डलिया बनाना, (17) नलसाज, (18) बिजली मिस्त्री, (19) निर्माण मजदूर, (20) व्यावसायिक वाहन-ट्रेक्टर चालक, (21) गैर-कृषि मजदूरी (22) नदियों में मछली पालन, (23) पैकेजिंग मजदूरी, (24) हस्तकला और (25) सफाई कर्मी.

सवाल यह है कि वर्तमान समय में लैंगिक समानता के नज़रिए से इन कामों के लिए क्या मजदूरी की दर समान है? जनवरी 2017 के लिए जारी मजदूरी दर के आंकड़ों का विश्लेषण करने से कुछ चौंकाने वाले निष्कर्ष उभर कर आते हैं.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और सामाजिक मुद्दों पर शोधार्थी हैं)

(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)

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