इसरो में साइंटिस्ट की नौकरी छोड़ शुरू किया अपना स्टार्ट-अप, अब कैब सर्विस बिजनेस से कमा रहे सालाना 2 करोड़ रुपये
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इसरो में साइंटिस्ट की नौकरी छोड़ शुरू किया अपना स्टार्ट-अप, अब कैब सर्विस बिजनेस से कमा रहे सालाना 2 करोड़ रुपये

Success Story: उथैया कुमार ने इसरो की नौकरी छोड़ अपने नए सफर की शुरुआत 2017 में कुछ दोस्तों की सपोर्ट से की थी, जिन्होंने एसटी कैब शुरू करने के लिए पैसा जुटाने में उनकी हेल्प की थी. आइए जानते हैं क्या है उनकी सफलता की कहानी...

इसरो में साइंटिस्ट की नौकरी छोड़ शुरू किया अपना स्टार्ट-अप, अब कैब सर्विस बिजनेस से कमा रहे सालाना 2 करोड़ रुपये

Former ISRO Scientist Success Story: ऐसी कई अनकही कहानियां हैं, जिनके हीरो कुछ असाधारण कर गुजरते हैं और लोगों का उन पर ध्यान तक नहीं जाता है. आज हम आपके लिए एक ऐसी ही मोटिवेशन कहानी लेकर आए हैं. हम बात कर रहे हैं उथैया कुमार की, जो इसरो के साइंटिस्ट रह चुके हैं और अब नौकरी छोड़कर अपना बिजनेस संभाल रहे हैं, जो अब करोड़ों रुपये का बिजनेस दे रहा है. चलिए जानते हैं क्या है एक्स इसरो साइंटिस्ट की सक्सेस स्टोरी...

एक्स इसरो साइंटिस्ट की सक्सेस जर्नी
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के साइंटिस्ट उथैया कुमार ने 7 साल बाद अपनी नौकरी छोड़कर कैब सेवा स्टार्ट-अप शुरू किया. उनका बिजनेस अब 2 करोड़ रुपये का सालाना रेवेन्यू जनरेट करता है. उनकी इस इंस्पिरेशन जर्नी को सोशल मीडिया पर काफी सराहना मिल रही है. यूजर्स उनके इस साहसिक फैसले और उसे सही साबित कर दिखाने की बेहद तारीफ कर रहे हैं.  

दरअसल, लिंक्डइन पर रामभद्रन सुंदरम द्वारा उथैया कुमार की कहानी साझा की गई, जो उनसे एक यात्रा के दौरान मिले थे. सुंदरम ने लिंक्डइन पर कहा, "मेरे उबर ड्राइवर के पास स्टेटिस्टिक्स में पीएचडी है. वह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के साथ काम करते थे. उन्होंने मुझे लीडरशिप के लेसन से मोटिवेट किया. 

तमिलनाडु में रहने वाले उथैया कुमार कन्याकुमारी जिले के एक छोटे से शहर से आते हैं. उन्होंने एमफिल की डिग्री ली और इसरो में शामिल होने से पहले पीएचडी भी कंप्लीट किया. उथैया कुमार ने इसरो से जॉब छोड़ने के बाद एक इंजीनियरिंग कॉलेज में असिस्‍टेंट प्रोफेसर की जॉब भी की थी.

ऐसे की नई पारी की शुरुआत
उथैया कुमार की दूसरी पारी की शुरुआत 2017 में हुई, जब कुछ दोस्तों ने उथैया को एसटी कैब्स शुरू करने के लिए पैसे जुटाने में मदद की. एसटी कैब्स कंपनी का नाम उन्होंने अपने माता-पिता सुकुमारन और तुलसी के नाम पर रखा था. सुंदरम ने आगे लिखा, इसरो में अपने कार्यकाल के दौरान उथैया कुमार ने लिक्विड फ्यूल के डेंसिटी को बनाए रखने, लॉन्च के दौरान एक्सप्लोजन्स रोकने के लिए उनमें बनने वाले बबल्स को कम करने पर काम किया.

लिंक्डइन पोस्ट के मुताबिक, उथैया कुमार के पास अब 37 कारों का जखीरा है, जिनका मैनेजमेंट अपने भाई के साथ मिलकर देखते हैं. उनके पास अपनी सभी ईएमआई चुकाने के लिए सिर्फ तीन साल बचे हैं. फिलहाल, यह स्टार्ट-अप हर साल 2 करोड़ रुपये कमाता है.

उथैया कुमार टैक्सी ड्राइवरों को अपना बिजनेस पार्टनर मानते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि उन्हें 30% हिस्सा मिले. वहीं, अगर कर्मचारी एक नई कार जोड़ते हैं तो उन्हें कमाई से 70% हिस्सेदारी मिलती है. इस अनोखे दृष्टिकोण ने ड्राइवरों को ज्यादा ग्राहकों को आकर्षित और कंपनी की सफलता में योगदान देने के लिए प्रेरित किया.  उथैया कुमार अपने प्रवासी कर्मचारियों के लिए आवास सुविधाएं बनाने के लिए पैसे भी बचाते हैं. साथ ही वह अपने गृहनगर में 4 बच्चों की शिक्षा का खर्च उठाते हैं.  

 

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