Amjad Khan: हिंदी फिल्मों का इतिहास उठा कर देखिए तो तमाम ऐसे खलनायक मिलेंगे, जिन्होंने सिनेमा में हीरो के तौर पर शुरुआत की थी. लेकिन हीरो के रूप में उनकी पारी नहीं जमी तो विलेन बन गए. अमजद खान भी एक अलग नाम से हीरो बनकर आने वाले थे, परंतु उन्हें यह मौका ही नहीं मिला. क्या है उनके हीरो न बन पाने की कहानी, जानिए...
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Amjad Khan Film: शोले के गब्बर को कौन नहीं जानता. ‘यहां से पचास-पचास कोस दूर गांव में जब बच्चा रात को रोता है, तो मां कहती है बेटा सो जा... नहीं तो गब्बर आ जाएगा!’ फिल्म शोले में गब्बर सिंह द्वारा बोला गया यह डायलॉग आज भी लोगों की जुबान पर है. जब भी शोले दिमाग में आती है तो सबसे पहले जिस शख्स का चेहरा दिमाग में आता है वह गब्बर सिंह का ही होता है. वह कैरेक्टर ही ऐसा था और अमजद खान ने उस किरदार को इस तरह निभाया कि आज तक जीवंत है. गब्बर सिंह का किरदार निभाकर अमजद खान लोगों के दिलो-दिमाग में हमेशा के लिए बस गए. लेकिन यह बात कम लोग जानते हैं कि अमजद खान हीरो के रूप में हिंदी सिनेमा में एंट्री चाहते थे लेकिन किस्मत ने बना दिया विलेन.
ऐसे बनी थी योजना
अमजद खान के पिता जयंत फिल्मों के दिग्गज अभिनेता थे, वह अपने बेटे को बतौर हीरो फिल्मों में इंट्रोड्यूस करना चाहते थे. कोई निर्माता-निर्देशक न मिलने पर उन्होंने खुद ही फिल्म प्रोड्यूस करने की सोची. यह फिल्म थी, पत्थर के सनम. जी हां चौंकिए मत. मनोज कुमार की पत्थर के सनम जो 1967 में आई थी, उनसे पहले यह अमजद खान की डेब्यू फिल्म होने वाली थी. जयंत इस फिल्म को 1965 में बनाने वाले थे. इस फिल्म से अमजद खान हीरो के रूप में शुरुआत करते. जयंत इस फिल्म को प्रोड्यूस करते और अमजद खान के भाई इम्तियाज खान डायरेक्टर होते.
अमजद का यह होता नाम
एक और खास बात यह कि यदि यह फिल्म बनती तो अमजद खान का नाम अमजद खान नहीं बल्कि नीरज होता. वह इसी नाम से बॉलीवुड में एक हीरो के रूप में अपना करियर बनाना चाहते थे. लेकिन भगवान को कुछ और मंजूर था. न तो यह फिल्म बनी और न ही अमजद खान हीरो के रूप में बॉलीवुड में अपनी जगह बना पाए. कई लोगों को लगता है कि शोले उनकी पहली फिल्म थी. लेकिन ऐसा नहीं है. शोले से पहले उन्होंने अपने करियर की शुरुआत चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में की थी.
शोले नहीं, यह थी पहली फिल्म
अमजद खान पहली बार 1951 में आई फिल्म नाजनीन में नजर आए थे. इसके बाद उन्होंने कुछ और फिल्मों में चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर काम किया. कुछ साल तक थिएटर में भी काम किया. 1973 में उन्हें पहली फिल्म मिली चेतन आनंद की हिंदुस्तान की कसम. यह एक मल्टीस्टारर फिल्म थी. इसमें अमजद खान एक पाकिस्तानी पीएएफ पायलट की भूमिका में थे. उन्हें हिंदी फिल्मों में सफलता और पहचान मिली शोले (1975) से. इस फिल्म के बाद कई फिल्मों में उन्होंने विलेन की भूमिका निभाई. कुछ फिल्मों में सपोर्टिंग रोल भी किए जिनमें चमेली की शादी, दादा और याराना जैसी उनकी यादगार फिल्में शामिल हैं.