Vishakha Nakshatra Secrets: इस नक्षत्र के देवता इंद्र और अग्नि के कारण इनके भीतर राजसी तत्व भी होता है. अग्नि की तरह पराक्रमी भी होते हैं और किसी भी सुख-सुविधा को प्राप्त करने के लिए ये कठोर परिश्रम करते हैं.
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Vishakha Nakshatra Lord: विशाखा नक्षत्र में मुख्य रूप से चार तारे हैं, जो एक आयताकार मेज की तरह बनते हैं. संस्कृत में विशाखा शब्द कार्तिकेय के लिए प्रयोग हुआ है. इसमें एक धनुर्धारी के बाण संधान के समय की विशेष मुद्रा, जिसमें एक पांव आगे और एक पांव पीछे की ओर तथा नेत्र लक्ष्य की ओर रहती है. भगवान शिव को भी विशाखा कहते हैं.
कुछ विद्वान कृष्ण की प्रिया राधारानी की सखी व राधा जी के प्रतिरूप को विशाखा मानते हैं. उनका मत है कि किसी भी वृक्ष की शाखाएं तो अनेक हो सकती हैं, किंतु विशेष शाखा यानी विशाखा तो एक ही होती है. कुछ जगहों पर विशाखा को विष का पात्र भी माना जाता है. सुसज्जित प्रवेश द्वार को भी विशाखा कहते हैं. विशाखा नक्षत्र के देवता इंद्र और अग्नि हैं. यह तुला राशि और वृश्चिक राशि को जोड़ने वाला नक्षत्र है, इसलिए जिन लोगों की तुला और वृश्चिक राशि है, उन लोगों का नक्षत्र विशाखा हो सकता है.
अद्भुत गुण
विशाखा नक्षत्र वाले व्यक्ति नई-नई चुनौतियों को स्वीकार करते हुए, उन पर विजय प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं. विशाखा नक्षत्र वाले अपने शत्रुओं को परास्त करने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं, फिर चाहे वह शत्रु सामाजिक हो या फिर ईर्ष्या, द्वेष, मोह आदि के रूप में मन के भीतर छिपा शत्रु. इनकी संकल्प शक्ति बहुत मजबूत होती है, इसलिए किसी भी बुरी आदत को ये तत्काल प्रभाव से छोड़ देते हैं. विशाखा नक्षत्र वाले लोगों के अंदर समर्पण का भाव भी बहुत होता है. यदि वे किसी को अपना घनिष्ठ मान लेते हैं तो पूरी ईमानदारी के साथ उसकी हर परिस्थिति में साथ देते हैं. इनके समर्पण में किंतु-परंतु का कोई स्थान नहीं होता है.
इस नक्षत्र के देवता इंद्र और अग्नि के कारण इनके भीतर राजसी तत्व भी होता है. अग्नि की तरह पराक्रमी भी होते हैं और किसी भी सुख-सुविधा को प्राप्त करने के लिए ये कठोर परिश्रम करते हैं. विशाखा नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति दृढ़ निश्चयी होते हैं. ये जो ठान लेते हैं, उसको अंजाम तक पहुंचाने के बाद ही दम लेते हैं. दरअसल, विशाखा को अगर एक शब्द में प्रकट करना है तो वह शब्द है दृढ़ता. इस नक्षत्र के लोग अपना लक्ष्य प्राप्त करने के बाद भी सुख या संतोष के साथ नहीं बैठते हैं, बल्कि तुरंत ही अगला लक्ष्य बना लेते हैं और निरंतर कार्य की प्रक्रिया में आगे बढ़ जाते हैं. ये लोग धार्मिक प्रवृत्ति के होते हैं, इसलिए अपनी परंपरा एवं धर्म-कर्म को पूरे भाव के साथ करते हैं.
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