कभी गोपालगंज (बिहार) बेलसांद गांव में पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) ने शुरुआती पढ़ाई पेड़ के नीचे ही की थी, क्योंकि उनके स्कूल के पास अपनी इमारत नहीं थी.
Trending Photos
नई दिल्ली: बॉलीवुड एक्टर पंकज त्रिपाठी (Pankaj Tripathi) जैसों के लिए कमाई का मतलब बस यही होता है कि उनको आज देश का बच्चा-बच्चा पहचानता है. एक गांव में किसान के यहां जन्मे बच्चे को अपने सपने पूरे करने के लिए कितनी प्रतिभा और धैर्य की जरूरत होती है, ये पंकज त्रिपाठी की जिंदगी से सीखा जा सकता है और शायद हर तरह की परेशानियों से गुजरकर ही उनके अंदर वो हुनर आया है कि जिस रोल में आते हैं, ऐसा लगता है वो किरदार खासतौर पर उनके लिए ही गढ़ा गया है. आरएसएस से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) का ऐसा नेता, जो एक आंदोलन मे जेल भी गया था, आज बॉलीवुड या देश की तमाम राजनीति से परे रहकर हर वर्ग, हर विचारधारा वाले का प्रिय है तो बस एक ही वजह है, अपने किरदार में पूरी जान डाल देना.
शुरुआती पढ़ाई पेड़ के नीचे ही की थी
कभी गोपालगंज (बिहार) बेलसांद गांव में पंकज ने शुरुआती पढ़ाई पेड़ के नीचे ही की थी, क्योंकि उनके स्कूल के पास अपनी इमारत नहीं थी. हर साल गांव में होने वाले छठ पूजा नाटक में वह हिस्सा भी लिया करते थे. अक्सर वो उस नाटक में लड़की बना करते थे. 10वीं क्लास तक वहीं पढ़ने के बाद पिता ने उनको पटना भेजा. वो उन्हें डॉक्टर बनाना चाहते थे. हर महीने सुबह 3 बजे की ट्रेन वो पटना के लिए पकड़ते थे और दाल, चावल, मसाले आदि का बड़ा थैला लादकर ले जाते थे. वो साल भर केवल दाल चावल या खिचड़ी ही खाते थे. पटना आकर सबसे पहला काम पंकज ने ये किया कि हिंदी बोलनी सीखी. उन्हें हिंदी लिखना तो आता था, लेकिन बोलना केवल भोजपुरी आता था. एक कमरे में वो रहते थे, जिसमें ऊपर टिन पड़ी रहती थी, एक दिन तो तेज हवा में वो भी उड़ गई थी. उन्होंने वहां से 12वीं पास की और घरवालों, मित्रों के कहने पर एक होटल मैनेजमेंट के छोटे कोर्स में एडमीशन ले लिया.
AVBP से भी जुड़े
इसी दौरान वो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ से जुड़े छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (AVBP) के संपर्क में आ चुके थे. एक आंदोलन के दौरान उन्हें 7 दिन के लिए जेल भी भेजा गया. ये 1993 का साल था. ये आंदोलन लालू यादव सरकार की छात्र विरोधी नीतियों के विरुद्ध किया गया था. पंकज त्रिपाठी भी विधानसभा घेराव करने चले गए थे. जेल मे रहने के दौरान वो जेल की लाइब्रेरी में तमाम साहित्यकारों की किताबें पढ़ने लगे. उनको लगा कि अभी उन्हें दुनियां के बारे में काफी कुछ पढ़ना है और काफी कुछ जानना है. उसी दौरान उन्होंने पटना में एक प्ले 'अंधा कुंआं' देखा, वो काफी प्रभावित हुए और उनका थिएटर के प्रति लगाव और बढ़ता चला गया. पटना में पंकज कालीदास रंगालय से जुड़ गए और उसके बाद बिहार आर्ट थिएटर से 2 साल तक जुड़े रहे. इस दौरान वो नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) के लिए भी कोशिश करते रहे. होटल मैनेजममेंट की ट्रेनिंग के लिए पटना के होटल मौर्या में नाइट शिफ्ट में किचन सुपरवाइजर की जॉब भी मिल गई. 2 साल तक उनका रुटीन ये था- रात को 11 बजे से सुबह 7 बजे तक होटल में रहना, फिर घर आकर सो जाना, 5-6 घंटे की नींद लेकर तैयार होकर 2 बजे से थिएटर पहुंच जाना, फिर 7 बजे वहां से घर के लिए निकलना.
होटल की नौकरी छोड़कर पहुंचे एनएसडी
इधर, लगातार 2 बार उनको एनएसडी ने खारिज कर दिया था. एक दिन घनघोर बारिश के बीच एक डाकिया रेनकोट पहने हुए उनके लिए एक डाक लेकर आया. उस लिफाफे पर एनएसडी का लोगो देखकर उछल ही पड़े थे पंकज, समझ गए मन की मुराद पूरी हो गई है. फिर पिता को मनाया, समझाया कि इससे बाद में ड्रामा टीचर या प्रोफेसर की जॉब मिल जाएगी. फिर होटल की नौकरी छोड़कर दिल्ली रवाना हो गए, जहां नवाजुद्दीन सिद्दीकी उनके 8 साल सीनियर थे, लेकिन उनको पता था कि पूरे देश से केवल 20 छात्र चुने गए हैं और वो खुद उनमें से एक हैं, हालांकि कोर्स खत्म करने के बाद उनको समझ नहीं आया कि आगे क्या करें. मुंबई में तो संघर्ष करने तक के पैसे नहीं थे और न दिल्ली में रुकने के. इसलिए वो पटना चले आए. पिताजी को भी लगा कि समय हो गया है कि इसकी शादी करवा देनी चाहिए और उसी साल मृदुला उनकी जिंदगी में आ गईं. ये साल 2004 का वक्त था.
पत्नी को लेकर मुंबई के लिए हुए रवाना
वो पत्नी के साथ पटना में ही रहने लगे और वहां के थिएटर्स में जो भी रोल मिलता था, उसे करने लगे. इधर, मुंबई से लगातार उनका दोस्त भानु उदय उनको लगातार फोन करता रहता था कि उनको मुंबई आना चाहिए. उनको भी लगता था कि जब उनकी ही तरह बिहार के गांव के रहने वाले मनोज बाजपेयी को कामयाबी मिल सकती है, तो उनको भी मिल सकती है. मनोज को वो इसलिए अपना रोल मॉडल मानते थे. दिन था 16 अक्टूबर का वो अपनी पत्नी मृदुला के साथ मुंबई आ पहुंचे. कुछ दिन अपने उसी दोस्त भानु उदय के पास रुके, फिर अपना एक वन बीएचके किराए पर ले लिया और चक्कर लगाने शुरू कर दिए, स्टूडियोज, कास्टिंग डायरेक्टर्स, एनएसडी के सीनियर्स व साथियों के यहां, जहां रहते थे वहां नेटवर्क नहीं आता था, घर में केवल एक जगह नेटवर्क आता था. इसलिए उनका फोन ठीक उसी जगह पर रखा रहता था, इस इंतजार में कि कोई कॉल आएगा. वह जहां भी ऑडीशन देने जाते, उनसे रिफ्रेंस मांगा जाता, उनकी कुछ समझ नहीं आता था, कोई गॉडफादर नहीं था, सो बोल देते ईश्वर जी यानी भगवान. एक इंटरव्यू में हाल ही में पंकज ने कहा था कि शायद मेरा रिफ्रेंस काम कर गया. भगवान के नाम पर रोल मिलने लगे, लेकिन उस वक्त 3 महीने हो गए और कोई काम नहीं मिला. घर से पूरे 46,000 रुपए लेकर आए थे वो, 25 दिसंबर हो गया था, बीवी का जन्मदिन था और उनकी जेब में केवल 10 रुपए ही बचे थे. क्या गिफ्ट देते और कैसे केक लाते?
8 साल तक मुंबई में ऐसे करते रहे संघर्ष
उनकी पत्नी मृदुला बीएड कोर्स कर चुकी थीं, इसलिए उन्हें एक स्कूल में टीचर की जॉब मिल गईं. तय कर लिया था दोनों ने कि वापस नहीं लौटना है, फिर उन्हें छोटे-छोटे रोल मिलने लगे थे, लेकिन ये 8 साल में तमाम फिल्मों, सीरियल्स में काम करने के बावजूद वो बस उतना ही कमा रहे थे, जिससे कि घर ठीक से चल जाए. 'रन', 'अपहरण' और 'ओमकारा' में छोटे-छोटे रोल मिले. थोड़ा बड़ा रोल पंकज कपूर के साथ फिल्म ‘धर्म’ में मिला, प्रकाश झा की ‘बाहुबली’ टीवी सीरीज में काम मिला, लेकिन उनको स्टार बनाया ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ ने. अनुराग कश्यप ने सुल्तान के रोल के लिए उनका 8 घंटे तक ऑडीशन लिया था, तब पास हुए. मुंबई आए 2012 में उन्हें 8 साल हो चुके थे और तब उनकी किस्मत खुली. आज उनके खाते में 'बरेली की बर्फी', 'फुकरे', 'फुकरे रिर्टन्स', 'ताशकंद फाइल्स', 'स्त्री', 'अंग्रेजी मीडियम', 'सुपर 30' और ताजा रिलीज 'गुंजन सक्सेना' जैसी तमाम बड़ी फिल्में हैं और एक लीड रोल वाली ‘गुड़गांव’ भी. कभी थिएटर प्ले करते थे, अब टीवी सीरीज के बाद फिल्मों और वेब सीरीज में भी प्रमुख भूमिकाओं में वो आने लगे हैं. उनके लिए स्पेशल रोल लिखे जाने लगे हैं. लोगों को बेसब्री से उनकी ‘मिर्जापुर’ सीरीज के पार्ट 2 का इंतजार है. ‘सेक्रेड गेम्स’ और ‘क्रिमिनल जस्टिस’ भी लोगों को काफी पंसद आई. कभी किराए के मकान में रहते थे, अब मुंबई के मडआइलेंड में सी फेसिंग सपनों का घर ले लिया है, जहां वो चारपाई भी ले आए हैं. कड़ी मेहनत, लगन और धैर्य ने उनकी किस्मत बदल दी है, लेकिन वो नहीं बदले.