Ek Din Ek Film: इस फिल्म ने बदली थी कई जिंदगियां, बच्चों को सिखाया अपने मां-बाप की कद्र करना
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Ek Din Ek Film: इस फिल्म ने बदली थी कई जिंदगियां, बच्चों को सिखाया अपने मां-बाप की कद्र करना

20 years of Baghban: ‘जो बच्चे अपने मां-बाप को प्यार नहीं दे सकते, सहारा नहीं दे सकते, मान सम्मान नहीं दे सकते, उन्हें मैं कभी माफ नहीं करता.’ यह संवाद 20 साल पहले आई फिल्म बागबान के क्लाइमेक्स का है. आज भी यह फिल्म भारतीय समाज के एक बड़े सच की तस्वीर पेश करती है...

 

Ek Din Ek Film: इस फिल्म ने बदली थी कई जिंदगियां, बच्चों को सिखाया अपने मां-बाप की कद्र करना

Amitabh Bachchan: फिल्मों पर अक्सर आरोप लगते हैं कि वे समाज में गलत चीजों को बढ़ावा देती हैं. लोगों को अपराध के लिए भी प्रेरित करती हैं. लेकिन कभी-कभार ऐसी फिल्में भी आती हैं, जो लोगों की जिंदगी पर सकारात्मक असर छोड़ती हैं. समाज में सार्थक हस्तक्षेप करती है. हालांकि ऐसा सिनेमा बहुत कम सामने आता है. बीते दो दशक में अगर ऐसी फिल्मों की सूची बनाएं तो निर्माता-निर्देशक रवि चोपड़ा (Ravi Chopra) की फिल्म बागबान (Film Baghban) को कोई छोड़ नहीं कर पाएगा. आज इस फिल्म को रिलीज हुए 20 साल पूरे हो गए हैं. अपने समय में यह एक ऐसी फिल्म थी, जिसने हजारों जिंदगियों को प्रभावित किया. इस फिल्म ने बच्चों को अपने मां-बाप की कद्र करना सिखाया.

20 साल बाद
बागबान के बारे में रोचक तथ्य यह है कि रवि चोपड़ा से पहले उनके पिता, दिग्गज निर्माता-निर्देशक बी.आर. चोपड़ा (B.R. Chopra) 20 साल तक बागबान बनाने पर विचार करते रहे. उन्होंने अपने दौर में दिलीप कुमार (Dilip Kumar) को लेकर यह फिल्म बनाने की योजना पर काम किया. मगर वह मौका नहीं आया. फिर जब रवि चोपड़ा ने इसे बनाना शुरू किया, तब दिलीप साहब 60 साल के व्यक्ति की भूमिका निभाने के लिए बहुत बूढ़े हो चुके थे. तब अमिताभ बच्चन इस फिल्म में आए. अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के करियर को दोबारा पटरी पर लाने में इस फिल्म ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई और बागबान के बाद उन्होंने दूसरी पारी में भी रफ्तार पकड़ ली.

फिल्म की कहानी
यह फिल्म एक बुजुर्ग दंपति, राज मल्होत्रा (अमिताभ बच्चन) और पूजा मल्होत्रा (हेमा मालिनी) की कहानी है. जीवन की भागदौड़ के बाद वृद्धावस्था में वह पूरा समय बच्चों के साथ रहने का सुख उठाएं. उनके चार बच्चे हैं. बहुएं हैं. लेकिन ये बच्चे उन्हें अपनी जिंदगी में बोझ की तरह देखते हैं और एक-दूसरे को माता-पिता की जिम्मेदारी उठाने को कहते हैं. वे माता-पिता को अपने साथ नहीं रखना चाहते. वे माता-पिता को एक-दूसरे से अलग कर देते हैं और तब कहानी रोचक मोड़ लेती है. जिसमें राज और पूजा बच्चों के बीच अपना सम्मान वापस पाने के लिए संघर्ष करते हैं. फिल्म इमोशनल रास्तों से होती हुई हकीकत की मंजिल पर खत्म होती है. इस कहानी में आलोक राज बने सलमान खान (Salman Khan) सितारे की तरह उभरते हैं, जबकि वह राज और पूजा के बेटे नहीं हैं.

फिल्म का मैसेज
बागबान में शाहरुख खान (Shah Rukh Khan) को आलोक राज का रोल ऑफर किया गया था, मगर पीठ की समस्या के कारण वह फिल्म का हिस्सा नहीं बने. इस फिल्म की कहानी ने लोगों के दिल को छुआ और विदेश में रहने वाले कई बेटे-बेटियां अपने माता-पिता की जिंदगी में वापस लौटे. बहुत से बच्चों को अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने मां-बाप से माफी मांगी. उस दौर में ऐसी असल जिंदगी की कई कहानियां सामने आईं. भारतीय समाज (Indian Socity) के ढांचे में आज भी यह फिल्म महत्वपूर्ण है. हेमा मालिनी (Hema Malini) कहती हैं कि मुझे शायद ही कभी किसी फिल्म के लिए लोगों के इतने रिएक्शन और तारीफें मिली, जितनी बागबान के लिए मिली. 10 करोड़ बजट में बनी फिल्म ने बीस साल पहले 43 करोड़ रुपये से ज्यादा बॉक्स ऑफिस कमाई की थी. फिल्म आप यूट्यूब पर देख सकते हैं.

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