Compassionate Sarkari Naukri: पापा नहीं रहे तो ससुराल विदा हुई बेटी को नौकरी क्यों नहीं? क्या बेटा ही है सबकुछ; कोर्ट ने उठाए सवाल
Advertisement
trendingNow12136737

Compassionate Sarkari Naukri: पापा नहीं रहे तो ससुराल विदा हुई बेटी को नौकरी क्यों नहीं? क्या बेटा ही है सबकुछ; कोर्ट ने उठाए सवाल

Compassionate Job for Married Daughter: 21वीं सदी में भी बेटा और बेटी को बराबर हक नहीं मिल पा रहा है? इसपर ओडिशा हाईकोर्ट ने भी सवाल उठाए हैं. अनुकंपा के आधार पर नौकरी के मामले में हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है.

Compassionate Sarkari Naukri: पापा नहीं रहे तो ससुराल विदा हुई बेटी को नौकरी क्यों नहीं? क्या बेटा ही है सबकुछ; कोर्ट ने उठाए सवाल

Odisha High Court Order on Compassionate Job: अनुकंपा के आधार पर नौकरी पाने से शादीशुदा बेटी को नहीं रोका जा सकता है. ओडिशा हाईकोर्ट ने राज्य के उस सर्कुलर को 'भेदभावपूर्ण' बताते हुए खारिज कर दिया है, जिसमें महिलाओं को उनके मैरिटल स्टेटस के आधार पर अनुकंपा के आधार पर नौकरी से बाहर रखा गया था. जस्टिस एसके पाणिग्रही की सिंगल-जज बेंच ने सीमारानी पांडब को उनके पिता की जगह पर नौकरी के लिए नए सिरे से विचार करने का आदेश दिया, जिनकी भद्रक सरकारी स्कूल में फिजिकल एजुकेशन टीचर (पीईटी) के रूप में सर्विसिंग के दौरान मौत हो गई थी.

2013 से ही करें विचार

न्यायमूर्ति एसके पाणिग्रही ने ओडिशा के अधिकारियों को यह भी निर्देश दिया कि वे पांडब के आवेदन पर 2013 में पहली बार आवेदन करने के दिन से ही विचार करें. उनकी वर्तमान उम्र को इसमें बाधा न बनने दें. पांडब को 2010 के सरकारी सर्कुलर का हवाला देते हुए नौकरी देने से इनकार कर दिया गया था, जिसमें विवाहित बेटियों को अनुकंपा भर्ती का फायदा लेने से रोक दिया गया था.

अदालत ने नहीं लगाई मुहर

न्यायमूर्ति पाणिग्रही ने अपने 27 फरवरी के फैसले में कहा, "एक विवाहित बेटी को अयोग्य घोषित करने और उसे विचार से बाहर करने की नीति, मनमाना और भेदभावपूर्ण होने के अलावा, कल्याणकारी राज्य के रूप में राज्य सरकार का एक रेट्रोग्रेड स्टेप है, जिस पर इस अदालत द्वारा अप्रूवल की मुहर नहीं लगाई जा सकती है."

'ये होना चाहिए नौकरी देने का पैमाना'

न्यायाधीश ने कहा कि अनुकंपा नियुक्ति का पैमाना मृतक सरकारी कर्मचारी पर आश्रितों की निर्भरता होना चाहिए और वैवाहिक स्थिति इसमें बाधा नहीं होनी चाहिए. न्यायमूर्ति पाणिग्रही ने साफ किया कि इस तरह की रोक "स्पष्ट रूप से मनमाना और संवैधानिक गारंटी का उल्लंघन है, जैसा कि संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 16(2) में है", जो समानता और समान अवसर से संबंधित है.

हाईकोर्ट ने कहा, "चूंकि लगभग 11 साल बीत चुके हैं और कई साल मुकदमेबाजी में बिताए गए हैं, इसलिए जस्टिस और फेयर प्ले के हित में याचिकाकर्ता की उम्र उपयुक्त नौकरी के लिए विचार करने में कोई फेक्टर नहीं होगी."

Trending news