Bangladesh Protest News: बांग्लादेश में लाखों छात्रों का सड़कों पर उतरना और फिर तख्तापलट होना. ये सब अचानक नहीं हुआ है. छात्रों के बीच ये आग लंबे समय से सुलग रही थी. आइये इस पूरी घटना का वो पहलू जानिये, जिससे आप अब तक अनजान हैं....
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Bangladesh Protest: बालकृष्ण राव की एक कविता है, जिसमें उन्होंने लिखा है, उमंगें यूँ अकारण ही नहीं उठतीं,न अनदेखे इशारे पर कभी यूँ नाचता मन... तो लाजमी है कि अकारण तो कुछ भी नहीं होता. बांग्लादेश में छात्रों का प्रदर्शन और असंतोष एक दिन की कहानी नहीं है. यह धीमे-धीमे सुलगते आग की तरह थी, जो ज्वालामुखी बन गई. बांग्लादेश की बढती वित्तीय चुनौतियों के बीच घट रहीं सरकारी नौकरियों ने सुलगते आग की तरह काम किया. ऊपर से चीन का बढ़ता कर्ज और जीडीपी का लगातार घटना वो वजहें बनीं, जिन्होंने बांग्लादेश के लोगों के मन में सरकार के खिलाफ भावनाओं को सुलगाने का काम किया.
बांग्लादेश सरकार हर साल 3000 सरकारी नौकरियां जारी करती है और इसके लिए करीब 40000 ग्रेजुएट्स अप्लाई करते हैं. बांग्लादेश में नौकरियों के खराब हालात खासतौर से सरकारी नौकरियों में आ रही कमी के कारण यहां के युवा पहले से ही असंतुष्ट हैं और इस पर कोटा प्रणाली के आ जाने से उनका असंतोष विरोध में बदल गया.
लिहाजा कोटा आरक्षण को लेकर लाखों की तादाद में छात्र सड़कों पर उतर आए हैं. रविवार को हुई हिंंसा में सैकडों लोगों के मरने की रिपोर्ट आ रही है. छात्रों का आंदोलन इतना तेज हो गया है कि देश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को अपने पद से इस्तीफा भी देना पड़ा. लेकिन ये सारा मामला है क्या? छात्र क्या चाहते हैं और वो कोटा आरक्षण को लेकर क्यों नाराज हैं? इन सभी सवालों के जवाब हम यहां देने की कोशिश कर रहे हैं. जानिये...
हसीना की सरकार पर इससे पहले भी मानवाधिकारों के उल्लंघन और तानाशाही के आरोप लगते रहे हैं. लेकिन बावजूद इसके शेख हसीना ने किसी भी हालात में घुटने नहीं टेके. फिर छात्रों के प्रदर्शन ने ऐसा कर दिखाया कि 16 साल से निर्बाध सरकार चला रही शेख हसीना को आखिर अपना इस्तीफा सौंपना पड़ा है.
क्यों शुरू हुआ प्रदर्शन :
दरअसल, ये पूरा मामला सरकारी नौकरियों में मुक्ति संग्राम के सेनानियों के परिजनों के लिए 30 प्रतिशत के आरक्षण को लेकर है. छात्र चाहते हैं कि इसे समाप्त कर दिया जाए. इस आरक्षण के अनुसार उन लोगों और परिवारों को सरकारी नौकरी में लाभ मिलेगा, जो 1971 स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के परिजन हैं.
ये मामला वहां की हाई कोर्ट के पास पहुंचा, लेकिन हाई कोर्ट ने भी कोटा व्यवस्था को बरकरार रखने का फैसला सुना दिया. इसके बाद छात्रों का प्रदर्शन और तेज हो गया. छात्र जब बातचीत से नहीं मानें तो सत्ताधारी दल के कार्यकर्ताओं ने छात्रों पर हमला कर दिया, इसके बाद शांत चल रहा प्रदर्शन उग्र हो गया. पुलिस और प्रदर्शनकारियो ंके बीच हुई झडप में अब तक 100 से अधिक लोगों के मारे जाने की खबर है. इसमें पुलिस और छात्र दोनों शामिल हैं.
हालांकि, बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने इस कोटा व्यवस्था को रोकने का आदेश दिया है. लेकिन इसने प्रदर्शनकारियों को पूरी तरह से संतुष्ट नहीं किया. छात्र, स्वतंत्रता सेनानियों के बच्चों के लिए सभी नौकरी आरक्षणों को समाप्त करने की मांग कर रहे हैं. इस आंशिक रियायत ने आंदोलन को शांत करने में कोई खास मदद नहीं की है.
स्थिति तब और बिगड़ गई जब पूर्व सेना प्रमुख जनरल इकबाल करीम भुइयां ने विरोध प्रदर्शनों से निपटने के सरकार के तरीके की आलोचना की और सेना को वापस बुलाने का आह्वान किया. साथ ही प्रदर्शनकारियों के प्रति वर्तमान सेना प्रमुख के समर्थन वाले रुख ने अशांति को और बढ़ा दिया है.
टाइमलाइन पर डालें नजर:
1 जुलाई को शुरू की नाकेबंदी
यूनिवर्सिटी के छात्रों ने कोटा प्रणाली में सुधार की मांग को लेकर नाकेबंदी शुरू कर दी. उन्होने सड़कों और रेलवे लाइनों को बाधित करना शुरू कर दिया. हसीना ने विरोध प्रदर्शनों को खारिज कर दिया और कहा कि छात्र अपना समय बर्बाद कर रहे हैं.
16 जुलाई तेज हुई हिंसा
ढाका में चल रहे प्रदर्शन के दौरान सरकार समर्थकों के साथ हुई झड़पों की वजह से शुरुआत में 6 लोगों की मौत हो गई. इसके बाद हिंसा बढ़ गई. हसीना की सरकार ने छात्रों के इस प्रदर्शन और बर्ताव का जवाब देने के लिए देश भर के स्कूलों और विश्वविद्यालयों को बंद कर दिया.
18 जुलाई को इंटरनेट ब्लैकआउट
हसीना ने छात्रों से शांति की अपील की, लेकिन छात्रों ने उसे खारिज कर दिया और इस्तीफे की मांग जारी रखी. छात्रों ने सरकार के खिलाफ नारे लगाए और बांग्लादेश टेलीविजन के मुख्यालय के साथ-साथ कई सरकारी इमारतों को भी आग लगा दी. भड़की हिंसा को देखते हुए सरकार ने इंटरनेट ब्लैकआउट लगा दिया और कर्फ्यू लगाकर सैनिकों की तैनाती कर दी. बावजूद इसके छात्र नहीं रुके और 32 लोग मारे गए और सैकड़ों घायल हो गए.
21 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने दिया फैसला
बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी में कोटा फिर से लागू करने के खिलाफ फैसला सुनाया. लेकिन छात्र इससे भी संतुष्ट नहीं हुए. आलोचकों ने भी इस फैसले को हसीना सरकार के साथ तालमेल वाला माना.
4 अगस्त को सेना ने प्रदर्शनकारियों का साथ दिया
रविवार को, हजारों लोगों ने फिर से सरकार के समर्थकों के साथ झड़प की, जिसकी वजह 14 पुलिस अधिकारियों सहित 68 लोगों की मौत हो गई. पूर्व सेना प्रमुख जनरल इकबाल करीम भुइयां ने सरकार से सैनिकों को वापस बुलाने का आग्रह किया और हत्याओं की निंदा की. वर्तमान सेना प्रमुख वकर-उज-जमान ने कहा कि सशस्त्र बल हमेशा लोगों के साथ खड़े हैं.
अंतिम विरोध का आह्वान
सविनय अवज्ञा अभियान से हिंसक प्रदर्शन में बदल चुके आंदोलन के नेताओं ने समर्थकों से सोमवार को अंतिम विरोध के लिए ढाका तक मार्च करने का आह्वान किया, जिससे सरकार के साथ टकराव बढ़ गया और शेख हसीना को अपना इस्तीफा देना पड़ा.
इसके पीछे ISI का हाथ तो नहीं ?
कई मीडिया रिपोर्ट में ये बात कही जा रही है कि प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा, छात्र शिबिर, हिंसा भड़का रही है और बांग्लादेश में छात्र विरोध को राजनीतिक आंदोलन में बदल रही है. इन छात्रों के बारे में कहा जा रहा है कि इन्हें पाकिस्तान की ISI का समर्थन प्राप्त है. रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान की सेना और ISI प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार गिराकर विपक्षी BNP को सत्ता में वापस लाना है.