Camlin Stationery: जिन्होंने स्याही को दिया नया रंग, जिनकी जियोमेट्री बॉक्स पहली बार हाथ में थामी, नहीं रहे वो अंकल...कैमलिन के फाउंडर सुभाष दांडेकर का निधन
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Camlin Stationery: जिन्होंने स्याही को दिया नया रंग, जिनकी जियोमेट्री बॉक्स पहली बार हाथ में थामी, नहीं रहे वो अंकल...कैमलिन के फाउंडर सुभाष दांडेकर का निधन

Camlin: पॉपुलर स्टेशनरी ब्रांड कैमलिन के फाउंडर सुभाष दांडेकर का सोमवार को निधन हो गया. 86 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांसें ली, मुंबई में उनका निधन हुआ.  परिवार की ओर से उनके निधन की जानकारी दी गई.

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Camlin: पॉपुलर स्टेशनरी ब्रांड कैमलिन के फाउंडर सुभाष दांडेकर का सोमवार को निधन हो गया. 86 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांसें ली, लंबी बीमारी के बाद मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में उन्होंने आखिरी सांस ली. परिवार की ओर से उनके निधन की जानकारी दी गई. दांडेकर कोकुयो कैमलिन के मानद चेयरमैन के तौर पर कार्यरत थे.  उनका अंतिम संस्कार भी मुंबई में किया जाएगा. मराठी इंडस्ट्रीज के बड़े नामों में एक सुभाष दांडेकर को लोग दादासाहेब दिगंबर दांडेकर के नाम से बुलाते थे. 

स्टेशनरी ब्रांड कैमलिन की कैसे हुई शुरुआत ? 

कैमलिन एक लोकप्रिय स्टेशनरी ब्रांड है.   उनकी नींव साल 1931 में डीपी दांडेकर और उनके भाई जीपी दांडेकर ने रखी थी. उन्होंने साल 1931 में हॉर्स ब्रांड इंक पाउडर और टैबलेट के साथ दांडेकर एंड कंपनी के तौर पर इसकी शुरुआत की. धीरे-धीरे कारोबार का विस्तार करते हुए उन्होंने फाउंटेन पेन के लिए "कैमल इंक" मार्केट में लॉन्च कर दिया.  साल 1948 तक उनकी कंपनी प्राइवेट कंपनी रही. साल 1998 में वो पब्लिक लिस्टेड कंपनी बन गई.  

स्याही को दिया नया रंग

कैमलिन ने स्याही को नया रंग दिया. स्याही में कंपनी की ताकत को देखते हुए, उन्होंने रंगीन ड्राइंग स्याही के साथ प्रयोग करने का फैसला किया. कंपनी ने जैसे ही रंगी स्याही लॉन्च की, वो कार्टूनिस्टों और डिजाइनरों के बीच लोकप्रिय हो गई, कंपनी की बढ़ाने के लिए सुभाष दांडेकर बीच-बीच में पढ़ाई करते रहे, जब उन्हें लगा कि रंग रसायन विज्ञान में अपनी शिक्षा को आगे बढ़ाने की जरूरत हैं, उन्होंने ग्लासगो जाने का फैसला किया. वापस लौटने के बाद उन्होंने एक प्रयोगशाला स्थापित की और भारतीय बाज़ार के लिए रंग तैयार करने का काम शुरू किया.   

जापानी कंपनी को बेच दी हिस्सेदारी 

कंपनी का विस्तार करते हुए साल साल 2011 में उन्होंने कैमलिन की 50.47 फीसदी हिस्सेदारी जापान की स्टेशनरी कंपनी दांडेकर कोकुयो को बेच दी.  दोनों कंपनियों के बीच ये डील 366 करोड़ रुपये में हुई.  इसके बाद वो कोकुयो कैमलिन के मानक चेयरमैन के तौर पर काम करते रहे.  

2000 से ज्यादा प्रोडक्ट, विदेशों मे ंभी कारोबार 

स्टेशनी मार्केट के बड़ा खिलाड़ी कैमलिन 2000 से ज्यादा तरह के प्रोडक्ट बनाता है. पेंसिल, इंक, मार्कर जैसे प्रोडक्ट तैयार किए जाते हैं. इसके अलावा आर्ट मैटेरियल के सेक्टर में कंपनी का दबदबा है.  भारत के अलावा कंपनी साउथ एशिया के कई देशों में कारोबार करती है, 1095 से अधिक मैनपावर के साथ कैमलिन स्टेशनरी मार्केट की दिग्गज कंपनियों में शामिल है. उन्होंने न केवल कारोबार को बढ़ाया, बल्कि लोगों के रोजगार के लिए बड़ा काम किया. कारोबार के अलावा वो सोशल वर्क में बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते थे.  

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