केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता का मुद्दा उठाते हुए आरबीआई के डिप्टी गवर्नर ने कहा कि अगर सरकारें केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करेंगी तो उन्हें बाजार के गुस्से का सामना करना पड़ेगा.
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नई दिल्ली: आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने शुक्रवार को कहा कि एक बार फिर से केंद्र सरकार को निशाने पर लिया. केंद्रीय बैंक की स्वायत्ता का मुद्दा उठाते हुए आचार्य ने कहा कि देश की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए रिजर्व बैंक को अधिक स्वायत्ता देने की जरूरत है. उन्होंने सरकार को चेताया कि अगर ऐसा नहीं किया गया तो परिणाम विनाशकारी हो सकता है. विरल आचार्य के भाषण को आरबीआई की वेबसाइट पर भी पोस्ट किया गया है.
आचार्य ने साफ कहा कि अगर सरकारें केंद्रीय बैंक की आजादी का सम्मान नहीं करेंगी तो उन्हें बाजारों के गुस्से का सामना करना पड़ेगा.
डिप्टी गवर्नर की यह टिप्पणी ऐसे वक्त में आई है, जब केंद्र सरकार देश के पेमेंट सिस्टम के लिए एक अलग रेग्युलेटर बनाने पर विचार कर रही है. आरबीआई इस पर सख्त आपत्ति जता रहा है. आरबीआई का कहना है कि भुगतान के लिए अलग से विनियामक की आवश्यकता नहीं है और अगर सरकार ऐसा करना भी चाहती है तो उसका नियंत्रण आरबीआई के हाथ में होना चाहिए.
इसके अलावा सरकारी अधिकारियों की ओर से कई बार आरबीआई पर यह दबाव भी डाला गया है कि वह कुछ बैंकों को लेंडिंग के नियमों में ढील दे, जबकि उनका कैपिटल बेस काफी कमजोर है. आचार्य ने कहा, 'सेंट्रल बैंक की स्वायत्ता को नजरअंदाज करना विनाशकारी हो सकता है। इससे कैपिटल मार्केट में भरोसे का संकट पैदा हो सकता है.'
डिप्टी गवर्नर ने इस साल की शुरुआत में पीएनबी बैंक से धोखाधड़ी करके देश छोड़ने वाले नीरव मोदी के मामले में आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल और वित्त मंत्री अरुण जेटली के बीच हुए वाक् युद्ध की ओर भी इशारा किया जिसमें वित्त मंत्री ने संकेत दिया था कि ऐसे मामलों में राजनेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाता है, बैंक नियामक को नहीं.
आचार्य ने अर्जेंटीना के संवैधानिक संकट का उदाहरण दिया जहां सरकार ने केंद्रीय बैंक के अधिकारों में कटौती कर दी थी. उन्होंने कहा, "सरकार का निर्णय टी-20 खेलने जैसा था. इसके उलट, सेंट्रल बैंक टेस्ट खेलता है और हर सेशन जीतने की कोशिश करता है."
गौरतलब है कि इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशल सर्विसेज के हालिया कर्ज संकट के चलते सितंबर के बाद से ही बाजार में अस्थिरता के हालात हैं. देश की सबसे बड़ी इन्फ्रास्ट्रक्चर फाइनैंस कंपनियों में से एक के कर्ज संकट में फंसने के बाद से देश की पूरी बैंकिंग व्यवस्था की स्थिति को लेकर ही चिंता जताई जा रही है.