Chhorii Movie Review: हंसाने के बाद अब डराने के लिए आईं नुसरत, कितनी हुईं कामयाब यहां जानिए
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Chhorii Movie Review: हंसाने के बाद अब डराने के लिए आईं नुसरत, कितनी हुईं कामयाब यहां जानिए

अपनी इमेज को बदलने के लिए नुसरत भरूचा (Nushrratt Bharuccha) ने हॉरर फिल्म 'छोरी' (Chhorii) का सहारा लिया है. यह फिल्म लोगों को डराने के साथ-साथ एक सोशल संदेश भी दे रही है. फिल्म के बारे में जानने के लिए आप आगे पढ़ें.

फाइल फोटो

कास्ट: नुसरत भरूचा, मीता वशिष्ठ, सौरभ गोयल, राजेश जैस

  1. नुसरत भरुचा की मूवी का रिव्यू
  2. हंसाने के बाद अब डराने की कोशिश
  3. कुछ हद तक हुईं कामयाब

निर्देशक: विशाल फुरिया

स्टार रेटिंग: 3

कहां देखें: अमेजन प्राइम वीडियो

नई दिल्ली: नुसरत भरूचा (Nushrratt Bharuccha) की पहचान बिलकुल वैसी ही है, जैसी कि उनके पुराने हीरो कार्तिक आर्यन (Kartik Aryan) की, और प्यार का पंचनामा व सोनू के टीटू की स्वीटी से बनी उसी चुलबुली पहचान को नुसरत भुलाने में जुटी हैं, ताकि खुद को एक्टर साबित किया जा सके. क्या ‘छोरी’ (Chhorii) उनकी इस इच्छा को पाने में मदद कर पाएगी? अमेजन प्राइम पर 26 नवम्बर से उपलब्ध इस मूवी को लेकर ये जिज्ञासा लाजिमी है. खास बात है कि इस अकेली भारतीय हॉरर मूवी को इंटरनेशनल फिल्म फेस्टीवल गोवा (IFFI) में दिखाया गया है.

अजन्मे बच्चे को भूत से जोड़ा

हॉरर हो या कॉमेडी, जब तक आप दिमाग को घर में रखकर नहीं जाएंगे, पूरा मजा नहीं ले पाएंगे. ये मूवी भी उसी तरह की है, हॉरर फिल्मों को पसंद करने वालों को अब अच्छे से पता है कि डायरेक्टर किस तरह के सींस से डराएगा, किस तरह की आवाजें, आहटें, या डरावनी शक्लें देखने को मिलेंगी, तो ऐसे में सारा दारोमदार प्लॉट के आइडिया पर आ गया है कि भूत की आखिर कहानी कैसे पुरानी भूतिया मूवीज से अलग है. हालांकि इस साल 2 हॉरर फिल्मों में प्रेग्नेंट लेडीज के अजन्मे बच्चे को भूत से जोड़ दिया गया, इमरान हाशमी और निकिता दत्ता की ‘डिब्बुक’ के बाद नुसरत भरूचा की ‘छोरी’ को भी.

मराठी मूवी का रीमेक

यूं ‘छोरी’ एक मराठी मूवी ‘लपाछपी’ का रीमेक है, लेकिन चूंकि डायरेक्टर हिंदी मे भी वही है, सो आइडिया नया माना जा सकता है. कहानी हरियाणा के एक गांव में रची गई है कि कैसे शहर में रह रहा हेमंत (सौरव गोयल) जब कर्ज नहीं चुका पाता तो साहूकार के गुंडे उसे पीट देते हैं, उनसे बचने के लिए वो अपनी प्रेग्नेंट पत्नी साक्षी (नुसरत भरूचा) को अपने ड्राइवर (राजेश जैश) के गांव छोड़ देता है. जहां ड्राइवर की पत्नी (मीता वशिष्ठ) उसकी देखभाल करती है. धीरे धीरे नुसरत को पता चलता है कि इस गांव में किसी आत्मा का साया है, जो गर्भवती स्त्रियों के ही पीछे पड़ी है और ड्राइवर व उसकी पत्नी तमाम तरह की तंत्र क्रियाओं में लिप्त हैं. जबकि उसका पति उसे वहां छोड़ने के बाद से ही किसी ना किसी बहाने से गायब रहता है. उसकी दोस्ती 3 बच्चों से हो जाती है, लेकिन मीता वशिष्ठ को ये पसंद नहीं आता.

दर्शकों को बांधने की कोशिश

मूवी के अच्छे पहलुओं की बात करें तो सबसे पहले तो ये कि ये सस्पेंस लगातार बनाए रखती है, लगातार कुछ खुलासे हो रहे होते हैं, सो आप इसे बांधकर रखने वाली मूवी मान सकते हैं. दूसरे इस गांव की लोकेशन, गन्ने के खेतों के बीच बना एक बड़ा सा घर है, जो पास जाकर ही दिखता है. आलोचना की नजर से देखेंगे तो पाएंगे जिसे डायरेक्टर ने गांव कहा, वहां कोई दूसरा घर तो है ही नहीं, एक ही घर है. तीसरे सींस को इस तरह से बांधा गया है कि आप लगातार अगले सीन का इंतजार करते हैं, नुसरत व मीता वशिष्ठ की बेहतरीन एक्टिंग के अलावा सबसे अच्छी बात है कि इस मूवी के जरिए डायरेक्टर ने सोशल मैसेज भी देने की कोशिश की है कि कैसे बच्चियों को कोख में ही मारने की साजिश रची जाती है.

ठेठ गांव की शूटिंग

लेकिन डायरेक्टर इस हद तक महिलावादी हो गया है कि शुरू से ही नुसरत के पति को गायब कर दिया गया है, यहां तक कि मीता के पति को भी बेहद कम जगह दी गई है, शायद कम बजट के चलते ज्यादा और अच्छे एक्टर्स के बजाय नुसरत और मीता के चेहरों से ही काम चलाया गया है. कई बातें तर्कहीन भी लगती हैं, कोई भी प्रेग्नेंट महिला हमेशा किसी अच्छी मेडिकल सुविधा वाली जगहों पर ही रहना पसंद करती है, पढ़ी लिखी महिला इस ठेठ गांव में रहना कैसे मंजूर कर लेती है. इसलिए डायरेक्टर फ्रिज, एसी, टीवी जैसी जरुरतों और मच्छर व मोबाइल नेटवर्क जैसी परेशानियों का जिक्र ही नहीं करता और ना ही इस बात का आखिर साक्षी (नुसरत) हेमंत के परिवार में शादी करने पर राजी कैसे हो गई, वह अपने परिवार से कभी बातचीत भी क्यों नहीं करती थी? उसकी जिंदगी इतनी सीमित क्यों थी?  लेकिन ऐसे किसी भी तर्क को हॉरर मूवीज में जगह नहीं दी जाती, केवल दर्शक को बांधे रखना होता है.

देखने लायक है फिल्म

दर्शकों को बांधने में डायरेक्टर विशाल फुरिया काफी हद तक कामयाब रहे हैं और एक सोशल मैसेज को देने में भी. नुसरत को भी कामयाबी मिली है, अपनी बनी बनाई इमेज को तोड़कर एक संजीदा लेकिन हॉरर मूवी करके. बाकी अंशुल चौबे की सिनेमेटोग्राफी की आप तारीफ कर सकते हैं, हॉरर मूवी के शौकीन लोगों के लिए ये एक बार देखने लायक तो है ही.

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