OPINION: सहकारिता बनाम कॉर्पोरेट.. कौन सा मॉडल समाज के लिए फायदेमंद?
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OPINION: सहकारिता बनाम कॉर्पोरेट.. कौन सा मॉडल समाज के लिए फायदेमंद?

Co-operative vs Corporate: आज की दुनिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभुत्व स्थापित हो चुका है. ये कंपनियां वैश्विक अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा तय करने का काम कर रही हैं. इससे आर्थिक विकास तो हो रहा है, लेकिन इस विकास का लाभ केवल कुछ बड़े कॉरपोरेट्स तक सीमित रह गया है.

OPINION: सहकारिता बनाम कॉर्पोरेट.. कौन सा मॉडल समाज के लिए फायदेमंद?

Co-operative vs Corporate: आज की दुनिया में बहुराष्ट्रीय कंपनियों का प्रभुत्व स्थापित हो चुका है. ये कंपनियां वैश्विक अर्थव्यवस्था की दशा और दिशा तय करने का काम कर रही हैं. इससे आर्थिक विकास तो हो रहा है, लेकिन इस विकास का लाभ केवल कुछ बड़े कॉरपोरेट्स तक सीमित रह गया है. ऑक्सफैम की रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 के बाद पांच सबसे अमीर व्यक्तियों की संपत्ति में 114 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. अमीरों की संपत्ति औसतन 3.3 लाख डॉलर तक बढ़ी है, जबकि दूसरी ओर, पांच अरब लोगों की आय घटी है और गरीबों की संख्या में वृद्धि हुई है. अमीर शेयरधारकों को अधिक भुगतान किया गया, जबकि करोड़ों लोगों के वेतन में कटौती देखी गई. रिपोर्ट के अनुसार, भारत में सबसे अमीर 1% लोगों के पास राष्ट्रीय आय का 22.60% और राष्ट्रीय संपत्ति का 40.10% हिस्सा है.

आर्थिक लोकतंत्र का अभाव

कॉरपोरेट व्यवस्था में लोकतंत्र का अभाव होता है और बिना आर्थिक लोकतंत्र के, राजनीतिक लोकतंत्र भी संभव नहीं है. डॉ. भीमराव अंबेडकर का भी यही मानना था. इसके विपरीत, सहकारिता को प्राथमिकता देने से कई आर्थिक समस्याओं का समाधान मिल सकता है. सहकारी संस्थाएं मालिक-नौकर के सिद्धांत पर नहीं चलतीं, बल्कि इसमें सभी सदस्य मालिक होते हैं. प्रत्येक सदस्य की इसमें कुछ न कुछ हिस्सेदारी होती है. इन संस्थाओं की पूंजी स्वयं सदस्यों के सहयोग से एकत्रित की जाती है, और उनके प्रबंधन पर सीधा नियंत्रण रहता है. इनका संचालन बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स द्वारा किया जाता है, जिसका चुनाव भी सदस्यों द्वारा ही किया जाता है.

आर्थिक असमानता बनाम समान अवसर

कॉरपोरेट व्यवस्था आर्थिक असमानता को बढ़ावा देती है, क्योंकि इससे लाभ कुछ गिने-चुने लोगों तक सीमित रहता है. इसके विपरीत, सहकारी संस्थाएं अपने लाभ को सभी सदस्यों में बांटती हैं, जिससे आर्थिक समानता आती है. सहकारी समितियां "एक सदस्य, एक वोट" के सिद्धांत पर काम करती हैं, जिससे आर्थिक लोकतंत्र मजबूत होता है. यह जनकेन्द्रित व्यवसाय को बढ़ावा देता है, जिससे सभी सदस्यों को बराबर का लाभ मिलता है.

श्रमिकों के हितों की सुरक्षा

कॉरपोरेट व्यवस्था में निवेशकों को अधिकतम लाभ दिलाने का लक्ष्य होता है, जिससे मजदूरों के शोषण की संभावना बढ़ जाती है. इसके विपरीत, सहकारी समितियां अपने सदस्यों की आवश्यकताओं को प्राथमिकता देती हैं और उन्हें अधिकतम लाभ पहुंचाने के लिए कार्य करती हैं.

स्थानीय समुदायों को लाभ

जहां भी सहकारी समितियां स्थापित होती हैं, वहां के स्थानीय लोगों को कई फायदे मिलते हैं. ये स्थानीय स्तर पर रोजगार का सृजन करती हैं और उसे सुरक्षित भी रखती हैं. इसके अलावा, सहकारी समितियों का प्रबंधन स्थानीय लोगों द्वारा किया जाता है, जिससे स्थानीय नेतृत्व का विकास होता है और लोगों में आत्मनिर्भरता एवं आत्मविश्वास बढ़ता है.

पर्यावरण संरक्षण और स्थायी विकास

कॉरपोरेट व्यवस्था में निवेशक अधिकतम लाभ कमाने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन करते हैं, जिससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है. इसके विपरीत, सहकारी व्यवस्था में स्थानीय लोग शामिल होते हैं और वे स्थानीय पर्यावरण की रक्षा करते हुए व्यवसाय संचालित करते हैं.

स्थानीय अर्थव्यवस्था का विकास

कॉरपोरेट कंपनियों के मालिक दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर मुनाफा कमाते हैं, जिससे उस क्षेत्र से पूंजी बाहर चली जाती है. सहकारी समितियां जो भी लाभ कमाती हैं, वह उसी क्षेत्र में वापस लगाया जाता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है. उदाहरण के लिए, "मान देशी" एक महिला-केन्द्रित सहकारी संगठन है, जिसका मुख्यालय महाराष्ट्र के म्हसवड में है. इसकी स्थापना 1997 में हुई थी और तब से अब तक इसने ग्रामीण महाराष्ट्र में 2000 करोड़ रुपये से अधिक का ऋण और 4 लाख से अधिक महिला उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान किया है.

रोजगार की सुरक्षा

कॉरपोरेट सेक्टर में निवेशक उन्हीं क्षेत्रों में पूंजी लगाते हैं जहां से अधिकतम लाभ की संभावना हो, लेकिन अगर मुनाफा घटने लगे, तो वे अपना निवेश हटा लेते हैं, जिससे हजारों लोगों की नौकरियां खतरे में पड़ जाती हैं. इसके विपरीत, सहकारी मॉडल रोजगार सुरक्षा की गारंटी देता है, क्योंकि इसका लक्ष्य निवेशकों को लाभ देना नहीं, बल्कि अधिकतम लोगों के समावेशी विकास पर ध्यान देना है.

सहकारिता का वैश्विक प्रभाव

दुनिया के कई देशों में कॉरपोरेट के विकल्प के रूप में सफल सहकारी मॉडल कार्यरत हैं. स्पेन में कार्यरत "मोंड्रेगन कॉरपोरेशन" इसका एक बेहतरीन उदाहरण है. अगर हमें समावेशी और सतत विकास चाहिए, तो हमें सहकारी मॉडल को अपनाना होगा. इसी भावना के तहत, भारत सरकार ने नवीन सहकारिता मंत्रालय का गठन किया और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "सहकार से समृद्धि" का आह्वान किया है.

(यह लेखक- वीर विक्रम सिंह, उप आयुक्त एवं उप निबन्धक, सहकारिता, यूपी, मुरादाबाद मण्डल के निजी विचार हैं)

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