क्या भारतीय सेना केवल 'आर्मी डे' के दिन ही सम्मान के काबिल है?
Advertisement
trendingNow1365443

क्या भारतीय सेना केवल 'आर्मी डे' के दिन ही सम्मान के काबिल है?

संयुक्त राष्ट्र (UN) के लिए भी भारतीय सेना ने संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा सेना (UN Peace Keeping Force) में दुनिया के कई अशांत क्षेत्रों में अपने जवान भेजकर के विश्व-शांति बनाने के लिए सराहनीय योगदान दिया है. लेकिन इन सब के बावजूद बड़े ही खेद का विषय है कि आज-कल भारतीय सेना को गाली देना एक फैशन-सा बन गया है.

क्या भारतीय सेना केवल 'आर्मी डे' के दिन ही सम्मान के काबिल है?

भारतीय थल सेना 15 जनवरी को अपना 70वां सेना दिवस मना रही है. आज ही के दिन सन 1949 में भारतीय सेना पूरी तरह ब्रिटिश सेना से आजाद हो गई थी और फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा आजाद भारत के पहले सेना प्रमुख बने थे. उसके बाद से आज ही के दिन सेना दिवस मनाया जाता है. साल 1949 में भारतीय थल सेना में करीब 2 लाख सैनिक थे, जबकि आज वह संख्या 13 लाख से भी अधिक है. इस हिसाब से भारतीय फौज दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना है. स्वतंत्रता के सात दशकों बाद यदि भारतीय लोकतंत्र के चारों स्तम्भ- विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, और खबरपालिका (मीडिया) आज अगर मजबूती से खड़े हैं तो वह इसलिए क्योंकि उनको बाहरी एवं आंतरिक खतरों से सुरक्षित रखने के लिए भारतीय सेना मौजूद है. चाहे कैसी भी विषम परिस्तिथि हो, भारतीय सेना ने हर मोर्चे पर अपने साहस, शौर्य और कौशल का प्रदर्शन किया है. युद्ध के समय में अपने नागरिकों की सुरक्षा से लेकर तूफान, सुनामी आदि किसी भी प्राकृतिक आपदा में उम्दा राहत-कार्य कर के भारतीय सेना ने सबका दिल जीता है और जनता में सरकार के प्रति विश्वास बढ़ाने का बेहतरीन काम किया है. 

संयुक्त राष्ट्र (UN) के लिए भी भारतीय सेना ने संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षा सेना (UN Peace Keeping Force) में दुनिया के कई अशांत क्षेत्रों में अपने जवान भेजकर के विश्व-शांति बनाने के लिए सराहनीय योगदान दिया है. लेकिन इन सब के बावजूद बड़े ही खेद का विषय है कि आज-कल भारतीय सेना को गाली देना एक फैशन-सा बन गया है और अतिवादी-वामपंथी (ultra-left) विचारधारा की ओर झुकाव रखने वालों के लिए तो यह उनकी बौद्धिकता (intellectualism) का प्रतीक भी हो चुका है. 

दरअसल, अपने कुंठित और संकीर्ण दृष्टिकोण की वजह से उनको भारतीय सेना के बलिदान और त्याग कभी नजर नहीं आते हैं और ऐसे लोग देश के कई विश्वविद्यालयों में ‘रेपिस्ट इंडियन आर्मी’, ‘किलर इंडियन आर्मी’ जैसे नारे लगाने वालों का समर्थन भी करते हैं. सेना के ऊपर जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार के हनन का आरोप लगाने के बहाने वहां से सेना को हटाने की मांग करने वाले फाइव स्टार एक्टिविस्टों को कभी यह नहीं दिखाई पड़ेगा कि जम्मू-कश्मीर में सेना अगर इतनी भारी मात्रा में मौजूद है तो इसका कारण है वहां के नाजुक राजनीतिक हालत हैं, जिसके दम पर पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI वहां पर आतंकवाद और अलगावाद को बढ़ावा देती हैं. 

सेना वहां सीमा-पार आतंकवाद को रोकने और वहां की सरकारी व्यवस्था को सामर्थ और सुचारु बनाने के लिए लगाई गई है, ताकि आम कश्मीरी का जीवन अच्छा हो सके, न कि वहां पर मिलिट्री-रूल के लिए. यदि स्थानीय प्रशासन यह सब करने में इतना सक्षम होता तो सेना को वहां जाने की आवश्यकता ही न पड़ती. सेना वहां के कई बच्चों को अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य आदि सुविधाएं प्रदान करने के लिए अलग-अलग कार्य करती रहती है, जो ये लोग कभी देखना नहीं चाहते और सिर्फ आरोप लगाना चाहते हैं. देखा जाए तो सेना आज एक साथ कई मोर्चों पर लड़ रही है. लेकिन यह लड़ाई केवल शारीरिक नहीं बल्कि साइकोलॉजिकल भी है. बीते कुछ सालों से पाकिस्तानी सेना की ओर से लगातार सीजफायर का उलंघन किया जा रहा है, जिसमें सेना के कई जवान शहीद हुए हैं. 

दूसरी ओर पाकिस्तान की ओर से पोषित और समर्थित आतंकवादियों के द्वारा भी समय-समय पर आतंकी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. हालांकि इन सब के बीच अच्छी खबर तो यह है कि अब भारतीय सेना को इनका मुंह तोड़ जवाब देने के लिए दिल्ली का भी समर्थन प्राप्त है. इसलिए अब अगर पाकिस्तानी सेना की ओर से सीज फायर उलंघन किया भी जाता है तो भारतीय सेना भी बदले में गोलियों की बारिश करने में कोई कसर नहीं छोड़ती है. जम्मू कश्मीर में सेना ने ‘ऑपरेशन आल-आउट’ के अंतर्गत लगभग 200 से भी अधिक आतंकियों का सफाया कर दिया है और उसका यह ऑपरेशन अभी भी जारी है. उरी हमले का बदला लेते हुए भारतीय सेना ने जो ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ की थी उससे यह साफ संदेश गया की सेना भारत सरकार के एक आदेश पर दूसरे देश के अन्दर घुसकर भी दुश्मन को सबक सिखा सकती है. 

ये भी पढ़ें:  कांग्रेस-भाजपा के लिए आत्ममंथन का संदेश देता गुजरात विधानसभा चुनाव परिणाम

वहीं चीन भी अपनी बढ़ी हुई आर्थिक और सामरिक शक्ति के दम पर भारत को आंख दिखने की कोशिश कर रहा है और डोकलाम में बीते दिनों जो हुआ है वह आने वाले खतरे की मात्र एक घंटी समझी जानी चाहिए. प्रश्न यह है कि क्या हम सेना को उतना कुछ दे पा रहे जितना उसको मिलना चाहिए? सेना के हथियार बेहद पुराने हो चुके हैं और मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘मेक इन इंडिया’ भी सेना को स्वदेशी हथियार देने में बहुत अधिक सफल नहीं हुई है.

ये भी पढ़ें:  शौचालय पर एक 'सोच' 

fallback
आर्मी डे पर जनरल बिपिन रावत. तस्वीर साभार: PTI

सेना के लिए हथियारों की खरीद का मामला अक्सर नौकरशाही के पचड़ो में पड़ कर कछुआ चाल की गति से चलता है. उसके अलावा सेना को तथाकथित मानवाधिकार के ठेकेदारों से भी जूझना पड़ता है जो एक एजेंडे के तहत सेना के ऊपर बलात्कार, अतिरिक्त-अदालती हत्या (extra-judicial killing) आदि संगीन आरोप लगाकर सेना की छवि को धूमिल करने में लगे होते हैं. पाकिस्तान में घुसकर आतंकियों को खत्म करने के लिए की गई सर्जिकल-स्ट्राइक के सबूत मांगकर देश के कुछ नेताओं ने सेना की वीरता और पराक्रम का बहुत बड़ा अपमान किया है. 

ये भी पढ़ें:  भाजपा के हर फैसले पर हाय-तौबा मचाता है ‘उपद्रव उद्योग’

ज्ञात रहे भारतीय सेना विश्व की सबसे अधिक अनुशासित, नियमबद्ध और लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान करने वाली सेनाओं में से एक है. इसी कारण आज तक भारत में कभी भी तख्तापलट नहीं हुआ क्योंकि भारतीय सेना ने सदैव ही खुद को राजनीति से दूर रखा है. इस तथ्य की गंभीरता ऐसे संदर्भ में समझी जा सकती है कि उत्तर-उपनिवेशिक राज्यों (पोस्ट-कोलोनियल स्टेट्स) में से बहुत ही कम राज्य ऐसे हैं जहां पर स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद सेना की ओर से तख्तापलट करके लोकतंत्र को खत्म करने की कभी कोशिश न की गयी हो. इन्ही सब गुणों के लिए अगर भारतीय सेना का सम्मान करना है तो साल के हर दिन कीजिये, सेना दिवस का इंतजार मत करिए.

(लेखक जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में शोधार्थी हैं.)

Trending news