नई दिल्ली: महाराष्‍ट्र (Maharashtra Assembly Elections 2019) में सरकार बनाने की कवायदों के बीच भाजपा के विधायक दल की बैठक 30 अक्‍टूबर को मुंबई में होगी, जिसमें मुख्यमंत्री के लिए देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लगनी है.भाजपा-शिवसेना गठबंधन को स्‍पष्‍ट बहुमत मिलने के बावजूद 50-50 फॉर्मूले के पेंच के कारण भाजपा भले ही मुख्‍यमंत्री पद की कुर्सी के लिए फडणवीस के नाम पर मुहर लगा दे लेकिन फिलहाल आगे की सियासी तस्‍वीर बहुत साफ नहीं दिखती.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

हालांकि महाराष्ट्र में सरकार बनाने में जिस ढंग से शिवसेना मोलभाव पर उतरी है, उससे भाजपा के बड़े नेता हैरान नहीं हैं. भाजपा नेताओं का कहना है कि राजनीति में मोल-भाव बुरी बात नहीं है, जिसको जब मौका मिलता है, वह करता ही है. भाजपा नेताओं का मानना है कि शिवसेना कितना भी लड़े, आखिर में उसे सरकार भाजपा के साथ ही बनानी है.


महाराष्ट्र में शिवसेना-बीजेपी में रार, NCP क्यों नहीं देना चाहती किसी का साथ? पढ़ें इनसाइड स्टोरी


भाजपा के एक राष्ट्रीय महासचिव ने कहा, "राजनीति में डिमांड करना बुरी बात नहीं है. शिवसेना को मौका मिला है तो वह कर रही है. डिमांड करना शिवसेना का काम है और बातचीत के जरिए उसे सुलझाना हमारा काम है. मीडिया के लिए शिवसेना के बयान मायने रखते होंगे, हमारे लिए इसमें कुछ भी नया नहीं. हमें कितनी गालियां उन्होंने दी, फिर भी हम पांच साल तक साथ रहे न. जब 2014 में गठबंधन टूटने पर अलग-अलग चुनाव लड़ने के बाद भी हम एक साथ सरकार बनाए तो इस बार तो साथ-साथ चुनाव लड़े हैं. यहां शादी के बाद तलाक की गुंजाइश नहीं है."


मैं ही महाराष्‍ट्र का CM बनूंगा, शिवसेना से कभी 50-50 फॉर्मूले पर बात नहीं की: फडणवीस


LIVE TV



भाजपा सूत्रों के मुताबिक, शीर्ष नेतृत्व के स्तर से शिवसेना को संदेश दे दिया गया है कि उसे मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलने वाला, वह डिप्टी सीएम की पोस्ट से संतोष करे. एक वरिष्ठ नेता ने आईएएनएस से कहा, "शिवसेना को भी पता है कि उसे मुख्यमंत्री पद नहीं मिलने वाला. मगर शिवसेना मुख्यमंत्री पद को लेकर दबाव की राजनीति कर रही है. दरअसल, शिवसेना की रणनीति मुख्यमंत्री पद को लेकर दबाव कायम कर बदले में वित्त और गृह विभाग जैसे अहम महकमे अपने कब्जे में लेने की है. आदित्य ठाकरे का कद डिप्टी सीएम से ज्यादा का नहीं है."


देवेंद्र फडणवीस के बयान से शिवसेना नाराज , BJP के साथ होने वाली मीटिंग की रद्द


सूत्रों के अनुसार, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जिस आक्रामक अंदाज में शरद पवार फिर से शक्ति बनकर उभरे हैं, उससे एक ही विचारधारा पर खड़ी भाजपा और शिवसेना का एक-दूसरे के साथ रहना मजबूरी है. भाजपा के एक नेता ने कहा, "शिवसेना भले ही विकल्प खुले रहने की बात कह रही है, मगर उसे भी पता है कि कांग्रेस-एनसीपी के सहयोग से सरकार बनाने पर उसकी उग्र हिंदुत्व की राजनीति पर असर पड़ सकता है. जनता के बीच हिंदुत्व के मुद्दे पर वह पूरी तरह एक्सपोज हो जाएगी."


सूत्र बताते हैं कि शिवसेना के साथ आने पर कांग्रेस-एनसीपी की ओर से भाजपा को किसी भी कीमत पर सत्ता से दूर रखने के लिए आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री पद भी दिया जा सकता है. मगर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को यह डर है कि अगर बीच में कहीं आदित्य के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई तो फिर यह 'राजनीतिक भ्रूणहत्या' होगी. इन सब कारणों को देखते हुए उद्धव ठाकरे अच्छे मंत्रालय मिलने के बाद भाजपा के साथ ही सरकार बनाना मुफीद समझते हैं.


महाराष्ट्र: सांसद संजय काकड़े का दावा, 'BJP के संपर्क में हैं शिवसेना के 45 विधायक'


पार्टी सूत्रों के मुताबिक, भाजपा के सामने भी विकल्प नहीं है. कांग्रेस के साथ तो सरकार भाजपा बनाएगी नहीं. एनसीपी नेता शरद पवार के खिलाफ चुनाव के मौसम में ईडी ने जिस तरह से एक्शन किया, उससे भाजपा से रिश्ते खराब हुए हैं. कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली एनसीपी को भी लगता है कि अगर वह भाजपा के साथ गई तो माना जाएगा कि केंद्रीय एजेंसियों के डर से शरद पवार ने गठबंधन किया.


सूत्र बता रहे हैं कि इन सब परिस्थितियों के चलते आखिर में सरकार भाजपा और शिवसेना की ही बनेगी. विधानसभा चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव फिलहाल शिवसेना के साथ बातचीत सुलझाने में लगे हैं. पार्टी सूत्र बता रहे हैं कि जल्द अध्यक्ष अमित शाह के स्तर से उद्धव ठाकरे से बातचीत कर चीजें फाइनल होंगी.


(इनपुट: एजेंसी आईएएनएस के साथ)