Dahaad Review: कहानी में हैं ऊंच-नीच के कई पहाड़, सोनाक्षी के साथ विजय वर्मा ने लगाई दहाड़
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Dahaad Review: कहानी में हैं ऊंच-नीच के कई पहाड़, सोनाक्षी के साथ विजय वर्मा ने लगाई दहाड़

Sonakshi Sinha Web Series: वेब सीरीज दहाड़ का इंतजार हो रहा था. सोनाक्षी सिन्हा इससे ओटीटी पर डेब्यू कर रही हैं. सीरीज के ट्रेलर ने जो रोमांच पैदा किया था, वह कुछ हद तक यहां बरकरार रहता है और इसके बीचे विजय वर्मा की बेहतरीन एक्टिंग है. लेकिन दहाड़ की कुछ मुश्किलें भी हैं. सीरीज दिखने से पहले जान लीजिए...

 

Dahaad Review: कहानी में हैं ऊंच-नीच के कई पहाड़, सोनाक्षी के साथ विजय वर्मा ने लगाई दहाड़

Sonakshi Sinha On OTT: हिंदी पढ़ाने वाले प्रोफेसरों या हिंदी मीडियम टीचरों को हमारे सिनेमा में अक्सर हल्के ढंग से दिखाया जाता है. वे कभी कॉमिक होते हैं और कभी इतने कमजोर कि हर कोई उन्हें मंदिर के घंटे की तरह बजाकर चला जाता है. कभी वे क्रिमिनल भी होते हैं. अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज हुई वेबसीरीज दहाड़ में आप हिंदी प्राध्यापर को अपराधी के रूप में देखेंगे. सीरियल किलर. जो गरीब, अभावग्रस्त परिवार की युवतियों को अपने प्रेम जाल में फंसाता है, उन्हें घर से भगाता है. फिर उन युवतियों की लाश मिलती है कि उन्होंने साइनाइड खाकर जान दे दी. कहानी में आपको तो दिखता है कि यह पूरा मामला क्या है, परंतु वेबसीरीज में इस मामले की जांच कर रही सब-इंस्पेक्टर अंजली भाटी (सोनाक्षी सिन्हा) हत्यारे के पीछे है और उसे रंगे हाथ पकड़ना चाहती है.

बदल गई जगह
अगर आप खबरों की दुनिया पर नजर रखते हैं तो करीब एक दशक पीछे जाने पर आपको साइनाइड मोहन का नाम याद आ सकता है. मामला कर्नाटक का था. 2013 में सामने आया. मोहन एक स्कूल में फिजिकल एजुकेशन का टीजर था और उसने करीब दो दर्जन महिलाओं-युवतियों को अपने प्यार के जाल में फंसा कर घर से भगाया. उसकी प्रेमिकाएं घर से जेवर तथा पैसे लेकर भागा करती थीं. मोहन उनसे शादी करता और फिर गर्भनिरोधक के नाम पर उन्हें साइनाइड खिलाकर मार देता. उनके जेवर-पैसे लेकर फरार हो जाता. आखिरकार वह पकड़ा गया और फास्ट ट्रेक कोर्ट ने उसे मौत की सजा सुनाई. दहाड़ की पूरी कहानी इसी साइनाइड मोहन के आइडिये पर रची गई है और उसे राजस्थान की जमीन पर रोंप दिया गया है.

कहानी के उतार-चढ़ाव
इस सच्ची घटना से प्रेरित दहाड़ की कहानी आठ लंबे एपिसोड में फैली है. हर एपिसोड औसतन 50 से 55 मिनट का है और अच्छा खासा समय लेता है. हालांकि मूल आइडिया साफ होने के बावजूद इस कहानी की यात्रा उतार-चढ़ाव भरी है. कहानी न केवल धीमी रफ्तार से शुरू होती है, बल्कि सीरियल किलिंग के साथ राजस्थान के बहाने जाति व्यवस्था और स्त्री-पुरुष की ऊंच-नीच के विमर्श को लेकर भी आगे बढ़ती है. इसमें काफी समय खर्च होता है और कई बार आपको लगता है कि मेकर्स सीधे मुद्दे पर क्यों नहीं टिकते. कहानी बताती है कि मरने वाली दो दर्जन से ज्यादा लड़कियां पिछड़ी जाति की हैं. इन्हीं में अगर कोई अगड़ी जाति की होती तो न केवल सिस्टम हिला जाता बल्कि नेता भी लड़की को न्याय दिलाने के शोर में पीछे नहीं रहते.

सोनाक्षी का ओटीटी डेब्यू
दहाड़ क्राइम थ्रिलर होने के साथ-साथ एक महिला पुलिस अधिकारी की निजी जिंदगी को भी सामने लाती है, जो हर मोर्चे पर जाति और उम्र के सवालों का सामना करती है. सोनाक्षी सिन्हा का ओटीटी की दुनिया में डेब्यू है. कहानी में दो लड़के बाइक पर उन्हें छेड़ते हुए लेडी सिंघम कहते हैं. इस बहाने लेखकों-निर्देशकों की टीम बताती है कि शोहदों के लिए क्या आम लड़की और क्या पुलिसवाली, सब बराबर हैं. दहाड़ की कहानी में हिंदी के प्राध्यापक आनंद बने विजय वर्मा ही आकर्षण का केंद्र हैं. उनका काम, हाव-भाव, संवाद अदायगी शानदार है. पर्दे पर वह आपको बांध लेते हैं. हत्या का शैतानी इरादा उनके चेहरे इतनी तीव्रता से आता है कि कई बार देखने वाले के मन में डर भी पैदा हो सकता है. आनंद की पर्सलन लाइफ की कहानी भी यहां रोचक है.

बातें नई-पुरानी
विजय वर्मा के साथ यहां पुलिसवाले बने सोहम शाह और सबके पुलिस बॉस बने गुलशन देवैया भी अपने किरदारों के साथ न्याय करते हैं. राइटरों ने यहां सबकी निजी जिंदकियों को उतार-चढ़ाव को भी दिखाया है और आप पाते हैं पुलिसवाले सिर्फ वर्दी में कैद इंसान नहीं हैं, बल्कि उसके बाहर भी उनके रिश्ते-नाते और जिंदगी है. वे सिर्फ समस्याओं से निजात दिलाने वाले नहीं हैं. उनकी जिंदगी में भी समस्याएं घर किए रहती हैं. उन्हें भी मानसिक-शारीरिक, पारिवारिक-सामाजिक चुनौतियों से निपटना पड़ता है. सीरीज में किरदारों को भले ही अच्छे से उकेरा गया हो परंतु राजस्थानी परिवेश और इसकी वजह से आने वाली स्थानीय समस्याओं का लंबा विमर्श इस कहानी की रफ्तार में बाधा बनता है. ऊंची-नीची जाति, सामाजिक कुरीतियां, राजनीति के स्याह पक्ष और स्त्री-पुरुष के भेद जैसी बहस इसे कहीं-कहीं बोर करती हैं क्योंकि ये तमाम फिल्मों-सीरीजों में आती रही हैं.

जल्दबाजी और सुविधा
यहां एक और मुश्किल है, दहाड़ का क्लाइमेक्स. यह तो सभी जानते हैं कि अपराधी और पुलिस की कहानी के अंत में क्या होगा. परंतु इंतजार रहता है कि वह आखिरी क्षण कैसे होंगे. कहानी कहां से किधर छलांग मारेगी. उससे पहले की अपराधी और पुलिस की दौड़ कैसी होगी. कौन बचेगा, कौन छलेगा. यह बातें दहाड़ में निराश करती हैं और महसूस होता है कि सब कुछ बहुत जल्दबाजी में सुविधा के हिसाब से समेट दिया गया. इन तमाम बातों के बीच यह सीरीज विजय वर्मा के लिए देखी जा सकती है. अगर आप साइनाइड मोहन का केस न जानते हों तब भी इसे देख सकते हैं. इसके लिए ओटीटी का सब्सक्रिप्शन और समय, दोनों होना चाहिए.

निर्देशकः रीमा कागती-रुचिका ओबेरॉय
सितारे: सोनाक्षी सिन्हा, विजय वर्मा, गुलशन देवैया, सोहम शाह, जया मोरानी, संघमित्रा हितैषी
रेटिंग***

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