IRCTC: जब आप ट्रेन से सफर करते हैं तो अक्सर यह देखते होंगे कि किसी ट्रेन में लाल बोगियां तो किसी में नीली बोगियां हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ट्रेन में कोच अलग-अलग कलर के क्यों होते हैं?
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Indian Railway: भारत में सफर का एक बड़ा हिस्सा ट्रेन से होता है. भारतीय रेलवे हर दिन लाखों यात्रियों को देश भर में यात्रा करने में मदद करती है. आप भी अक्सर ट्रेन से सफर करते होंगे लेकिन इसके कलर कोडिंग के नियमों के बारे से अवगत नहीं होंगे.
दरअसल, भारतीय रेलवे के पास दो तरह के कोच- इंटीग्रल कोच फैक्ट्री (ICF) और लिंक हॉफमैन बुश (LHB) कोच हैं.
कौन कोच सबसे ज्यादा सुरक्षित?
लाल और नीले कोच में बहुत बड़ा अंतर है. भारत में एक्सप्रेस ट्रेनों में नीली बोगियां होती हैं, जबकि राजधानी और सुपरफास्ट प्रीमियम ट्रेनों में लाल बोगियां होती हैं. लाल कोच को लिंक हॉफमैन बुश कहा जाता है. लाल डिब्बे नीले डिब्बे की तुलना में अधिक सुरक्षित होते हैं और एंटी-टेलीस्कोपिक डिज़ाइन से बने होते हैं जो उन्हें एक-दूसरे से टकराने से रोकते हैं और आसानी से ट्रैक से गिरने से बचाते हैं. इतना ही नहीं, टक्कर की स्थिति में इन डिब्बों को बोगी के ऊपर न चढ़ने के लिए डिजाइन किया गया है.
लाल कोच का इस्तेमाल उन ट्रेनों में किया जाता है जो 200 किलोमीटर प्रति घंटे तक की गति से चलती हैं. लाल डिब्बों का उपयोग तीस वर्षों से किया जा रहा है. इन्हें 2000 के दशक की शुरुआत में शुरू किया गया था और आमतौर पर पंजाब के कपूरथला में बनाया जाता है.
राजधानी और शताब्दी में नील कोच
नीले कोच का निर्माण पहली बार चेन्नई में किया गया था. यह कोच लोहे से बना है और इसमें एयर ब्रेक की भी फैसिलिटी हैं. इस कोच का रखरखाव बहुत महंगा है क्योंकि यह कोच यात्रा के उच्च मानक का संकेत माना जाता है. इस कोच का इस्तेमाल ज्यादातर ऐसी ट्रेनों की जाती है. नीले रंग के कोच में सीटें कम होती हैं, जिससे दुर्घटना की स्थिति में जान का खतरा अधिक होता है.
इस कोच की टाइम पीरियड पच्चीस वर्ष होती है और इसके बाद इसे सेवा से हटा दिया जाता है. भारतीय रेलवे में खासकर राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों में इसका इस्तेमाल सबसे ज्यादा होता है.