वो शख्स, जिनकी कैंची की धार से कांपते हैं बड़े-बड़े सुपरस्टार, इनके गानों में नहीं होता भौंडापन, जीत चुके नेशनल अवॉर्ड
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वो शख्स, जिनकी कैंची की धार से कांपते हैं बड़े-बड़े सुपरस्टार, इनके गानों में नहीं होता भौंडापन, जीत चुके नेशनल अवॉर्ड


कइयों ने उंगली उठाई तो कइयों ने आंखें...लेकिन ये न डरे न ही झुके, ये कहानी है उस शख्स की जिन्होंने नेशनल अवॉर्ड से लेकर पद्मश्री तक जीता. इनकी कैंची की धार से कांपते हैं बड़े-बड़े सुपरस्टार. चलिए बताते हैं इनकी पूरी कहानी.

वो शख्स, जिनकी कैंची की धार से कांपते हैं बड़े-बड़े सुपरस्टार

ये कहानी है एक ऐसे शख्स की जिन्हें आपने फिल्मों में नहीं देखा. लेकिन इनके गाने जरूर सुनते हैं. ये गाना गाते नहीं हैं बल्कि गानों को गढ़ते हैं. तगड़े से तगड़े बजट की फिल्म, इनके सामने थरथराने लगती है. बड़े बड़े एक्टर इनकी कैंची से डरते हैं. इन्हें जो गलत लगा उसे गलत कहा और जो सही लगा उसके साथ डट कर खड़े भी रहे. अब तो आप समझ गए होंगे कि ये कोई और नहीं बल्कि प्रसून जोशी हैं जो केंद्रीय फ़िल्म प्रमाणन बोर्ड (CBFC) के अध्यक्ष प्रसून जोशी. उत्तराखंड के अल्मोड़ा में जन्में प्रसून 16 सितंबर को अपना 53वां जन्मदिन मना रहे हैं.

प्रसून जोशी एक लिरिसिस्ट, कवि, राइटर और स्क्रीन राइटर हैं. उन्हें 11 अगस्त 2017 में सेंसर बोर्ड के चेयरमैन के रूप में चुना गया. वह फिल्मफेयर का बेस्ट लिरिस्सिट अवॉर्ड अपने नाम कर चुके हैं तो उन्होंने तारे जमीन पर फिल्म के बोल के लिए नेशनल अवॉर्ड भी जीता था. साल 2015 में भारतीय सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से भी नवाजा था. 

प्रसून जोशी के पैरेंट्स
इनके हर एक शब्द की खासियत है. जहां भर-भरकर मानवीय भावनाएं, जीवन का सार और लक्ष्य का भाव झलकता है. एड वर्ल्ड से करियर शुरू किया. क्रिएटिविटी मानो खून में बसी थी. मां पॉलिटिकल साइंस की लेक्चरर थीं तो पिता शिक्षा विभाग में पदस्थ. माता पिता दोनों शास्त्रीय संगीत में पारंगत. अब ऐसे में भला प्रसून कहां पीछे छूटते उन्होंने भी रचनात्मकता को अपना शगल बना लिया.

17 की उम्र से ही काम कर रहे
पहली किताब तब छपी जब मात्र 17 साल के थे। नाम था "मैं और वो". प्रेरणा ली फ्रेडरिक नेट्जे की किताब दस स्पेक जराथुस्त्रे. फिर पढ़ाई पूरी की और एड वर्ल्ड में एंट्री मारी। कई कैम्पेन गढ़े.

फिल्मों में कैसे हुई प्रसून जोशी की एंट्री
हिंदी सिने जगत में धमाकेदार एंट्री लज्जा से की. गाने पसंद किए गए. समीर के साथ बोल रचे. फिर तो गाड़ी ने रुख फिल्मी दुनिया की ओर भी किया. एक से बढ़कर एक गाने लिखे, खासियत ये कि भाषा संयंमित, सहज और भौंडेपन-अश्लीलता से कोसो दूर. मानवीय संवेदनाओं को कुरेदते गीतों ने सुनने वालों के दिलों में खास मुकाम बना लिया. तारे जमीं पर, रंग दे बसंती, भाग मिल्खा भाग और ऐसे कई गीत जो सुनने वालों को अलग ही दुनिया की सैर करा जाते हैं.

प्रसून जोशी ने जीता नेशनल अवॉर्ड
तारे जमीन पर के 'तुझे सब है पता मेरी मां' और चटगांव के 'बोलो ना' के लिए दो बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी हुए. कई फिल्मफेयर अवॉर्ड भी अपने नाम किए. 2006 में, उन्हें फोरम ऑफ यंग ग्लोबल लीडर्स द्वारा 'यंग ग्लोबल लीडर 2006' चुना गया और 2007 में, 2008 में उन्हें कान्स जूरी के अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित किया गया और 2009 में, उन्हें कान्स लायंस इंटरनेशनल एडवरटाइजिंग फेस्टिवल 2009 में 10 सदस्यीय कान्स टाइटेनियम और इंटीग्रेटेड जूरी 2009 में नामित किया गया।.

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सेंसर बोर्ड में एंट्री
11 अगस्त 2017, से सेंसर बोर्ड यानि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष पद पर नियुक्त हुए. अब तक जिम्मेदारी संभाल रहे हैं. कइयों ने उंगली उठाई तो कइयों ने आंखें भी लेकिन धुन के पक्के प्रसून आगे बढ़े जा रहे हैं. उनकी एक कविता है 'खुल के मुस्कुराले तू'. प्रसून लिखते हैं- झील एक आदत है , तुझमें ही तो रहती है और नदी शरारत है तेरे संग बहती है उतार ग़म के मोज़े ज़मीं को गुनगुनाने दे, कंकड़ों को तलवों में गुदगुदी मचाने दे.

इनपुट: एजेंसी

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