यूं की कोई रतन टाटा नहीं बन जाता...जब अपमान का बदला लेने के लिए लुटा दिए ₹12000 करोड़, बदल दी कंपनी की तकदीर
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यूं की कोई रतन टाटा नहीं बन जाता...जब अपमान का बदला लेने के लिए लुटा दिए ₹12000 करोड़, बदल दी कंपनी की तकदीर

Ratan Tata: जब भी बात बिजनेसमैन के पितामह की होती है तो सबकी जुंबा पर एक ही नाम याद आता है, वो है रतन नवल टाटा (Ratan Naval Tata). कोई इन्हें बिजनेस टायकून कहता है तो कोई महामानव. कोई दानवीर तो कोई टाटा की जान.

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Ratan Tata Untold Story: जब भी बात बिजनेसमैन के पितामह की होती है तो सबकी जुंबा पर एक ही नाम याद आता है, वो है रतन नवल टाटा (Ratan Naval Tata). कोई इन्हें बिजनेस टायकून कहता है तो कोई महामानव. कोई दानवीर तो कोई टाटा की जान. रतन टाटा को लेकर हजारों किस्से-कहानियां है, लेकिन एक कहानी ऐसी भी है, जो उन्हें दूसरों से बिल्कुल अलग बनाती है. लोग यहां अपनी बेइज्जती का बदला लेने के लिए तरह-तरह के उपाय ढूढ़ने लगते हैं रतन वो थे, जिन्होंने अपने अपमान को ही अपनी सफलता की सीढ़ी बना दी.  

कहानी उस रतन टाटा की, जो सबसे जुदा

टाटा कंपनी को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाने वाले रतन टाटा ने100 से ज्यादा कंपनियों की सालों तक कमान संभाली. उनकी कंपनी सुई से लेकर स्टील, चाय से लेकर 5 स्टार होटल तक और नैनो से लेकर हवाई जहाज तक सब कुछ बनाती है. उस रतन टाटा की जिंदगी से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है, जो बहुत कम लोग ही जानते हैं.   किस्सा 1998 की है, जब टाटा ने पहली पैसेंजर कार तैयार की. टाटा मोटर्स ने देश की पहली स्वदेशी कार टाटा इंडिका को लॉन्च किया. ये प्रोजेक्ट टाटा का ड्रीम प्रोजेक्ट था, लेकिन दुर्भाग्यवश कंपनी बड़े घाटे में चली गई. कंपनी को बचाने के लिए टाटा मोटर्स ने एक साल के भीतर ही अपने कार कारोबार को बेचने का फैसला ले लिया. 

रतन टाटा की बेइज्जती  

टाटा की कार के कारोबार को बेचने के लिए रतन टाटा 1999 में टाटा ने अमेरिका की बड़ी कार कंपनी फोर्ड के साथ डील के लिए अमेरिका पहुंचें. फोर्ड ने के साथ डील की बातें चलती रही.  फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने भरी मीटिंग में टाटा की बेइज्जती ये कहते हुए किया कि कार बनाना आपके बस की बात नहीं. आपको इसका ज्ञान नहीं तो इसका बिजनेस शुरू ही नहीं करना चाहिए था. फोर्ड का कहना था कि वे यह डील कर के टाटा पर एहसान ही करेंगे. बिना कुछ बोले रतन टाटा अपमान का घूंट पीकर चुपचाप वहां से चले आए.  साल बदले और दिन भी. उन्होंने इस अपमान तो सफलता की सीढ़ी बना ली और रतन टाटा ने फैसला लिया कि वे कार प्रोडक्शन यूनिट नहीं बेचेंगे.

जिसने किया अपमान उसी पर रतन टाटा ने किया अहसान  

समय का पहिया ऐसा घूमा कि अब फोर्ड अपना बिजनेस बेचने के लिे खरीदार ढूढने लगा. साल था 2008 का. वैश्विक मंदी के उस दौर में अमेरिकी कंपनी फोर्ड दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गई.  उस वक्त फोर्ड की दो पॉपुलर ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को रतन टाटा ने खरीदकर न केवल अपने अपमान का बदला लिया बल्कि फोर्ड पर एहसान करते हुए कंपनी के मालिक बिल फोर्ड को एहसानमंद बना डाला.रतन टाटा ने 2.3 बिलियन डॉलर यानी करीब 12000 करोड़ रुपये में फोर्ड के इन दो ब्रांड्स को खरीद कर उसपर उपकार किया. उस वक्त फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने तब टाटा को एहसान मानते हुए कहा था कि इन ब्रांड्स को खरीदकर आप हम पर बड़ा उपकार कर रहे हैं. 

लखटकिया नैनो और करोड़ों की जैगुआर तक

रतन टाटा कार प्रेमी थी. उन्होंने आम पब्लिक के लिए लखटकिया कार नैनो लॉन्च किया. लाख रुपये में लोग अपने घर कार ला सकते हैं. उनकी ये लोग इस बात को लेकर थी कि एक मिडिल क्लास वाला व्यक्ति भी कार में बैठने के अपने सपने को पूरा कर सके.  

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