PM Manmohan Singh: कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में लिखा, ‘केंद्रीय बजट पेश होने के एक दिन बाद 25 जुलाई 1991 को सिंह बिना किसी पूर्व योजना के एक संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित हुए, ताकि यह तय किया जा सके कि उनके बजट का संदेश अधिकारियों की उदासीनता के कारण विकृत न हो जाए.’
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Manmohan Singh Death: भारत के आर्थिक सुधारों के जनक मनमोहन सिंह को 1991 के अपने उस ऐतिहासिक केंद्रीय बजट की व्यापक स्वीकृति सुनिश्चित करने के लिए अग्नि परीक्षा का सामना करना पड़ा था. इस बजट ने देश को अपने सबसे खराब वित्तीय संकट से उबारा था. पीवी. नरसिंह राव की सरकार में नवनियुक्त वित्त मंत्री सिंह ने यह काम बेहद बेबाकी से किया. बजट के बाद मीडिया का सामना करने से लेकर संसदीय दल की बैठक में व्यापक सुधारों को पचा नहीं पाने वाले नाराज कांग्रेस नेताओं तक....सिंह अपने फैसलों पर अडिग रहे.
सिंह के ऐतिहासिक सुधारों ने भारत को दिवालियापन से बचाया
सिंह के ऐतिहासिक सुधारों ने भारत को दिवालियापन से बचाया, बल्कि उभरती ग्लोबल पावर के रूप में इसकी दिशा को पुनर्परिभाषित किया. कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने अपनी पुस्तक ‘टू द ब्रिंक एंड बैक: इंडियाज 1991 स्टोरी’ में लिखा, ‘केंद्रीय बजट पेश होने के एक दिन बाद 25 जुलाई 1991 को सिंह बिना किसी पूर्व योजना के एक संवाददाता सम्मेलन में उपस्थित हुए, ताकि यह तय किया जा सके कि उनके बजट का संदेश अधिकारियों की उदासीनता के कारण विकृत न हो जाए.’ इस पुस्तक में जून 1991 में राव के प्रधानमंत्री बनने के बाद तेजी से आए बदलावों का जिक्र है.
मनमोहन सिंह ने 1991 के बजट को ‘मानवीय बजट’ करार दिया
रमेश ने 2015 में प्रकाशित इस पुस्तक में लिखा, ‘वित्त मंत्री ने अपने बजट की व्याख्या की और इसे ‘मानवीय बजट’ करार दिया. उन्होंने उर्वरक, पेट्रोल और एलपीजी की कीमतों में तेजी के प्रस्ताव का बड़ी दृढ़ता से बचाव किया.’ राव के कार्यकाल के शुरुआती महीनों में रमेश उनके सहयोगी थे. कांग्रेस में असंतोष को देखते हुए राव ने 1 अगस्त 1991 को कांग्रेस संसदीय दल की बैठक बुलाई और पार्टी सांसदों को ‘खुलकर अपनी बात रखने’ का मौका देने का फैसला किया. रमेश ने लिखा, ‘प्रधानमंत्री ने बैठक से दूरी बनाए रखी और मनमोहन सिंह को उनकी आलोचना का खुद ही सामना करने दिया.’
एलपीजी और पेट्रोल की कीमत में वृद्धि पहले जैसी ही रखी
उन्होंने कहा कि दो-तीन अगस्त को दो और बैठकें हुईं, जिनमें राव पूरे समय मौजूद रहे. रमेश ने लिखा, ‘सीपीपी की बैठकों में वित्त मंत्री अकेले नजर आए और प्रधानमंत्री ने उनका बचाव करने या उनकी परेशानी दूर करने के लिए कुछ नहीं किया.’ केवल दो सांसदों मणिशंकर अय्यर और नाथूराम मिर्धा ने सिंह के बजट का समर्थन किया. अय्यर ने बजट का समर्थन करते हुए तर्क दिया था कि यह बजट राजीव गांधी की इस धारणा के अनुरूप है कि वित्तीय संकट को टालने के लिए क्या किया जाना चाहिए. पार्टी के दबाव के आगे झुकते हुए सिंह ने उर्वरक की कीमत में 40 प्रतिशत की वृद्धि को घटाकर 30 प्रतिशत करने पर सहमति व्यक्त की थी, लेकिन एलपीजी और पेट्रोल की कीमत में वृद्धि को पहले जैसा ही रखा.
राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की चार-पांच अगस्त 1991 को दो बार बैठक हुई, जिसमें यह फैसला लिया गया कि 6 अगस्त को सिंह लोकसभा में क्या वक्तव्य देंगे. पुस्तक के अनुसार ‘इस बयान में वृद्धि को वापस लेने की बात नहीं मानी गई जिसकी मांग पिछले कुछ दिन से की जा रही थी बल्कि इसमें छोटे और सीमांत किसानों के हितों की रक्षा की बात की गई.’ रमेश ने लिखा, ‘दोनों पक्षों की जीत हुई. पार्टी ने पुनर्विचार के लिए मजबूर किया, लेकिन सरकार जो चाहती थी उसके मूल सिद्धांतों... यूरिया के अलावा अन्य उर्वरकों की कीमतों को नियंत्रण मुक्त करना तथा यूरिया की कीमतों में वृद्धि को बरकरार रखा गया.’ उन्होंने पुस्तक में लिखा, ‘यह राजनीतिक अर्थव्यवस्था का सर्वोत्तम रचनात्मक उदाहरण है. यह इस बात की मिसाल है कि किस प्रकार सरकार तथा पार्टी मिलकर दोनों के लिए बेहतर स्थिति बना सकते हैं.’ (इनपुट-भाषा से भी)