UP Bypolls RSS: मिशन उपचुनाव में संघ के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए प्रचार प्रमुख से लेकर क्षेत्र प्रचारक, प्रांत प्रचारक, संपर्क प्रमुख और बौद्धिक प्रमुख तय कर दिए गए हैं. लखनऊ में बैठक के बाद चारों सीटों से जुड़े बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं की जानकारी भी संघ के पदाधिकारियों को दे दी गई है.
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BJP-RSS UP By Elections: उत्तर प्रदेश में 9 सीटों के उपचुनाव पर चुनावी समर तेज हो चुका है. विपक्ष इस उपचुनाव को अगले विधानसभा चुनाव का ट्रेलर बता रहा है तो योगी सरकार लॉ एंड ऑर्डर जैसे मुद्दों को जनता के वोट का आधार मानकर चल रही है और इस हलचल के बीच अचानक सामने आई है संघ के एक्टिव होने की खबर.
करहल, कुंदरकी, सीसामऊ और कटहरी. Zee News को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के मुताबिक इन चार सीटों पर संघ ने प्रचार प्रसार तेज कर दिया है. मिशन उपचुनाव में संघ के एजेंडा को आगे बढ़ाने के लिए प्रचार प्रमुख से लेकर क्षेत्र प्रचारक, प्रांत प्रचारक, संपर्क प्रमुख और बौद्धिक प्रमुख तय कर दिए गए हैं. लखनऊ में बैठक के बाद चारों सीटों से जुड़े बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं की जानकारी भी संघ के पदाधिकारियों को दे दी गई है.
जमीन पर उतरे स्वयंसेवक
बताया जा रहा है कि बीजेपी का चुनावी एजेंडा आगे बढ़ाने के लिए संघ की शाखाओं में जन जागरण किया जा रहा है. इसके साथ ही साथ निजी स्तर पर भी स्वयंसेवक लोगों को योगी सरकार की उपलब्धियां बता रहे हैं. संघ का प्रचार राजनीतिक ना होकर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की थीम पर हो रहा है.
अब सवाल ये कि आखिर इन चार सीटों पर संघ अतिरिक्त जोर क्यों लगा रहा है. ऐसे क्या समीकरण हैं, जिनकी वजह से चार सीटों पर बीजेपी को संघ की शरण में जाना पड़ा है. चुनौतियां सिर्फ डेमोग्राफी से जुड़ी नहीं हैं. इन सीटों का इतिहास भी बीजेपी के अनुकूल नहीं रहा है.
करहल-कुंदरकी बीजेपी के लिए चुनौती
करहल विधानसभा पारंपरिक तौर पर समाजवादी पार्टी का गढ़ रही है. खुद अखिलेश यादव यहां से चुनाव जीत चुके हैं. इस सीट पर यादव वोट प्रभाव रखता है. इसी तरह सीसामऊ में भी समाजवादी पार्टी का प्रभाव रहा है. सीसामऊ में मुस्लिम वोट निर्णायक साबित होता है.
कुंदरकी सीट भी मुस्लिम बहुल है. यहां से जिया उर रहमान बर्क विधायक थे. बर्क के सांसद बनने के बाद सीट पर उपचुनाव हुए हैं. डेमोग्राफी और चुनावी इतिहास बताता है कि अखिलेश का PDA यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक का फॉर्मूला इन सीटों पर फिट बैठ सकता है. यही वजह है कि बीजेपी की मोर्चाबंदी के बावजूद संघ इन सीटों के लिए रणनीति बना रहा है.
हरियाणा में हुआ था कमाल
जब बीजेपी के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कमर कर लेता है तो नतीजे क्या होते हैं ये हाल ही के विधानसभा चुनाव में सामने आया था. जब संघ और बीजेपी के बीच बनी कथित दूरियां खत्म होने की बातें सामने आईं और असर हरियाणा चुनाव में दिखा.
साल 2019 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को 40 सीट मिली थीं. जबकि 2024 में जब संघ ने जोर लगाया तो बीजेपी अकेले 48 सीट लेकर बहुमत का आंकड़ा पार कर गई. इतना ही नहीं, जिन क्षेत्रों में बीजेपी को कमजोर करके आंका जाता था, वहां बीजेपी आगे बढ़ी.
बीजेपी को हरियाणा में मिली जीत
2019 में गुरुग्राम क्षेत्र में बीजेपी को 8 सीट मिली थीं. जबकि 2024 में ये आंकड़ा 10 हो गया. इसी तरह करनाल में 2019 का चुनाव बीजेपी को 7 सीट देकर गया था. जबकि 2024 में बीजेपी ने यहां 10 सीट जीतीं. रोहतक की बेल्ट में पिछली बार बीजेपी के पास सिर्फ 5 सीट थीं. तो इस बार बीजेपी 9 सीट लेकर कांग्रेस के बराबर आ गई.
यही वजह है कि महाराष्ट्र चुनाव के मद्देनजर कांग्रेस लगातार संघ को टारगेट कर रही है. लेकिन संघ चुपचाप अपना काम कर रहा है. महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश तक बीजेपी के लिए विनिंग ग्राउंड तैयार करने की तरफ बढ़ रहा है.