क्या आप हामिद अली खान को जानते हैं? वह आदमी, जिनका फिल्मी नाम अजीत था. हीरो बनना चाहते थे, पर बन गए सुपर खलनायक.
अजीत के कुछ डॉयलाग आज भी मशहूर हैं. जैसे- 'मोना डार्लिंग सोना कहां है', 'सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है', 'कुत्ता जब पागल हो जाता है तो उसे गोली मार देते हैं...'
अजीत अकसर अपनी कमाई के पैसे रियल एस्टेट में लगाते थे. वह पुराने फ्लैट कम दाम में खरीद कर उन्हें नया बनाकर बेचते थे. उन्हें इस काम में भी काफी मुनाफा मिलता था.
सत्तर के दशक में एक ऐसा वक्त भी था, जब फिल्मों में अजीत को हीरो से ज्यादा पैसे मिलते थे. सुभाष घई के निर्देशन में बनी पहली फिल्म 'कालीचरण' में अजीत को हीरो शत्रुघ्न सिन्हा के मुकाबले डेढ़ गुना अधिक पारिश्रमिक मिला था.
राजेन्द्र और सलीम ने अजीत को खलनायक के रोल करने की सलाह दी. अजीत मान गए. अजीत की 'सूरज', 'जंजीर', 'यादों की बारात' जैसी कई फिल्में इतनी हिट हुईं कि वह रातों-रात सुपर खलनायक बन गए.
अजीत को साठ के दशक में फिल्में मिलने लगी थीं, पर वह हीरो के तौर पर कभी सफल नहीं हो पाए. तब उनकी मदद को आगे आए उनके दोस्त एक्टर राजेंद्र कुमार और सलमान खान के पिता सलीम खान (Salim Khan).
नानाभाई ने उन्हें अपना नाम बदलने के लिए कहा. कहा कि हामिद नाम फिल्मों में नहीं चलेगा. नानाभाई ने ही उन्हें अजीत नाम दिया था. नानाभाई निर्माता-निर्देशक महेश भट्ट के पिता थे.
हामिद ने मुंबई में शुरुआती कई सालों तक संघर्ष किया. सड़क पर सोए, गुंडा-गर्दी की, फिर कहीं जा कर उनकी मुलाकात निर्माता नानाभाई भट्ट से हुई. नाना ने उन्हें अपनी फिल्म में हीरो का रोल दिया, पर एक शर्त के साथ.
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