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नई दिल्ली: New Digital Payment Platform: डिजिटल पेमेंट प्लेटफॉर्म तैयार करने के लिए नई कंपनियों की एंट्री की योजना पर रिजर्व बैंक (RBI) ने फिलहाल रोक लगा दी है. पहले रिजर्व बैंक ने ऑनलाइन लेन-देन (Online Transaction) में नेशनल पेमेंट्स काउंसिल ऑफ इंडिया (NPCI) के प्रभुत्व को खत्म करने के लिए नई कंपनियों को इसकी इजाजत दी गई थी. Mint में छपी खबर के मुताबिक अब डेटा सुरक्षा कारणों को ध्यान में रखते हुए रिजर्व बैंक ने इसे फिलहाल होल्ड पर रख दिया है.
आपको बता दें कि पिछले साल खुद रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने कंपनियों से नए पेमेंट नेटवर्क को तैयार करने के लिए EOIs (Expressions of Interest) मंगवाए थे, यानी जिन कंपनियों को इसमें रूचि हो वो बताएं. इसके बाद Amazon, Google, Facebook और Tata group की अगुवाई वाली कम से कम छह कंसोर्शियम या समूहों ने एक New Umbrella Entities (NUEs) लाइसेंस के लिए अप्लाई किया था. इन कंपनियों ने Reliance Industries और ICICI Bank के साथ इसके लिए साझीदारी भी की थी. हालांकि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक भारतीय स्टेट बैंक (SBI), और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया पर वित्त मंत्रालय ने इसमें शामिल होने पर रोक लगा दी थी, क्योंकि वो NPCI में शेयरहोल्डर थे.
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इस मामले की जानकारी रखने वाले दो लोगों में से एक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि RBI को लगता है कि विदेशी संस्थाओं से जुड़ी डेटा सुरक्षा का मुद्दा एक प्रमुख चिंता का विषय है और इसलिए, नए लाइसेंस के साथ आगे नहीं बढ़ने का फैसला किया है. हालांकि, RBI के इस कदम को शुरू से ही बैंक यूनियनों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था, और न ही सरकारी बैंक उन्हें हटाए जाने से खुश थे. यूनियनों ने विदेशी संस्थाओं को भारत में भुगतान नेटवर्क स्थापित करने की इजाजत देने पर चिंता जताई थी.
न्यूज एजेंसी रॉयटर्स ने भी जून में खबर छापी थी कि ऑल इंडिया स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) स्टाफ फेडरेशन और UNI ग्लोबल यूनियन ने रिजर्व बैंक से लाइसेंसिंग प्रक्रिया को खत्म करने और NPCI को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित करने की गुजारिश की थी. दरअसल, हाल ही में डेटा लोकलाइजेशन नियमों को लेकर Mastercard नॉन-कंप्लांयस का मामला भी सामने आया, जिसकी वजह से रिजर्व बैंक ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया, यही वजह है कि रिजर्व बैंक NUE प्रस्तावों पर फिर से विचार कर सकता है.
Mastercard, Amex और Diners Club जैसी ग्लोबल पेमेंट कंपनियां नियम जारी होने के तीन साल बाद भी भारतीय नियमों के कंप्लायंस को प्रमाणित करने वाली ऑडिट रिपोर्ट देने में नाकाम रही हैं. इतना ही नहीं MobiKwik और Bigbasket में हालिया डेटा उल्लंघनों ने RBI को निजी क्षेत्र को भुगतान लेनदेन का मैनेजमेंट करने की इजाजत देने में शामिल जोखिमों का संज्ञान लिया होगा.
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