फिरोज खान (Feroz Khan) की पुरानी फिल्में 'कुर्बानी', 'धर्मात्मा' और 'जांबाज' आज भी टीवी पर अक्सर दिखाई जाती है.
फिरोज खान का असली नाम जुल्फिकार अली शाह खान था. बेंगलुरु में शुरुआती पढ़ाई के बाद अपनी किस्मत आजमाने मुंबई चले आए. उन्हें बी ग्रेड फिल्मों में काम मिलने लगा. इसके दो साल बाद उनके छोटे भाई संजय खान भी मुंबई आ पहुंचे और देखते-देखते अपने बड़े भाई से आगे निकल गए. फिरोज खान को असली ब्रेक 1965 में बनी फिल्म ऊंचे लोग में मिला, जिसमें उन्होंने राज कुमार और अशोक कुमार के साथ काम किया था.
शूटिंग के पहले ही दिन जब राज कुमार की उनसे मुलाकात हुई. राज कुमार ने फिरोज खान को बुला कर कहा, ये एक बड़ी फिल्म है. तुम्हें अपना रोल ध्यान से करना होगा. मैं तुम्हें बताता हूं. जब राज कुमार ने फिरोज खान को समझाना शुरू किया. तो बीच में ही फिरोज उठ गए और कहने लगे, ‘आप अपना काम अपने तरीके से कीजिए. मैं अपने तरीके से करूंगा.’ फिरोज खान की यह बदतमीजी देख कर यूनिट के लोग ठगे रह गए. राज कुमार उन दिनों बड़ा नाम थे और कोई भी जूनियर कलाकार सीनियर एक्टर से इस तरह नहीं बोलता था.
सबको लगा, राज कुमार निर्देशक से फिरोज खान की शिकायत करेंगे और उन्हें फिल्म से निकलवा देंगे. राज कुमार ने ऐसा कुछ नहीं किया, बल्कि अगले दिन सबके सामने फिरोज खान से कहा कि मुझे तुम्हारी अकड़ अच्छी लगी. मैं भी ऐसा ही हूं. किसी की नहीं सुनता. यह अकड़ हमेशा बनाए रखना
उस फिल्म में फिरोज खान के काम की तारीफ होने लगी. इसके बाद उन्हें कभी पीछे मुड़कर देखने की जरूरत नहीं पड़ी. यह किस्सा फिरोज खान ही नहीं, राज कुमार भी सबको सुनाते थे. फिरोज खान ने भी माना कि वह उनका बचपना था. अपने सीनियर कलाकारों को सम्मान देना चाहिए.
फिरोज खान ने बहुत जल्दी एक्टिंग के साथ-साथ निर्देशन में भी कदम रखा. उन्हें लगता था कि दूसरे उनके लिए अच्छा रोल नहीं लिख रहे. वे अपने लिए ऐसे रोल लिखवाते थे, जिनमें काम करके उनको मजा आता था.
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