O My God 2 Film Review: यह फिल्म आज के जिन किशोरों का मन और जीवन समझने के उद्देशय से बनाई गई है, वही ए सेर्टिफिकेट के कारण इसे नहीं देख पाएंगे. मुद्दा है, यौन शिक्षा. अगर अवयस्क इसे नहीं देख पाते हैं, तो किशोरवय बच्चों के माता-पिता और शिक्षकों को तो जरूर देखना चाहिए. फिल्म कुछ जरूरी बातें करती है...
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O My God 2 Movie Review: गोरे अंग्रेज साहब लॉर्ड मैकाले ने सन् 1835 में भारत में पुरानी गुरुकुल शिक्षा पद्धति को खत्म करके पश्चिमी देशों जैसी स्कूली शिक्षा तथा पश्चिमी पाठ्यक्रम को लागू करवाया. बताया कि अगर इस देश को अपना गुलाम रखना है तो यहां की संस्कृति और शिक्षा पद्धति को खत्म किया जाए. 12 साल बाद अंग्रेजों की लाई शिक्षा पद्धति को 200 साल पूरे हो जाएंगे. क्या खोया, क्या पाया जैसे सवाल उठेंगे. लेकिन लेखक-निर्देशक अमित राय की फिल्म ओ माई गॉड 2 (O My God 2) फिलहाल बताती है कि अंग्रेजों से पहले भारतीय गुरुकुल में कामशास्त्र भी एक विषय था. धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष सनातन संस्कृति के चार आधार स्तंभ थे. अंग्रेजी पाठ्यक्रम के साथ हमारे इस पारंपरिक-प्राचीन ज्ञान को हाशिये पर धकेलकर नष्ट कर दिया गया. हमारे कामसूत्र को पश्चिम ले उड़ा और आज मॉडर्न कहलाता है. आचार्य वात्स्यायन की किताब कामसूत्र दुनिया की सबसे बड़ी सेलर में है. तो हम कहां पीछे रह गएॽ
स्कूल से अदालत तक
वास्तव में आज भी यह बहस का विषय है कि क्या कामशास्त्र यानी सेक्स एजुकेशन विद्यालयों-विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाना चाहिएॽ यह शिक्षा देने से क्या होगा और न देने से क्या हो रहा हैॽ ओ माई गॉड 2 का पूरा कथानक इसी पर केंद्रित है. महाकाल की नगरी, उज्जैन में कांतिलाल मुद्गल (पंकज त्रिपाठी) भगवान शिव के भक्त हैं. शहर के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल में पढ़ने वाले उनके बेटे का स्कूल-शौचालय में हस्तमैथुन करते हुए एक वीडियो वायरल हो जाता है. नतीजा यह कि स्कूल बच्चे को निकाल देता है. वायरल वीडियो से मुद्गल परिवार की हर तरफ बदनामी होती है. कांतिलाल बच्चों को यौन शिक्षा न देने के लिए स्कूल समेत कुछ अन्य लोगों को अदालत में घसीट लेता है. यहां कांतिलाल खुद अपना केस लड़ता है. उसके सामने है, शहर की सबसे बड़ी वकील कामिनी (यामिनी गौतम धर). इस केस में भगवान शिव अपने एक गण (अक्षय कुमार) को नंदी के साथ, अपने भक्त कांतिलाल के मार्गदर्शन के लिए भेजते हैं. कैसी होगी यह अदालती लड़ाई और क्या आएगा नतीजाॽ
देखिए क्या विडंबना है
बॉलीवुड में सेक्स एजुकेशन पर यह संभवतः पहली फिल्म है. जिसे निर्देशक अमित राय ने पूरे साहस के साथ लिखा और निर्देशित किया है. लीक से हटकर फिल्म बनाने के लिए वह प्रशंसा के पात्र हैं. फिल्म हमारे समय की बात करती है. लेकिन विडंबना यह कि कहानी के माध्यम से जिस किशोरवय पीढ़ी को लेकर पूरा विचार-विमर्श बुना गया, सेंसर से मिले ए सेर्टिफिकेट के बाद वही इसे नहीं देख सकती. ओ माई गॉड 2 का खाका दिलचस्प है. कई जगहों पर बहुत इमोशनल भी. खास तौर पर पिता धीरे-धीरे जिस तरह से अपने किशोरवय पुत्र को समझता और उसके हक में खड़ा होता है, वह हिस्सा आंखें नम कर देता है. इसी तरह फिल्म के अदालती दृश्यों में कुछ ऐसे मौके आते हैं, जहां आप सहज ही हंसे-मुस्कराए बगैर नहीं रह सकते हैं. निश्चित ही यह फिल्म देखने योग्य है. स्कूली शिक्षकों समेत कम से कम उन बड़ों को जरूर देखनी चाहिए, जिनके बच्चों ने किशोरवय में कदम रख दिया. यहां पिता स्कूल और अन्य लोगों के साथ खुद को भी कठघरे में खड़ा करता है कि उसने भी बच्चे को यौन रूप से शिक्षित करने का कोई प्रयास नहीं किया.
कुछ बातें यह भी
इन बातों के बावजूद फिल्म में कुछ कमियां हैं. कहानी में उतार-चढ़ाव तो आते हैं, लेकिन अदालत के दृश्यों में दोनों तरफ से तूफानी द्वंद्व जैसा नहीं दिखता. तर्कों का अभाव झलकता है. खास तौर पर स्कूल की तरफ से यौन शिक्षा के विरुद्ध खड़ी वकील कामिनी, केस आगे बढ़ने के साथ लगातार कमजोर होती जाती हैं. वह ठोस तर्क नहीं रख पातीं. न ही अपनी बात के हक में मजबूत नजीरें पेश कर पाती हैं. क्लाइमेक्स से पहले की घटनाएं भी कहानी को उलझाती हैं और अंत को नई ऊंचाई देने में नाकाम रहती हैं. आखिरी दृश्य में अदालत कमरे से बाहर निकल कर खुले प्रांगण में आ जाती है और अंतिम बहस तथा फैसले को सुनने के लिए पूरा मीडिया और स्कूल-कॉलेजों के बच्चे जुट जाते हैं. जिस तरह से कहानी बढ़ती है और फिल्म का उद्देश्य जब आप जानते हैं तो यह भी पता होता है कि क्या फैसला आएगा. ऐसे में लेखक-निर्देशक से अंतिम पलों में आप बेहतर दृश्यों-संवादों की उम्मीद करते हैं.
मार्गदर्शक भी, सहायक भी
फिल्म के केंद्रीय पात्रों की बोली मालवी है. हालांकि यह आसानी से समझ आती है परंतु कई लोगों को इस वजह से किरदारों से कनेक्ट करने में मुश्किल आएगी. उन्हें बोली से जुड़ने के लिए अतिरिक्त प्रयास करना पड़ेगा. पंकज त्रिपाठी ने अपने किरदार को बहुत बढ़िया ढंग से निभाया है. वह पूरी फिल्म को अपने कंधे पर लेकर चलते हैं. अक्षय कुमार शिव-गण के रूप में उनके मार्गदर्शक होकर भी सहायक की तरह रहे हैं. शिव-गण के रूप में अक्षय आकर्षक लगे हैं और जहां-जहां प्रकट हुए, वहां छाप छोड़ने में सफल रहे. मगर पंकज इस रोल के लिए याद रह जाते हैं. वकील कामिनी के किरदार में यामी गौतम धर ठीक हैं. उनके हिस्से बेहतर स्क्रिप्ट और संवाद रहते, तो वह निखर कर आतीं. पवन राज मल्होत्रा जज की भूमिका से न्याय करते हैं. कांतिलाल के बेटे विवेक की भूमिका में आरुष वर्मा, पत्नी के रूप में गीता अग्रवाल और बेटी के रूप में अन्वेषा विज छाप छोड़ते हैं. अरुण गोविल, गोविंद नामदेव और ब्रिजेंद्र काला भी अपने-अपने रोल में फिट हैं. बेहतर म्यूजिक फिल्म की और मदद कर सकता था.
निर्देशकः अमित राय
सितारे: अक्षय कुमार, पंकज त्रिपाठी, यामी गौतम
रेटिंग***1/2