जानें कैसे 'अफीम और अजान' बने मुगल बादशाह हुमायूं की मौत का कारण, काफी दर्दनाक तरीके से हुई थी मृत्यु
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जानें कैसे 'अफीम और अजान' बने मुगल बादशाह हुमायूं की मौत का कारण, काफी दर्दनाक तरीके से हुई थी मृत्यु

हुमायूं की मौत की सच्ची कहानी उनकी बहन गुलबदन बेगम ने हुमायूंनामा में लिखी थी. उन्होंने बताया है कि आखिर कैसै हुमांयू की दर्दनाक तरीके से मौत हुई थी.

जानें कैसे 'अफीम और अजान' बने मुगल बादशाह हुमायूं की मौत का कारण, काफी दर्दनाक तरीके से हुई थी मृत्यु

नई दिल्ली: मुगल सल्तनत की नींव रखने वाले बादशाह बाबर के बेटे हुमायूं की मृत्यु को लेकर काफी असमंजस है. बहुत से लोग नहीं जानते कि मुगल बादशाह हुमायूं की मौत कैसे हुई थी. लेकिन आज हम आपको बताएंगे कि आखिर हुमायूं की मौत कैसे और किन कारणों से हुई थी. क्योंकि हुमायूं की मौत की सच्ची कहानी उनकी बहन गुलबदन बेगम हुमायूंनामा में लिख गई थीं. 

बाबर की मौत के बाद मुगल साम्राज्य अपने आप को काफी असुरक्षिक महसूस करने लगा था. हालात, इतने खराब थे कि बाबर की मौत की खबर को भी दुनिया से छिपा कर रखना पड़ा था. इसलिए बाबर की मौत के 4 दिन बाद 30 दिसंबर, 1530 को हुमायूं ने मुगल साम्राज्य की गद्दी संभाल ली.

हुमायूं ने 1930 से 1940 तक राज किया, लेकिन 1940 में शेर शाह सूरी से हारने के बाद हुमायूं को अपना साम्राज्य गंवाना पड़ा. हालांकि, हुमायूं में हिम्मत ना हारने की एक खूबी थी, जिस कारण उसने 15 साल बाद 1555 में अपना साम्राज्य दोबारा से हासिल कर लिया. लेकिन अपना साम्राज्य दोबारा हासिल करने के बाद वह उसे ज्यादा समय तक भोग नहीं पाया. महज एक साल बाद 1556 में ही हुमायूं की मृत्यु हो गई. 

इतने दर्दनाक तरीके से हुई थी हुमायूं की मौत
अब बात करें कि आखिर कैसे हुमायूं की मौत हुई, तो बहन गुलबदन बेगम लिखती हैं कि 24 जनवरी, 1556 का दिन था. कड़ाके की ठंड पड़ रही थी. इसलिए हुमायूं ने गुलाब जल मंगवाया और उसके साथ ही अफीम भी ली. वो अफीम का काफी सेवन करता था. दोपहर का समय था और हज यात्रा करके कुछ लोग सल्तनत में पहुंचे थे. ऐसे में हुमायूं ने उन लोगों से मुलाकात करने के लिए उन्हें पुस्तकालय में बुलाया. जो महल की छत पर था.

छत पर मिलने की एक खास वजह थी और वह यह थी कि हुमायूं चाहता था कि महल के बगल में बने मस्जिद में जुमे की नमाज अदा करने पहुंचे लोगों को भी देखा जा सके और वो सभी अपने बादशाह की एक झलक पा सकें. हजयात्रियों से मुलाकात के बाद हुमायूं ने अपने गणितज्ञ को बुलाया और उसे आदेश देते हुए यह पूछा कि आखिर किस दिन आसमान में शुक्र ग्रह दिखाई देगा. क्योंकि हुमायूं इसे पवित्र दिन मानता था और यह साम्राज्य के लोगों की पदोन्नति का आदेश जारी करने का दिन था.

इसके बाद जब हुमायूं सीढ़ियों से नीचे उतरने लगे, तो दूसरे पायदान पर पैर रखते ही उन्हें मस्जिद से अजान सुनाई दी. धार्मिक शख्स होने के कारण हुमायूं ने अजान की आवाज कान में पड़ते ही वहीं बैठने की कोशिश की. इस दौरान उनका पैर उनके जामे में फंस गया. नतीजा पैर ऐसा फिसला कि हुमायूं सिर के बल गिरा. सिर में इतनी गहरी चोट लगी कि उसके दाहिने कान से तेजी से खून निकला और उसने मौके पर ही दम तोड़ दिया.

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