Delhi Smog Towers: स्मॉग टॉवर्स विदेशों में खूब देखने को मिलते हैं और सरकार की तरफ से इन्हें हर ऐसी लोकेशन पर लगवाया जाता है जहां सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है.
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Smog Towers: राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण को नियंत्रण में लाने के लिए आम आदमी पार्टी (आप) सरकार की तरफ से अगस्त 2021 में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दो स्मॉग टावर्स लगाए गए थे. एक स्मॉग टावर की कीमत तकरीबन 20 करोड़ रुपये थी. इन स्मॉग टावर्स के बारे में अखबारों से लेकर टीवी चैनलों पर काफी चर्चा हुई और इन्हें लेकर तरह-तरह के दावे किए गए. ऐसा बताया गया था कि ये 80 प्रतिशत तक प्रदूषण को कम कर सकते हैं. बाद में इनकी संख्या को बढ़ाया गया लेकिन अब इनके बारे में सरकार बात नहीं कर रही है. साल 2021 के बाद से इनकी कोई चर्चा नहीं हुई है. आखिर इन्हें लगाना कारगर था या नहीं, इस बारे में कोई नहीं जानता है. ऐसे में अहम हम आपको इनके बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं.
क्या होता है स्मॉग टावर
स्मॉग टावर बड़े पैमाने पर वायु शोधक के रूप में काम करने के लिए डिज़ाइन की गई संरचनाएं हैं, इनमें हवा सोखने के लिए आधार पर एयर फिल्टर और पंखे की कई परतें लगी होती हैं. प्रदूषित हवा स्मॉग टावर में प्रवेश करने के बाद, वायुमंडल में पुनः प्रसारित होने से पहले इसे कई परतों द्वारा शुद्ध की जाती है और फिर इसे वायुमंडल में दुबारा से छोड़ दिया जाता है.
कैसा है दिल्ली के स्मॉग टावर का स्ट्रक्चर
यह संरचना 24 मीटर ऊंची है, लगभग 8 मंजिला इमारत जितनी - इसमें एक 18 मीटर का कंक्रीट टॉवर लगाया गया है, जिसके शीर्ष पर 6 मीटर ऊंची छतरी है. इसके आधार पर 40 पंखे हैं, प्रत्येक तरफ 10 पंखे मौजूद हैं. प्रत्येक पंखा प्रति सेकंड 25 क्यूबिक मीटर हवा निकाल सकता है, जिससे पूरे टावर के लिए प्रति सेकंड 1,000 क्यूबिक मीटर हवा निकल सकती है. टावर के अंदर दो परतों में 5,000 फिल्टर लगाए गए हैं. फिल्टर और पंखे संयुक्त राज्य अमेरिका से आयात किए गए हैं.
कैसे करता है काम?
टावर मिनेसोटा विश्वविद्यालय द्वारा विकसित 'डाउनड्राफ्ट एयर क्लीनिंग सिस्टम' का उपयोग करता है, इससे प्रदूषित हवा को 24 मीटर की ऊंचाई पर खींच लिया जाता है, और फ़िल्टर की गई हवा को जमीन से लगभग 10 मीटर की ऊंचाई पर टॉवर के नीचे छोड़ दिया जाता है. जब टावर के निचले हिस्से में पंखे चलते हैं, तो उत्पन्न नकारात्मक दबाव ऊपर से हवा खींच लेता है. फ़िल्टर में 'मैक्रो' लेयर 10 माइक्रोन और बड़े कणों को फँसाती है, जबकि 'माइक्रो' परत लगभग 0.3 माइक्रोन के छोटे कणों को फ़िल्टर करती है. टावर से फ़िल्टर की गई हवा को टॉवर के शीर्ष पर छोड़ा जाता है.
आखिर क्यों नहीं होता अब Smog Towers का जिक्र
साल 2021 के बाद फिर दिल्ली में सिर्फ उसे दौरान ही स्मॉग टॉवर्स की बात होती है जब सर्दियां आती है क्योंकि इसी दौरान सबसे ज्यादा प्रदूषण देखने को मिलता है, हालांकि सरकार द्वारा लगाए गए इन टॉवर्स के क्या नतीजे निकले इस बारे में ज्यादातर लोग कुछ भी नहीं जानते हैं.
आखिर क्यों नहीं दिल्ली में बढ़ाए गए स्मॉग टॉवर्स
मौजूदा समय की बात करें तो दिल्ली में 5 स्मॉग टॉवर्स मौजूद है जिनमें से कुछ काम नहीं कर रहे हैं. आपको बता दें कि एक टावर को लगाने में तकरीबन 20 करोड़ का खर्च आता है. कई विशेषज्ञों का कहना है कि शहर की हवा को साफ करने के लिए स्मॉग टावर एक सही तरीका नहीं है. सरकार ने टावर के इनलेट और आउटलेट पर 80 फीसदी प्रदूषण कम होने की बात कही थी लेकिन टावर से दूरी के असर का कभी जिक्र नहीं किया.
दो टावरों पर ₹40 करोड़ खर्च करने के बजाय, सरकार कई अन्य विकल्पों पर गौर कर सकती थी. कई रिपोर्ट्स में ये बात सामने आई कि इन स्मॉग टावर्स से 30 से 50 फीसद ही हवा क्लीन होती थी. इतना ही नहीं ये साफ़ हवा भी सिर्फ उन लोगों को मिल पाती थी जो टावर के आसपास रहते थे. टावर से दूरी बढ़ते ही प्रदूषण भी पहले की तरह रहता था. यही वजह है कि दुबारा स्मॉग टावर्स पर कोई भी बात नहीं हुई है.