The Romantics Review: फीके पड़े सारे सितारे, यशराज फिल्म्स की यह कहानी सिर्फ आदित्य चोपड़ा के सहारे
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The Romantics Review: फीके पड़े सारे सितारे, यशराज फिल्म्स की यह कहानी सिर्फ आदित्य चोपड़ा के सहारे

Yash Raj Films Documentary: आप यशराज बैनर की फिल्मों के दीवाने हैं तो यह डॉक्युमेंट्री देखनी चाहिए. हालांकि इसमें कुछ गंभीर खामियां हैं और रिसर्च का सही-संतुलित इस्तेमाल नहीं किया गया. बावजूद इसके केवल आदित्य चोपड़ा एकमात्र वजह हैं, जिन्हें देखने-सुनने के लिए आपको करीब चार घंटे निकालने चाहिए.

 

The Romantics Review: फीके पड़े सारे सितारे, यशराज फिल्म्स की यह कहानी सिर्फ आदित्य चोपड़ा के सहारे

Aditya Chopra: इस बात से क्या फर्क पड़ता है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री को बॉलीवुड कहा जाए या कुछ और! लेकिन बॉलीवुड के कई सितारे इस नाम में शर्मिंदगी महसूस करते है. क्या वाकई वे दिल से यह सोचते हैं या सिर्फ दिखावे के लिए ऐसा है, कहा नहीं जा सकता. सच यही है कि हमारे पास सौ साल से ज्यादा पुरानी हो चुकी अपनी सपनों की इस रुपहली दुनिया का कोई ठोस इतिहास नहीं है. जाने कितने स्टूडियो, बड़े बैनर, बड़ी कंपनियां, बड़ी-बड़ी हस्तियां अपने-अपने दौर में शिखर पर पहुंचे और डूब गए. आज उनका कोई नामलेवा नहीं है. आज की तारीख में यशराज फिल्म्स बॉलीवुड का ‘वार्नर ब्रदर्स’ है. अच्छी बात यह है कि कम से कम अब इतिहास को सहेजने की कोशिश हो रही है. भले ही उसमें तटस्थता नहीं है और निजी प्रयास से उसे अपने अनुकूल लिखा या बनाया जा रहा है. नेटफ्लिक्स पर यशराज फिल्म्स अपने पचास साल के अतीत और पितृपुरुष यश चोपड़ा पर बनी डॉक्युमेंट्री, द रोमांटिक्स लाया है. औसतन एक-एक घंटे की चार कड़ियां अपने समय, सिनेमा और सितारों वाली यशराज की दुनिया को सामने साकार करती है.

कपड़े का थान और कट-पीस
यश चोपड़ा (1932-2012) के दौर में यशराज फिल्म्स एक खास तरह के सिनेमा के लिए पहचाना जाता रहा है. जिसमें दुख भी चमकता नजर आता है. लकदक कपड़े, खूबसूरत वादियां, रंगीन माहौल, रूमानी संगीत इसकी पहचान रहा है. यूं तो कहानी चोपड़ा फैमिली के जालंधर में रहने और परिवार के सबसे बड़े बेटे बलदेव राज चोपड़ा के मुंबई में सिनेमा से शुरू होती है. परंतु जल्द ही हम यहां यश चोपड़ा को अपने भाई के लिए और फिर स्वतंत्र रूप से फिल्में बनाते पाते हैं. 1975 की इमरजेंस से देश के बदलते हैं और एंग्री यंगमैन (अमिताभ बच्चन) आता है. यश चोपड़ा की दीवार आती है. मगर जल्द ही उनका सिनेमा करवट बदलता है और रोमांस के नए अंदाज को अपनाता है. रेशमी एहसासों वाली कभी कभी, सिलसिला, चांदनी और लम्हे जैसी फिल्में बॉलीवुड पर गहरा असर छोड़ती हैं. यह अलग बात है कि इनमें से सिर्फ चांदनी को बॉक्स ऑफिस पर बड़ी सफलता मिलती है. अर्जुन कपूर डॉक्युमेंट्री में सच कहते हैं कि ऐसा लगता है, यश अंकल ने अपनी फिल्मों से जो कपड़े का थान तैयार किया, आज भी बॉलीवुड उससे कट-पीस निकाल-निकाल कर अपनी फिल्में बना रहा है.

पर्दे के पीछे, पर्दे का हीरो
द रोमांटिक्स यश चोपड़ा के निजी जीवन, करियर और व्यावसायिक सफलता-विफलता का खाका सामने रखती है. हालांकि बहुत विस्तार में नहीं जाती. निर्माता-निर्देशक इस डॉक्युमेंट्री में बॉलीवुड सितारों के चक्कर में पड़े रहे. जिनमें से ज्यादातर सिर्फ चेहरा दिखाने के लिए रखे गए लगते हैं. वह यशराज के रोमांटिक्स के विषय में कुछ गंभीर नहीं जोड़ते. न यश चोपड़ा के बारे में और न ही स्टूडियो के बारे में. कुछेक छोड़ दें तो सितारों की टिप्पणियां सतही हैं. इसके बावजूद यह डॉक्युमेंट्री किसी वजह से सबसे ज्यादा देखने योग्य है, तो वह हैं आदित्य चोपड़ा. जो यश चोपड़ा के बड़े बेटे हैं और जिन्होंने यशराज स्टूडियो को अपने सपनों के ताने-बाने से बुना है. आदित्य चोपड़ा आम तौर पर कैमरे के पीछे ही रहे हैं और वे लोगों के सामने नहीं आते. परंतु इस डॉक्युमेंट्री के हीरो वही हैं. पिता को वह बड़ी संवेदना से याद करते हैं, सिनेमा के लिए उनका जुनून यहां सामने आता है और उनकी बातें में ईमानदारी दिखती है.

द रोमांटिक्स में एक्स्ट्राज
यश चोपड़ा के छोटे बेटे उदय भी अपने पिता को शिद्दत से याद करते हैं. पर्दे पर उनकी चाहे जो इमेज रही और दर्शकों द्वारा नापसंद किए जाने पर उन्होंने फिल्मों से दूरी बना ली, मगर इस डॉक्युमेंट्री में वह समझदार और संजीदा इंसान के रूप में सामने आते हैं. यश चोपड़ा की पत्नी पामेला को सुनना भी महत्वपूर्ण है. परिवार के इन सदस्यों के अतिरिक्त करण जौहर और शाहरुख खान की बातें इस डॉक्युमेंट्री को आकर्षक बनाती है. ऋषि कपूर की यादें पुराने दिनों को सामने लाती हैं. इन लोगों के अतिरिक्त बॉलीवुड के अधिकतर सितारे द रोमांटिक्स में एक्स्ट्राज की तरह हैं. वास्तव में सिनेमा जितना पर्दे पर दिखने वालों का है, उससे ज्यादा पर्दे के पीछे परिश्रम करने और सपने देखने वालों का होता है. यह बड़ी कमी इस डॉक्युमेंट्री में खलती है. निर्देशक स्मृति मूंदड़ा पर्दे की चमक-दमक में उलझी रह गईं. यश चोपड़ा की बड़े-बड़े सितारों वाली फिल्में भले नाकाम रहीं, मगर उनका संगीत आज भी दिल में झंकार पैदा करता है. संगीत का पूरा पक्ष इस डॉक्युमेंट्री से गायब है. जिन कैमरों से स्विट्जरलैंड और कश्मीर समेत नायक-नायिकाओं को खूबसूरती से शूट किया गया, उन कैमरों को चलाने वालों से पूछा जाता कि यश चोपड़ा दृश्यों की कल्पना कैसे करते थे. वास्तव में इसी डॉक्युमेंट्री में ऐसे सबक हैं, जिन्हें आदित्य चोपड़ा को दोहरा लेना चाहिए. स्क्रीन पर दिखने वाले सितारों के दम पर फिल्म बनाई और बेची तो जा सकती है, चलाई नहीं जा सकती. उन्हें अपने आस-पास सपने देखने और उन्हें साकार करने का जुनून रखनेवालों की ज्यादा जरूरत है.

निर्देशकः स्मृति मूंदड़ा
सितारेः यश चोपड़ा, आदित्य चोपड़ा, उदय चोपड़ा, पामेला चोपड़ा, करण जौहर, ऋषि कपूर-नीतू कपूर, अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, रणवीर सिंह, रानी मुखर्जी, माधुरी दीक्षित, अभिषेक बच्चन, आयुष्मान खुराना भूमि पेडनेकर
रेटिंग***

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