Etawah Lok Sabha Chunav 2024 News: इटावा कहें या सैफई हाल के दशकों में इसे सपा या मुलायम सिंह यादव के गढ़ के रूप में जाना गया है लेकिन दो बार से यहां भाजपा ने झंडा गाड़ रखा है. इस बार लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के वोटर बेस के साथ आने के कारण सपा खुद को मजबूत स्थिति में देख रही होगी.
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Etawah Lok Sabha Chunav News: अगर आप ट्रेन में बैठकर दिल्ली से कभी कानपुर की तरफ गए होंगे तो रास्ते में इटावा स्टेशन जरूर मिला होगा. मुलायम सिंह यादव का गांव सैफई इसी जिले में है. ईंटों के भट्ठे यहां बहुत हुआ करते थे, जिस कारण इटावा नाम पड़ा. सपा का गढ़ होने के कारण UP की इस लोकसभा सीट को हाईप्रोफाइल माना जाता है. यमुना के किनारे बसे जनपद इटावा से जो सांसद जीतता है उसका संदेश पूरे राज्य के लिए अहम होता है. यहां से कभी बसपा के संस्थापक कांशीराम जीते थे बाद में सपा लगातार जीतती रही.
इटावा लोकसभा चुनाव 2024 रिजल्ट
13 मई 2024 को इटावा सीट पर चौथे चरण में मतदान हुआ. यहां कुल 56.36 प्रतिशत वोटिंग हुई. औरेया विधानसभा में 55.34 फीसदी, भरथना में 57 फीसदी, दिबियापुर में 57.95 प्रतिशत, इटावा विधानसभा पर 55.57 फीसदी और सिकंद्रा में 56.02 प्रतिशत वोटिंग हुई है.
मोदी लहर में दो बार से यहां जनता 'कमल' खिला रही है.अभी भाजपा के राम शंकर कठेरिया (Ram Shankar Katheria) यहां से सांसद हैं. 2024 के चुनाव में भी भाजपा ने राम शंकर कठेरिया पर भरोसा जताया है. उधर, इटावा से सपा ने जितेंद्र दोहरे (Jitendra Dohare Etawah) को टिकट दिया है. बसपा ने हाथरस की पूर्व सांसद सारिका सिंह को टिकट दिया है.
भाजपा | राम शंकर कठेरिया | - |
सपा (INDIA गठबंधन) | जितेंद्र दोहरे | - |
बसपा | सारिका सिंह | - |
इटावा 1857 के विद्रोह का एक महत्वपूर्ण केंद्र था. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक ए ओ ह्यूम तब यहीं के जिला कलेक्टर हुआ करते थे. 2024 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की प्रतिष्ठा दांव पर है. इस बार वह अपने गढ़ को वापस फतह करना चाहेंगे. वह PDA फॉर्मूले यानी पिछड़े, दलित, अल्पसंख्यक-अगड़ों के समीकरण पर चुनाव लड़ रहे हैं. कांग्रेस के साथ सीटों के बंटवारे में सपा ने यह सीट अपने पास ही रखी है.
चुनावी साल | विजयी कैंडिडेट | पार्टी |
1957 | अर्जुन सिंह भदौरिया | सोशलिस्ट पार्टी |
1962 | गोपीनाथ दीक्षित | कांग्रेस |
1967 | अर्जुन सिंह भदौरिया | संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी |
1971 | श्रीशंकर तिवारी | कांग्रेस |
1977 | अर्जुन सिंह भदौरिया | जनता पार्टी |
1980 | राम सिंह शाक्य | जनता पार्टी |
1984 | रघुराज सिंह | कांग्रेस |
1989 | राम सिंह शाक्य | जनता दल |
1991 | कांशीराम | बसपा |
1996 | राम सिंह शाक्य | सपा |
1998 | सुखदा मिश्रा | भाजपा |
1999 | रघुराज सिंह शाक्य | सपा |
2004 | रघुराज सिंह शाक्य | सपा |
2009 | प्रेमदास कठेरिया | सपा |
2014 | अशोक दोहरे | भाजपा |
2019 | डॉ. रामशंकर कठेरिया | भाजपा |
दलित वोटर सबसे ज्यादा
हां, इटावा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में सबसे ज्यादा दलित वोटर हैं. करीब 5 लाख दलित मतदाता हैं. ये जिस तरफ रुख करते हैं उस पार्टी की जीत तय मानी जाती है. कांशीराम की जीत की वजह भी यही थे लेकिन बाद में सपा की साइकिल दौड़ने लगी. यहां ब्राह्मण वोटर करीब 3 लाख हैं. यादव ढाई लाख के करीब हैं. क्षत्रिय, लोधी, शाक्य, पाल, वैश्य 1-1 लाख से ज्यादा है. मुसलमानों की संख्या भी एक लाख से ज्यादा है.
इटावा लोकसभा क्षेत्र में 5 विधानसभाएं आती हैं- इटावा, भरथना, दिबियापुर, ओरैया, सिकंदरा (कानपुर देहात).
सुखदा मिश्रा, जिन्होंने पहली बार खिलाया कमल
हां, सपा का दबदबा होने से पहले एक महिला ने यहां भगवा दल को जीत दिलाई थी. वह कई बार कांग्रेस से विधायक रहीं. जनता दल सरकार में मंत्री बनीं. 1998 के चुनाव में सुखदा मिश्रा पहली बार भाजपा से सांसद चुनी गई थीं.
मोदी लहर में पिछड़ गई सपा
2014 में इटावा से भाजपा के टिकट पर अशोक दोहरे जीते. अगले चुनाव में टिकट कटा तो भाजपा छोड़ कांग्रेस में चले गए. 2019 का लोकसभा चुनाव हार गए. जल्द ही 'हाथ' का भी साथ छोड़ दिया. पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा के डॉ. रामशंकर कठेरिया जीते. सपा के कमलेश कठेरिया दूसरे स्थान पर रहे थे. ऐसे में इस बार INDIA गठबंधन को उम्मीद है कि कांग्रेस और सपा के साथ आने से भाजपा के लिए जीत आसान नहीं होगी. वैसे, कांग्रेस आखिरी बार यहां 1984 में जीती थी.
इटावा का इतिहास यहां पढ़ें- https://etawah.nic.in/history/