Assembly Election 2023: इस क्षेत्र में करीबी मुकाबला देखने की भी संभावना है, क्योंकि बीजेपी अपना वर्चस्व बरकरार रखने और कांग्रेस दोबारा हासिल करने की कोशिश करेंगी, जबकि आप और अन्य पार्टियां उनके वोट आधार में सेंध लगाने की कोशिश करेंगी.
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Madhya Pradesh Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश का राजनीतिक परिदृश्य गर्म हो रहा है क्योंकि राज्य 17 नवंबर को विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है. बीजेपी और कांग्रेस मतदाताओं को लुभाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी जैसे उनके शीर्ष नेता प्रचार अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं. बीजेपी को अपना गढ़ बरकरार रखने का भरोसा है, जबकि कांग्रेस को वापसी की उम्मीद है.
चुनाव विभिन्न कारकों से भी प्रभावित होता है, जैसे बीजेपी के लिए सत्ता विरोधी लहर (जिसने पिछले दो दशकों में अधिकांश समय राज्य पर शासन किया है), उच्च बेरोजगारी दर और किसानों का संकट मुश्किल खड़ी कर सकती है.
बीजेपी 'लाडली बहना योजना' जैसी अपनी कल्याणकारी स्कीमों और प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता को भुना कर करके इन मुद्दों का मुकाबला करने की कोशिश कर रही है, जबकि कांग्रेस शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली सरकार की विफलताओं को उजागर करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है.
विंध्य क्षेत्र
समृद्ध विरासत की भूमि मध्य प्रदेश का विंध्य क्षेत्र इस चुनावी लड़ाई का बड़ा मोर्चा बनता जा रहा है. इस क्षेत्र में 30 सीटें हैं, जिन पर कब्जे का मतलब प्रदेश की सत्ता की चाबी का हाथ में होना है.
विंध्य क्षेत्र में पूर्वी मध्य प्रदेश के नौ जिलों - रीवा, शहडोल, सतना, सीधी, सिंगरौली, अनूपपुर, उमरिया, मैहर और मऊगंज - की 30 विधानसभा सीटें शामिल हैं.
विंध्य राजनीतिक रूप से विविधतापूर्ण और गतिशील क्षेत्र है जिसने वर्षों से विभिन्न दलों और विचारधाराओं के उत्थान और पतन को देखा है.
बीजेपी का दबदबा
यह क्षेत्र 2003 से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का गढ़ रहा है, जब उसने 30 में से 25 सीटें जीती थीं और शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में सरकार बनाई थी. बीजेपी ने 2008 और 2013 में अपना प्रदर्शन दोहराते हुए क्रमशः 24 और 23 सीटें जीतीं.
हालांकि, 2018 में, बीजेपी को एक झटका लगा क्योंकि वह कांग्रेस से छह सीटें हार गई, जो चार निर्दलीय, दो बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और एक समाजवादी पार्टी (एसपी) विधायकों के समर्थन से गठबंधन सरकार बनाने में कामयाब रही.
कांग्रेस की वापसी की उम्मीदें
कांग्रेस, जो कभी 1980 और 1990 के दशक में इस क्षेत्र पर हावी थी, अब बीजेपी के खिलाफ सत्ता-विरोधी कारक का फायदा उठाकर इस इलाके में फिर अपना वर्चस्व कायम करने की कोशिश कर रही है.
कांग्रेस का लक्ष्य अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बीच अपने समर्थन आधार को मजबूत करना है, जो इस क्षेत्र की आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. पार्टी ने पूर्व मुख्यमंत्री और क्षेत्र के एक प्रमुख नेता कमलनाथ को अपना प्रदेश अध्यक्ष और विपक्ष का नेता भी नियुक्त किया है.
वैकल्पिक राजनीति के लिए भी संभवानाओं से भरा क्षेत्र
विंध्य क्षेत्र बीएसपी, एसपी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) (सीपीआई (एम)) जैसी वैकल्पिक विचारधारा वाली पार्टियों के लिए भी उपजाऊ जमीन रहा है.
इस क्षेत्र ने रीवा संसदीय क्षेत्र से तीन बार बसपा सांसद और विभिन्न सीटों से पांच बार बसपा विधायक चुने गए हैं. सपा ने पहले भी इस क्षेत्र में दो सीटें जीती हैं.
सीपीआई और सीपीआई (एम) की भी इस क्षेत्र में उपस्थिति रही है, खासकर आदिवासी बहुल इलाकों में, और उन्होंने 1970 और 1980 के दशक में सीटें जीती हैं. हालांकि, हाल के वर्षों में इन पार्टियों के प्रभाव और वोट शेयर में गिरावट देखी गई है, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस मुख्य दावेदार के रूप में उभरे हैं.
मतदाताओं को प्रभावित करने वाले मुद्दे
विंध्य क्षेत्र 2023 के चुनावों में राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों के लिए एक जटिल और चुनौतीपूर्ण क्षेत्र है. यह इलाका न केवल जाति, समुदाय, विकास और नेतृत्व जैसे स्थानीय कारकों से प्रभावित होता है, बल्कि राष्ट्रीय और राज्य स्तर के मुद्दों, जैसे केंद्र और राज्य सरकारों का प्रदर्शन, कोविड-19 का प्रभाव भी यहां प्रभाव डाल रहे हैं.
इस क्षेत्र में हाई-वोल्टेज अभियान और करीबी मुकाबला देखने की भी संभावना है, क्योंकि बीजेपी और कांग्रेस अपना वर्चस्व बरकरार रखने और दोबारा हासिल करने की कोशिश करेंगी, जबकि आप और अन्य पार्टियां उनके वोट आधार में सेंध लगाने की कोशिश करेंगी. विंध्य क्षेत्र में चुनाव के नतीजों का समग्र परिणाम और मध्य प्रदेश की राजनीति के भविष्य पर महत्वपूर्ण असर पड़ेगा.