Friendship Day: इन सितारों की दोस्ती के बीच आई शराब, पर हकीकत जानकर सोच में पड़ जाएंगे आप
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Friendship Day: इन सितारों की दोस्ती के बीच आई शराब, पर हकीकत जानकर सोच में पड़ जाएंगे आप

Bollywood Actors: चंद्रमोहन और मोतीलाल हिंदी सिनेमा के इतिहास में अपने रूप-रंग और अंदाज से पहचाने जाते थे. दोनों की दोस्ती पक्की थी. दोनों के शौक एक जैसे थे. दोनों का अंत भी एक जैसे हुआ. लेकिन उनकी दोस्ती का यह किस्सा बड़ा मशहूर रहा...

 

Friendship Day: इन सितारों की दोस्ती के बीच आई शराब, पर हकीकत जानकर सोच में पड़ जाएंगे आप

Bollywood Friends: ऐसा नहीं है कि बॉलीवुड सितारों के बीच आपस में एक-दूसरे के लिए प्रतिद्वंद्विता ही होती है. सिनेमा का इतिहास बताता है कि वे बहुत अच्छे दोस्त भी होते हैं. हिंदी फिल्मों में एक से बढ़कर एक कमाल के एक्टर आए. इन्हीं में 1950 और 1960 के दशक में अपने खास अंदाज के लिए दर्शकों पर छा जाने वाले दो अभिनेता थे, चंद्रमोहन (Actor Chandramohan ) और मोतीलाल (Actor Motilal). दोनों बहुत अच्छे दोस्त थे. दोनों को घुड़सवारी के मैदान में दांव लगाने, अच्छा साहित्य पढ़ने और महंगी शराब पीने का शौक था. अक्सर दोनों की शामें साथ गुजरती थी. चंद्रमोहन  अपने दौर के भूरी आंखों वाले पत्थरदिल खलनायक थे. जबकि मोतीलाल किसी हैंडसम हीरो से कम नहीं थे.

आर्थिक संकट में सितारे
अपनी-अपनी इमेज में बंधे होने के बावजूद चंद्रमोहन और मोतीलाल ने पर्दे पर अलग-अलग तरह की भूमिकाएं निभाई. मोतीलाल को मिस्टर संपत (1952) में देखिए और चंद्रमोहन को मेहबूब खान की रोटी (1942) में. ये फिल्में उनके अभिनय की ऊंचाई के बारे में बताती हैं. खैर, शानदार जीवन जीने वाले इन एक्टरों के आखिरी दिन बहुत आर्थिक संकट में बीते. वह थी घुड़दौड़ पर पैसा लगाने की लत, जुआ, फिजूल खर्जी और शराब. दोनों का एक किस्सा बहुत मशहूर है, जो उस दौर के चर्चित पत्रकार और पीआर बनी रूबेन ने अपनी किताब फॉलीवुड फ्लैशबैक में लिखा है. रूबेन ने लिखा है कि एक दिन चंद्रमोहन ने मोतीलाल को बातचीत के लिए बुलाया. 

आ रही थी शर्म
जब मोतीलाल चंद्रमोहन के घर पहुंचे, तो वह अकेले बैठे थे. उनके सामने एक महंगे ब्रांड की बोतल खुली थी. लेकिन चंद्रमोहन ने मोतीलाल को पीने के लिए एक बूंद भी नहीं दी. अकेले पीते हुए अपनी परेशानियों के बारे में मोतीलाल से बात करते रहे. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था कि दोनों साथ बैठें और कोई अकेला पीए. मोतीलाल ने भी कुछ नहीं कहा. जब बातें खत्म हो गई तो चंद्रमोहन मोतीलाल को छोड़ने के लिए लिफ्ट तक गए. लिफ्ट का दरवाजा खुलते ही चंद्रमोहन फूट-फूट कर रोने लगे. उन्होंने दोस्त को गले लगा लिया. असल में ब्रांडेड बोतल में देसी शराब भरी हुई थी. चंद्रमोहन ने कहा कि उनके पास देसी शराब के लायक पैसे थे. अपने दोस्त को बढ़िया स्कॉच के बदले देसी शराब देने में उन्हें बहुत शर्म आ रही थी.

दोस्त जैसा हश्र
गरीबी की मार झेलते हुए 1949 में दो अप्रैल को चंद्रमोहन की मृत्यु हो गई. उनके आखिरी दिनों और अंतिम पलों में मोतीलाल साथ थे. मोतीलाल का हश्र भी अपने दोस्त की तरह हुआ. 16 साल बाद उन्होंने एक अस्पताल में दम तोड़ा, तो फीस चुकाने के लिए उनके पास पैसे नहीं थे. हालांकि उन दोनों वह छोटी छोटी बातें नाम की एक फिल्म का निर्माण और निर्देशन कर रहे थे. इसी फिल्म को बनाते हुए उनकी तबीयत बिगड़ी और पूरा नियंत्रण उनके हाथ में नहीं रहा. 1965 में रिलीज हुई इस फिल्म को सराहना तो बहुत मिली, परंतु बॉक्स ऑफस पर नहीं चली. इसी साल मोतीलाल भी गुजर गए. हिंदी सिनेमा में उनके योगदान को याद करते हुए 2013 में भारत सरकार ने उन पर डाक टिकट जारी किया था.

 

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