महाराष्ट्र में सियासी समीकरण कुछ इस कदर उलझे हैं कि बीजेपी, शिवसेना चाह कर भी एनसीपी का समर्थन नहीं ले पा रहे. उधर, एनसीपी इन दोनों पार्टियों को समर्थन नहीं देना चाह रही.
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मुंबई: महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Elections results 2019) के नतीजों का ऐलान होने के 5 दिन बाद भी सरकार के गठन को लेकर सस्पेंस बरकरार है. बीजेपी और शिवसेना दोनों के बीच सहमति बनती नजर नहीं आ रही. 50-50 के फॉर्मूले (50-50 formula) का ऐसा पेंच फंसा सुलझने के बजाय उलझता ही जा रहा है. शिवसेना (Shiv Sena) अपनी मांग पर अडिग है, बीजेपी (BJP) भी रत्तीभर झुकने को तैयार नहीं है. महाराष्ट्र में सियासी समीकरण उलझे हुए हैं.
हालांकि, सरकार बनाने में जिस ढंग से शिवसेना मोलभाव पर उतरी है, उससे बीजेपी के बड़े नेता हैरान नहीं हैं. बीजेपी नेताओं का कहना है कि राजनीति में मोल-भाव बुरी बात नहीं है, जिसको जब मौका मिलता है, वह करता ही है. बीजेपी नेताओं का मानना है कि शिवसेना कितना भी लड़े, आखिर में उसे सरकार बीजेपी के साथ ही बनानी है. बीजेपी नेता ऐसा क्यों कह रहे हैं, इसके पीछे की वजह पर भी आपको ध्यान देना होगा.
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बीजेपी के एक राष्ट्रीय महासचिव ने कहा, "राजनीति में डिमांड करना बुरी बात नहीं है. शिवसेना को मौका मिला है तो वह कर रही है. मीडिया के लिए शिवसेना के बयान मायने रखते होंगे, हमारे लिए इसमें कुछ भी नया नहीं. हमें कितनी गालियां उन्होंने दी, फिर भी हम पांच साल तक साथ रहे न."
बीजेपी सूत्रों के मुताबिक, शीर्ष नेतृत्व के स्तर से शिवसेना को संदेश दे दिया गया है कि उसे मुख्यमंत्री का पद नहीं मिलने वाला, वह डिप्टी सीएम की पोस्ट से संतोष करे. एक वरिष्ठ नेता ने कहा, "शिवसेना को भी पता है कि उसे मुख्यमंत्री पद नहीं मिलने वाला. मगर शिवसेना मुख्यमंत्री पद को लेकर दबाव की राजनीति कर रही है. दरअसल, शिवसेना की रणनीति मुख्यमंत्री पद को लेकर दबाव कायम कर बदले में वित्त और गृह विभाग जैसे अहम महकमे अपने कब्जे में लेने की है. आदित्य ठाकरे का कद डिप्टी सीएम से ज्यादा का नहीं है."
तो क्या शिवसेना-बीजेपी का साथ रहना मजबूरी है?
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में जिस आक्रामक अंदाज में शरद पवार फिर से शक्ति बनकर उभरे हैं, उससे एक ही विचारधारा पर खड़ी बीजेपी और शिवसेना का एक-दूसरे के साथ रहना मजबूरी है. बीजेपी के एक नेता ने कहा, "शिवसेना भले ही विकल्प खुले रहने की बात कह रही है, मगर उसे भी पता है कि कांग्रेस-एनसीपी के सहयोग से सरकार बनाने पर उसकी उग्र हिंदुत्व की राजनीति पर असर पड़ सकता है. जनता के बीच हिंदुत्व के मुद्दे पर वह पूरी तरह एक्सपोज हो जाएगी."
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शिवसेना को सता रहा यह डर
सूत्र बताते हैं कि शिवसेना के साथ आने पर कांग्रेस-एनसीपी की ओर से बीजेपी को किसी भी कीमत पर सत्ता से दूर रखने के लिए आदित्य ठाकरे को मुख्यमंत्री पद भी दिया जा सकता है. मगर शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को यह डर है कि अगर बीच में कहीं आदित्य के नेतृत्व वाली सरकार गिर गई तो फिर यह 'राजनीतिक भ्रूणहत्या' होगी. इन सब कारणों को देखते हुए उद्धव ठाकरे अच्छे मंत्रालय मिलने के बाद बीजेपी के साथ ही सरकार बनाना मुफीद समझते हैं.
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, बीजेपी के सामने भी विकल्प नहीं है. कांग्रेस के साथ तो सरकार बीजेपी बनाएगी नहीं. एनसीपी नेता शरद पवार के खिलाफ चुनाव के मौसम में ईडी ने जिस तरह से एक्शन किया, उससे बीजेपी से रिश्ते खराब हुए हैं. कांग्रेस के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ने वाली एनसीपी को भी लगता है कि अगर वह बीजेपी के साथ गई तो माना जाएगा कि केंद्रीय एजेंसियों के डर से शरद पवार ने गठबंधन किया.
सूत्र बता रहे हैं कि इन सब परिस्थितियों के चलते आखिर में सरकार बीजेपी और शिवसेना की ही बनेगी. सरकार बनाने की कवायदों के बीच बीजेपी के विधायक दल की बैठक बुधवार (30 अक्टूबर) को मुंबई में होगी, जिसमें मुख्यमंत्री के लिए देवेंद्र फडणवीस के नाम पर मुहर लगनी है. विधानसभा चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव फिलहाल शिवसेना के साथ बातचीत सुलझाने में लगे हैं.