पूरे देश में करीब 4 प्रतिशत महिलाएं जेलों में बंद हैं और उनके साथ करीब 1800 बच्चे भी वहीं रहने को मजबूर हैं.
Trending Photos
मातृ दिवस पर खूब तस्वीरें खिंचीं. प्रचार हुआ. मांओं की वंदना में गीत हुए. बचपन को भी सम्मान मिला. लेकिन कुछ मांएं और कुछ बच्चे किसी को याद न आए. ये वे मांएं हैं जो जेलों में बंद हैं. ये वे बच्चे हैं जो अपनी मां या पिता के साथ जेल में हैं. पूरे देश में करीब 4 प्रतिशत महिलाएं जेलों में बंद हैं और उनके साथ करीब 1800 बच्चे.
जो अपराध करे, उसे कानून जेल में भेजे. अपराध मुक्त समाज को बनाने के लिए सामाजिक और राजनीतिक परिभाषा जेल को अपराध की सजा, पश्चाताप, सुधार और बदलाव से जोड़ती है. जेल में जाने वालों में स्त्री भी हो सकती हैं, पुरुष भी और यहां तक कि किन्नर भी. लेकिन उनका क्या जो किसी और के हिस्से के अपराध की सजा पाते हुए जेल में डाल दिए गए. जिन्हें अपराध का मतलब तक नहीं मालूम जो अ-घोषित अपराधी हैं और जिन्हें जेल भेज देने का पश्चाताप न सरकार को होता है और न ही कानून को या फिर समाज को.
कैद में महिलाएं और एक तिनका उम्मीद...
ये वो बच्चे हैं जो किसी परिस्थिति में अपनी मां या पिता के साथ जेल में आए हैं. इनमें से बहुत से बच्चों का जन्म जेल में हुआ. हां, सरकार ने नियम जरूर बना दिए कि जेल में पैदा होने वाले बच्चे के जन्म सर्टिफिकेट पर जेल शब्द नहीं लिखा जाएगा. भारतीय कानून के मुताबिक ये बच्चे अपने माता या पिता के साथ 6 साल की उम्र तक जेल में रह सकते हैं. इसके बाद इन्हें या तो किसी एनजीओ को सुपुर्द किया जाएगा या फिर इनका बचा-कुचा परिवार इनको अपने साथ ले जाएगा.
ताज्जुब की बात ये है कि मानवाधिकार की सारी कोशिशों के बावजूद जेल में रहे बच्चों की गिनती कहीं नहीं है. चूंकि जेल में पड़े बंदी वोट नहीं दे सकते, ये लोग राजनीति सरोकार की बहस का हिस्सा भी नहीं बन पाते. बिना किसी जन्मदिवस, त्यौहार या फिर एक संतुलित परिवार के ये बच्चे हवा में झूलते हैं. जेल के खुरदरे होते जाते स्टाफ, पसीने भरी बैरकों और बेहद सीमित साधनों के बीच घुट-घुट कर जीने वाली जेलों में रहते ये बच्चे पैदा होते ही बुजुर्ग हो जाते हैं. वैसे तो देश में महिलाओं के लिए अलग जेलें बनाने का प्रावधान भी है. लेकिन महज 17 फीसदी यानी तीन हजार महिलाओं को ही वहां रखने की जगह है. बाकियों को विभिन्न केंद्रीय जेलों और जिला जेलों में ही अलग बैरकों में रखा जाता है. ये जेलें भीड़ भरी होती हैं और बच्चों को किसी अलग कमरे में रखने का यहां कोई इंतजाम नहीं होता.
तिनका-तिनका : हाशिए के पार की एक दुनिया, जो खुद को सृजन से जोड़ रही है
वैसे भारत सरकार ने 1987 में जस्टिस कृष्ण अय्यर समिति का गठन किया था जिसका मकसद जेल की महिला कैदियों की स्थिति का आकलन करना और उसमें सुधार को लेकर अपने सुझाव देना था. इस समिति ने जेलों में महिला पुलिस की संख्या में बढ़ोतरी पर खास जोर दिया था और जेल में महिला बंदियों की सुरक्षा पर कई जरूरी सुझाव भी दिए थे. इस समिति ने महिला बंदियों और उनके बच्चों को लेकर भी जरूरी दिशा-निर्देश दिए थे. लेकिन इसके बावजूद स्थितियां बहुत बदल नहीं सकीं. राज्य सरकारों की ढिलाई काफी हद तक कायम रही.
अब जबकि सुप्रीम कोर्ट देश की 1382 जेलों की अमानवीय परिस्थति पर तवज्जो दे रहा है, जेल की महिलाएं और बच्चे फोकस में आ गए हैं. इस बार महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और राष्ट्रीय महिला आयोग को गौरव अग्रवाल के जरिए जो सलाहें भेजी गई, उनमें मेरी दी बाकी सलाहों के अलावा यह सलाह भी शामिल की गई है कि जेल के बच्चों का जन्मदिन भी मनाया जाए ताकि उनका बचपन और बचपन से जुड़ी यादें सुरक्षित रह सके.
तिनका तिनका : जेलों में बेकाबू 'भीड़' और सुप्रीम कोर्ट की जायज चिंताएं
बाहर रहने वाले लोगों को ये अंदाजा भी नहीं है कि जेल में रहने वाले बच्चे इस अलग संसार में जीते हैं. ये खरगोश, गाय और यहां तक कि बकरी को नहीं पहचानते. ये रिश्तों को नहीं पहचानते. रिश्तों के नाम पर इन्होंने अपने आस-पास जेल के बंदी देखे हैं या फिर पुलिस की वर्दी में आने वाले जेल के अधिकारी. ये इस परिवेश से जुड़ी मजबूरियों को ही अपना रिश्ता और नाता समझ लेते हैं. 6 साल के अपने प्रवास में जिंदगी के जो पल ये जेल में गुजारते हैं, वो ताउम्र इनकी यादों से दूर नहीं होती. लेकिन इसकी परवाह किसे है?
(डॉ. वर्तिका नन्दा जेल सुधारक हैं. देश की 1382 जेलों की अमानवीय स्थिति के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका की सुनवाई का हिस्सा हैं. जस्टिस एमबी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने जेलों में महिलाओं और बच्चों की स्थिति की आकलन प्रक्रिया में शामिल किया. जेलों पर एक अनूठी श्रृंखला- तिनका तिनका- की संस्थापक. खास प्रयोगों के चलते दो बार लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल. तिनका तिनका तिहाड़ और तिनका तिनका डासना- जेलों पर उनकी चर्चित किताबें.)
(डिस्क्लेमर : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं)